पुरस्कार की गंदी रिश्वत (भाग-2)
राजनीति का कूड़ा-करकट , अब भारत से साफ हो ;
धर्मविरोधी नेता – अफसर , कोई भी न माफ हो ।
सर्वप्रमुख है धर्म हमारा , बाद में बाकी सब कुछ है ;
धर्म नहीं तो कुछ भी नहीं है , सारा कूड़ा-करकट है ।
धर्म – विरोधी सत्तायें हैं , अबकी इन्हें हटाना है ;
धर्मनीति पर चलने वाली , अच्छी-सरकारें लाना है ।
बिगुल बज चुका रणभेरी का , सारे-हिंदू तैयार हों ;
न्याय और अन्याय का झगड़ा , सबके सब तैयार हों ।
विकल्पहीन था हिंदू अब तक, तरसा हरदम न्याय को ;
अब्बासी-हिंदू का शासन , हरदम करता अन्याय को ।
सदियों अन्याय सहा हिंदू ने , आजादी भी फर्जी है ;
जेहादी का अभी भी शासन , गुंडों की ही मर्जी है ।
पुरस्कार की गंदी-रिश्वत , अब्बासी – हिंदू बेगैरत है ;
चाहे देश झुका दो जितना , उसकी कोई न इज्जत है ।
मेडल देकर काम निकालें , पुरस्कार का लालच है ;
आत्ममुग्ध अब्बासी – हिंदू , इसको सौ-सौ लानत है ।
देश में ये नौटंकी करता , बाहर इसके संग होती है ;
स्वागत-समारोह नौटंकी , पीछे खिल्ली उड़ती है ।
दुनिया के ताकतवर नेता , जोकर इसे समझते हैं ;
पीछे इसकी हंसी उड़ाते , उल्लू सीधा करते हैं ।
महाधूर्त अब्बासी – हिंदू , अपने लिये ही जीता है ;
पूरा-देश भाड़ में जाये , हिंदू का रक्त चूसता है ।
कायर,कमजोर,नपुंसक नेता, गुंडों की हिंसा से डरता ;
इसीलिये शाहीन-बाग है , रोड-जाम होता रहता ।
हिंदू का दुर्भाग्य सदा से , भारत के अब्बासी – हिंदू ;
मोहनदास करमचंद गांधी , पहला था अब्बासी-हिंदू ।
अब तो पूरी फसल उगी है,जगह-जगह अब्बासी-हिंदू ;
सबसे गंदा कूड़ा-करकट , भारत का अब्बासी-हिंदू ।
राजनीति की करो सफाई , तब ही हिंदू बच पाना है ;
हमें चाहिये न्याय का शासन, अच्छी सरकार बनाना है ।
एक मात्र दल ही ऐसा है , राजनीति को स्वच्छ करेगा ;
“एकम् सनातन भारत” दल ही, राष्ट्रनीति से युक्त करेगा।
राष्ट्रनीति सर्वोत्तम – स्थिति , प्रजातांत्रिक भारत की ;
भारत में सरकारें लाओ , “एकम् सनातन भारत” की ।