सत्तर से अधिक दिन से चला आ रहा किसान आंदोलन अंततः ग्लोबल होने की राह पर है। हॉलीवुड की चर्चित हस्तियों ने एशिया के समृद्ध आंगन में कांटेदार ट्वीट उगाने के प्रयास किये हैं। अंतरराष्ट्रीय पॉप स्टार रिहाना, पोर्न सितारा मियां खलीफा, ग्रेटा थनबर्ग ने भारतीय किसानों के प्रति सहानुभूति दर्शाई है। अचानक भारतीय सीमा में दाख़िल हुए अमेरिकन हवा के झोंके को समझना भारत सरकार के लिए आवश्यक है। और ऐसा लग रहा है कि वह मामले की गंभीरता समझ रही है।
भारत सरकार के दृढ़ रुख और मनोरंजन उद्योग के कुछ सितारों के भारत सरकार के पक्ष में खुलकर ताल ठोंकने के बाद ये मुकाबला रोचक हो चला है। भारतीयों को पर्यावरण हितैषी ग्रेटा की पुकार भली लग सकती थी, यदि विश्व आज इंटरनेट के सूक्ष्म भूतों के जाल में न जकड़ा होता। जी हाँ, इंटरनेट के ये सूक्ष्म भूत किसी भी प्रकार के मीडियाई झूठ को चौबीस घंटे के भीतर तार-तार करने की क्षमता रखते हैं।
पिछले चौबीस घंटों में सोशल मीडिया, अक्षय कुमार, अजय देवगन, लता मंगेशकर, अनुपम खेर ने अमेरिका को मुंह तोड़ जवाब दिया है, उससे ये सिद्ध होता है कि भारत पर इस वैचारिक आक्रमण की कमर तोड़ देने में भारत ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है। आप देख ही रहे हैं कि इस युद्ध में भारत ने ‘सूक्ष्म प्रेतों’ का कितना सुंदर उपयोग किया है। इस अमेरिकन आक्रमण ने भारत सरकार को ये स्पष्ट रुप से बता दिया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का नया निज़ाम भारतवर्ष से मित्रवत नहीं रहना चाहता है।
अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का प्रभाव भारत में उसके दखल से स्पष्ट दिखाई दे रहा है। एक आंदोलन के लिए अमेरिका और कैनेडा में कुछ फासीवादी शक्तियां एकजुट हो चुकी हैं। वे शक्तियां जानती हैं कि भारत के जनमानस को प्रभावित करने के लिए इंटरनेट सबसे सुलभ उपाय है। वे इसकी सहायता से भारत के आंतरिक मामलों में आसानी से दखल दे सकते हैं। मुझे ये देखकर दुःख हुआ कि अक्षय कुमार, अजय देवगन के ट्वीट्स पर उन्हें गालियां देने वाले भारत के ही लोग हैं और अधिकांश पंजाब क्षेत्र से आते हैं।
मेरे देश पर आक्रमण हुआ है और मेरे देश का व्यक्ति इसका प्रतिकार करता है तो मेरे ही देश का आदमी उसे गाली क्यों देता है? जिस तरह के कमेंट्स इन लोगों को दिए जा रहे हैं, शर्म से सिर झुकाने के लिए काफी हैं। यहाँ तक कि स्वर कोकिला लता जी के विचार का भी विरोध किया जा रहा है। 91 वर्ष की आयु में लता मंगेशकर को ये ध्यान है कि देश के विरुद्ध बोलने वाले विदेशियों का प्रतिकार करें लेकिन यहाँ ऐसे लोग मौजूद हैं, जिन्हें लता जी का ये प्रतिकार सहन नहीं हो रहा है।
भारत कभी-कभी ऐसे मोड़ से गुज़रता है, जो उसकी देह पर अमिट निशान छोड़ जाते हैं। शाहीनबाग, किसान आंदोलन की हिंसा ऐसे ही निशान है, जिसे भारत आगामी कई वर्षों तक अपनी देह पर देखेगा। इस समय भारतीय मीडिया के कार्यकलाप भी भविष्य में याद रखे जाने वाले हैं। ये हमारा घर है। हम अपने घर में लड़ते रहें लेकिन जब रिहाना जैसे लोग भारत पर ऊँगली उठाए तो हमारी एकजुटता दिखनी चाहिए।
लेकिन हमारा मीडिया ऐसा नहीं सोचता। उसे भारत के सम्मान और अस्मिता को ठेस पहुंचाने में भी अपना लाभ दिखाई देता है। कम से कम यहाँ तो भारत के मीडिया और मनोरंजन जगत को एकजुट होकर अमेरिका को जवाब देना था। पत्रकारिता के सिद्धांत से ऊपर देश के हित होते हैं। यहाँ तो भारतीय मीडिया को अमेरिका के विरुद्ध हल्ला बोल देना चाहिये था लेकिन वे क्या कर रहे हैं, इसका उदाहरण देखिये।’विदेशों तक पहुंची किसान आंदोलन की धूम’।
मीडिया सचिन का बयान दिखाकर लिखता है ‘क्रिकेटर्स ने खूब दिया जवाब’। यहाँ भी उनका अपना कोई स्टैंड नहीं है। यहाँ भी वे निष्पक्ष बने हुए हैं लेकिन उनकी ये निष्पक्षता तब कहाँ चली जाती है, जब दिल्ली की किलेबंदी पर वे फट पड़ते हैं। तथ्यों की जाँच नहीं करते। किसान आंदोलन भारतवर्ष के लिए एक संकरा मोड़ है। वह अपनी कुशलता से इस मोड़ से भी निकल जाएगा। उसके साथ भारतीय मीडिया न हो, उसके साथ मनोरंजन जगत न हो, उसके साथ विपक्ष न हो फिर भी वह अपनी राह बना लेगा।
लता मंगेशकर, अनुपम खेर, अक्षय कुमार, अजय देवगन और उनके साथ करोड़ों भारतवासियों ने इंटरनेट के ‘सूक्ष्म प्रेतों’ के सहयोग से अमेरिकन आक्रमण की हवा टाइट कर दी है। बॉलीवुड वर्सेज हॉलीवुड के इस प्रचार युद्ध में भारत बहुत दम से भारी पड़ गया है। वैसे मुझे विश्वास है कि अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडेन की ये प्रचार सेना आगे भी आक्रमण करती रहेगी। उन्हें क्या मालूम कि विगत कई शताब्दियों से भारत की देह पर ऐसे निशान पड़ते रहे हैं लेकिन वह अडिग अपने पथ पर अग्रसर है।