भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने कल सिक्किम के एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से छात्रों को संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होने एक बेहद महत्व्पूर्ण बात कही कि भारत की शिक्षा प्रणाली को वैदिक शिक्षा प्रणाली से सीख लेनी चाहिये.
उन्होने कहा कि वैदिक शिक्षा में मात्र कोरे किताबी ज्ञान के बजाय मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों को आत्मसात करने पर बल दिया जाता है. और वैदिक शिक्षा के इसी वृहत दृष्टिकोण को भारत की नई शिक्षा नीति ने अपनाने की कोशिश की है. इसीलिये नई शिक्षा नीति विभिन्न अध्ययन क्षेत्रों और विषयों के बीच का कृत्रिम विभाजन समाप्त कर एक ऐसी संपूर्णता से परिपूर्ण शिक्षा को महत्व देती है जिससे छात्र छात्राओं का सर्वांगीण विकास संभव हो.
प्राचीन भारत में वैदिक शिक्षा पद्धति का जो महत्व रहा है, उससे हम सभी भली भांति परिचित हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे व्यक्तित्व से रूबरू करायेंगे जो कि इक्कीसवीं सदी में न ही सिर्फ वैदिक शिक्षा को अंतराष्ट्रीय स्तर पर लाने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति से जुड़ी उस जीवनशैली को विदेशों में लोकप्रिय बना रहे हैं, जिससे लोग भारत तक में दूर होते जा रहे हैं.
अभिनव गोस्वामी एक ऐसी शख्सीयत हैं जिन्होने अपनी संस्कृति से जुड़्ने के लिये और अपने सपनों को उड़ान देने के लिये अमरीका में एप्पल कंपनी की डांटा वैज्ञानिक की नौकरी को ठोकर मार दी. 2017 में जब अभिनव ने अपनी नौकरी छोड़्ने का निर्णय लिया तो उस समय वह केलिफोर्निया के एक बेहद पांश और महंगी कांलोनी में एक महल जैसे खूबसूरत घर में रहते थे. लेकिन फिर उनके दिमाग में विचार आया की आखिर मैं यहां कर क्या रहा हूं? क्या यही मेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य है? उन्होने सोचा कि वे इतनी अति आधुनिक, सुख सुविधा संपन्न जगह रहते तो हैं लेकिन फिर भी उनका और उनके परिवार का जीवन कितनी रिक्तता से भर चुका है.
अभिनव के ज़ेहन में विशेषकर यह बात आयी है कि वे जो दूध पीते हैं, वो ऐसी गायों का होता है जिने जेनेटिक तरीके से माडिफाई करके जबरन यह दूध निकाला जाता है. उनके मन में विचार आया कि वह एक ऐसी अपसंस्कृति का हिस्सा हैं जहां गाय को माता मान कर उसका मान सम्मान नही किया जाता है बल्कि उसे मात्र एक दूध और मांस की वस्तु के रूप में देखा जाता है.
और फिर ऊनके मन के कैमरे में उनके सांस्कृतिक परिवेश की और पूरी सनातन संस्कृति की फिल्म उमड़्ने लगी. उन्हे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिये जिससे सनातन और वैदिक संस्कृति के सारे मूल्य, आदर्श; उस जीवनशैली से आज की पीढी जुड़ पाये. उनके मन में प्रकृति और पशु पक्षियों के प्रति आदर का भाव पैदा हो और वह इस प्रदूषण, बीमारी और अनियंत्रित भोग की पश्चिमी कुसंस्कृति से बाहर निकलें.
तो अभिनव गोस्वामी ने 2017 में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे, कैलिफोर्निया में अपनी सारी संपत्ति को बेच अपने परिवार के साथ भारत की ओर रूख किया. अभिनव ने अलीगढ शहर के पास स्थित छोटे से गाव खैर में अपना बसेरा डाला. यह उनका पुश्तैनी गांव है. यहां उन्होने एक गौशाला की शुरुआत की. लेकिन उनका उद्देश्य मात्र एक गौशाला की स्थापना करना भर नहीं था. अभिनव एक ऐसी अर्थव्यवस्था की नींव डालना चाह्ते हैं जिसके केंद्र में गाय हो. वे ‘cow based agriculture’ यानि गाय से जुड़े कृषि सिस्टम की स्थापना करना चाहते हैं जिसमे गाय को सिर्फ दुग्ध उत्पादन के स्त्रोत के रूप में न देखा जाये. बल्कि गाय से जुड़ी एक पूरी इकांनमी हो जिसमे गाय के गोबर से बांयोफर्टिलाइज़र, बांयोमीथेन, यहां तक की बांयोएलेक्टृसिटी तक का भी उत्पादन हो.
अभिनव गोस्वामी भारत के प्राचीन सनातन मूल्यों और संस्कृति को न ही सिर्फ एक आधुनिक परिवेश में पुनर्जीवित कर रहे हैं बल्कि इसे नवीनतम विज्ञान और टेक्नांलजी के साथ जोड़्कर जलवायु परिवर्तन से लेकर कृषि तक के क्षेत्र में उपयोग में लाने का प्रयास कर रहे हैं.
