अर्चना कुमारी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट एससी और एसटी एक्ट को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय का कहना है कि स्टाफ रूम सार्वजनिक स्थान नहीं है और ऐसे में चमार बोलना इसे अपराध नहीं माना जा सकता । दरअसल, आरोप लगे थे कि स्टाफ रूम में हुई बैठक के दौरान शिकायतकर्ता को चमार कहकर बुलाया गया और उसके साथ अभद्रता की गई थी।आरोपी याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर स्टाफ रूम मीटिंग के दौरान शिकायतकर्ता को चमार का जिक्र करते हुए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था।
मामले में जस्टिस विशाल धगट सुनवाई कर रहे थे। कोर्ट का कहना था कि चूंकि स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं, जो सार्वजनिक रूप से नजर में आती हो। ऐसे में आरोपी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता। अदालत ने बताया एससी एसटी की धारा 3(1)(x) के तहत सार्वजनिक जगह पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का अपमान करना या धमकाने के चलते दंड दिया जा सकता है।
उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, ‘यह साफ है कि SC & ST (POA) Act की धारा 3(1)(x) के तहत सार्वजनिक स्थान पर किए गए अपराध को अपराध माना जाएगा। स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं है, जो सार्वजनिक हो। ऐसे में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपराध नहीं बनता है।’इसके अलावा कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत दर्ज आरोपों को भी खारिज कर दिया। अदालत का कहना था कि स्कूल का स्टाफ रूम ऐसी जगह नहीं है, जहां आम जनता बगैर अनुमति के जा सके।
उन्होंने कहा, ‘ऐसे हालात में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 294 के तहत अपराध नहीं बनता है। यह निर्णय आशुतोष तिवारी तथा मध्य प्रदेश को लेकर आया है।
इसके अलावा, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी का अपराध भी नहीं बनता है। अदालत ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने यह आरोप नहीं लगाया था कि जब उसके साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया तो वह घबरा गया था।
अदालत ने मामले में शहडोल में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।याचिकाकर्ताओं (अभियुक्तों) का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता विपिन यादव ने किया, जबकि शासकीय अधिवक्ता अक्षय नामदेव ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व किया।