अभिनव ने गौशाला के साथ साथ वैदिक ट्री नाम के एक संस्थान की स्थापना भी की. यह संस्थान शिक्षा, व्यवसाय से लेकर संस्कृति व पर्यटन तक के क्षेत्रों में एक वैदिक मांडल लाने के के क्षेत्र में प्रयासरत है. इस संस्थान ने एक गुरुकुल के मांडल के विद्यालय की स्थापना की है जो छात्र छात्राओं दोनों को एक आधुनिक परिवेश में वैदिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान करता है. यह संस्थान आर्गेनिक फार्मिंग यानि जैविक खेती में भी लोगों को प्रशिक्षण देता है.
खैर, अब अभिनव गोस्वामी की प्रेरणादायक कहानी को कुछ आगे बढाते हैं. अभिनव की यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है. बल्कि जो एंटर्प्राइज़ उन्होने अलीगढ के पास स्थित अपने गांव में खड़ी की, यह तो बस एक शुरुआत मात्र है.
2019 में अभिनव के मन में विचार आया कि गौशाला और वैदिक संस्कृति के इस प्रोजेक्ट को महज़ भारत तक ही क्यों सीमित रखा जाये. फिर उन्होने निश्चय किया कि वे विश्व के 100 से अधिक शहरों में इस प्रोजेक्ट को विस्तृत करेंगे.
इस की शुरुआत अभिनव गोस्वामी ने अमरीका से की. और एक बार फिर अपने पूरे परिवार के साथ वे अमरीका में नये सिरे से जा बसे! इस बार उन्होने अमरीकी क्षेत्र टेक्सास के हाउस्टन शहर को अपना ठिकाना बनाया. और हास्टन में ही गौशाला खोली. इस गौशाला का मुख्य उद्देश्य है अमरीका की भारतीय नस्ल की गायों को संहार से बचाना. अमरीका में जो भारतीय नस्ल की गायें होती हैं, उनमे से अधिकतर का इस्तेमाल गाय का मांस हासिल करने के लिये ही किया जाता है. इसी के लिये उनकी निर्मम हत्या कर दी जाती है. भारतीय नस्ल की गायों को इसी अत्याचार से बचाने के लिये और उन्हे एक सुरक्षित आवास प्रदान करने के लिये अभिनव ने इस गौशाला की स्थापना की.
अभिनव की इस गौशाला में फिलहाल कुछ की गाय हैं. लेकिन उन्हे और उनके परिवार को खुशी है कि कमसकम वे कुछ गायों का जीवन बचा पाने में तो सफल रहे हैं. कुछ ही समय में हास्टन, टेक्सास की यह गौशाला लोगों के बीच खासा लोकप्रिय भी हो गयी है. लोग यहां आते हैं, एक पारंपरीक गौशाला का कामकाज देखते हैं, गायों के साथ प्रकृति की गोद में कुछ समय बिताते हैं और अपने साथ ढेरों यादें वापस ले जाते हैं.
टेक्सास गौशाला में अभिनव व उनके परिवार ने एक पारंपरिक चूल्हा भी लगाया है जहां लोग चूल्हे पर सिंकी ताज़ी रोटियां खाते खाते कुछ दूर से गऊ माता के दर्शन करने का आनंद उठा सकते हैं. वे यहां एक ऐसा स्पेस भी शुरू करना चाते हैं जो कि थियेटर और क्लासरूम दोनों का काम कर सकें. वह एक ऐसी जगह बने जहां भग्वदगीता आदि के उपदेश हों. साथ ही शास्त्रीय संगीत और नृत्य से जुड़े कार्यक्रम हो.
अधिकतर लोग जीवन में एक समय के बाद एक प्रकार का स्थायित्व चाहते हैं, ठहराव चाहते हैं. इसीलिये अधिकतर का लक्ष्य भी यही होता है कि एक ऐसी नौकरी मिल जाये जिससे परिवार सुखपूर्वक रह सके. बस यहीं तक उनके सपनों की उड़ान होती है. कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बेशकीमती शोहरत चाहते हैं. लेकिन ऐसे लोग बिरले ही देखने को मिलते हैं जो कि अपने सपनों के लिये, अपने विज़न को कार्यांवित करने के लिये इतनी सहजता से जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं. और उनके सपने निजी नही होते कि उन्हे एक मशहूर गायक, चित्रकार या वैज्ञानिक बनना है. बल्कि उनके जो सपने होते हैं, वे एक पूरे समुदाय और संस्कृति के उदय से जुड़े होते हैं. अभिनव गोस्वामी का सपना भी कुछ ऐसा ही है.
References
बहुत सुन्दर
धन्यवाद
अभिनव जी का उद्यम सर्वोत्तम है, गोवंश की सेवा ही गोत्र का कल्याण है। गाय से पञ्चगव्य के अतिरिक्त “पाँच पत्ती इन्सेक्ट रेपेल्लन्ट” जो कि नीम , अकवन, गोमूत्र आदि से बनता है, को व्यावसायिक स्तर पर बनाकर केमिकल इंसेक्टिसाइड के दुष्परिणाम (कैंसर आदि) से बचा जा सकता है।
मैं प्रसन्न हूँ और आपके फार्म पर अवश्य ही पधारूँगा, जयतु भारतस्य भारतः
नमस्ते