भारत के जनजातीय समाज की क्रिश्चियन मिशनरियों द्वारा धड़ल्ले से चल रही जन परिवर्तन की मुहिम एक ऐसा सत्य है जिसके बारे में जानते तो सब हैं लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिये मीडिया से कोई भी खबर या जानकारी ढूंढ निकाल पाना लगभग असंभव ही है!
और ऐसा इसीलिये है क्योंकि भारत का लेफ्ट लिबरल मीडिया बड़ी ही चालाकी से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गुहार लगाकर धर्मांतरित हुए जनजातीय समाज को भी उसी में जोड़ देता है. पूरी पटकथा को इस तरह पलट देता है कि यदि कोई उनके धर्म परिवर्तन का मुद्दा उठाने की कोशिश भी करेगा तो उसके बारे में तुरंत कह दिया जायेगा कि यह तो अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर रहा है, उन्हे इसीलिये टार्गेट कर रहा है क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं.
भारत के जनजातीय समाज को भारत ही के खिलाफ खड़ा करना एक पूरा वैश्विक षड्यंत्र है. और यहां के जनजातीय क्षेत्रियों में सक्रिय बड़े बड़े एन जी ओ, क्रिशियन मिशनरियां, बहुत से तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और देश भर का लेफ्ट लिबरल मीडिया इस षड्यंत्र के परिचालक हैं.
भारत के कुल क्षेत्रफल का 21 प्रतिशत हिस्सा जंगल है जिसका 60 प्रतिशत हिस्सा जनजातीय है. उस पर से भारत के मुख्य खनिज 90 प्रतिशत जनजातीय क्षेत्र में हैं. जनजातीय समाज भारत की आबादी का 8 प्रतिशत हिस्सा है. तो इन सभी तथ्यों पर गौर करते हुए ऐसा बिल्कुल कहा जा सकता है कि जनजातीय समाज को भारत से अलग करने की मुहिम छेड़ी जा रही है. और इस मुहिम की सबसे प्रमुख कड़ी है उन्हे हिंदू धर्म से अलग करना, बल्कि उनके मन में हिंदू धर्म के प्रति नफरत और घृणा उत्पन्न करना.
आप भारत के जनजातीय समाज से जुड़ी कोई भी न्यूज़ पढेंगे जो कि लेफ्ट लिबरल मीडिया आउट्लेट्स से आती हो, ज़ाहिर सी बात है उस न्यूज़ की पहुंच बहुत होगी, सर्च इंजन गूगल भी आपको पहले कुछ पेजेज़ में वही न्यूज़ दिखायेगा. तो ऐसी न्यूज़ में अधिकतर यही सब खबरें पढ्ने को मिलती हैं कि किस प्रकार बाकी का भारत जनजातीय समाज का शोषण कर रहा है, उन्हे देश के विकास का कोई लाभ नही मिल रहा, उनकी संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है, वगैरह, वगैरह.
फिर कुछ खबरें जनजातीय समाज के दलितों का मुद्दा उछालती हैं कि किस प्रकार हिंदू धर्म की दमनकारी जाति प्रथा के चलते जनजातीय दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, उन्हे हीन माना जा रहा है. जबकि यह बात लेफ्ट लिबरल मीडिया वाले भी जानते हैं कि हिंदू धर्म कभी भी अपनी खुद की आलोचना करने से परहेज़ नहीं करता और इसी वजह से जाति प्रथा से जुड़ी कई कुरीतियां खत्म होने की कगार पर हैं.
लेकिन यहां अहम बात यह है कि हिंदू धर्म के बारें में जो बातें यह मीडिया प्रकाशित करता है, यह बातें जनजातीय समाज के भीतर भला फैलाता कौन है. वहां सक्रिय ईसाई मिशनरियों के लोग खुल्लम खुल्ला ऐसे कार्यक्रम आयोजित करवाते हैं जहां जनजातीय समाज को हिंदू धर्म के खिलाफ ब्रेनवाश किया जाता है. और तो और, हर वर्ष 9 अगस्त को मनाये जाने वाले ‘विश्व मूल निवासी दिवस ‘ के अवसर पर ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं.
जहां तक ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ की बात है तो यह अपने आप में ही संदेह के घेरे में आता है. पिछले कुछ वर्षों से मनाया जा रहा यह दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत आता है. और यह तथाकथित ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ फस्ट वर्ल्ड यानि विकसित दुनिया के दोगुलेपन का उत्कृष्ट उदाहरण है! अमरीका, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया सरीखे विकसित देशों ने ने खुद के यहां के सारे मूल निवासियों का तो पलायन करवा दिया. और जो वहां बचे हैं, वे वहां दूसरे दर्जे की नागरिकता का जीवन जी रहे हैं. नेटिव अमरीकियों पर गोरों द्वारा ढाई गयी यातनाओं का ऐसा रोंगटे खड़े कर देने वाला इतिहास है जिसके बारे में आज कोई भी बात नहीं करता. और फिर इतिहास के भूत को अपने मन से भगाने करने के लिये विकसित दुनिया ने यह ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का ढकोसला कर डाला.
इस ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ के दिवस के पीछे की राजनीति यह भी है कि इसके माध्यम से विकासशील देशों के जनजातीय समाज पर विकसित दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित किया जाये, यहां के लोगों के मन मे उस देश के मुख्य धर्म के प्रति इतनी नफरत भरी जाये कि वे सब अपने देश के ही खिलाफ खड़े होने को तैयार हो जायें. और उनसे ऐसा करवाने के लिये ईसाई धर्म को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाये. जिससे ईसाई धर्म की धर्मांन्धता में डूबा जनजातीय समाज अपने ही देश के लोगों को अपना दुश्मन समझने लगे.
और यहां बात स्र्फ धर्म की नहीं है. यहां बात आर्थिक प्रलोभनों की है. भारत पर और अफ्रीका के देशों पर ब्रिटेन ने पहले के समय में कब्ज़ा क्यों किया? क्योंकि उसे इन देशों के खनिज पद्दार्थों को लूटना था. तो आज भी नियो कलोन्यलिज़्म के अन्तर्गत ईसाई धर्म की आड़ में विकसित दुनिया भारत के जनजातीय क्षेत्रों में कुछ् ऐसा हे करने का प्रयास कर रही है.
सबसे बड़ी विडम्बना की बात तो यह है कि जहां एक तरफ भारत का जनजातीय समाज बड़े ही ज़ोर शोर से 9 अगस्त को ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ मनाता है, वहीं अमरीका के मूलनिवासी इस दिन का बहिष्कार करते हैं. वे इस दिन को अमरीकी नरसंहारों का दिन मानते हैं. बल्कि हर 9 अगस्त को कई हज़ार लोग संयुक्त राष्ट्र संघ के बाहर इस दिन के विरोध में आंदोलन करते हैं.
लेकिन यह बहुत दुख की बात है कि भारत में इस दिन को कई इकाइयों द्वारा अपने एजेंडे की पूर्ति के लिये एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. जनजातीय समाज के लिये देश विदेश की कई संस्थायें अलग धर्मकोड के लीये या फिर 2021 की जनगणना में हिंदू धर्म से अलग किसी धर्म की मांग के लिये लगातार लाबिंग कर रही हैं.
इस सब षड्यंत्र का एकमात्र उपाय है कि जनजातीय समाज की खुद की आंतरिक चेतना का विकास हो. अभी जो कुछ भी वे बोल रहे हैं, वह सब कुछ बड़े ही सुनियोजित तरीके से उन पर थोपा जा रहा है. यह उनकी खुद की सोच नहीं है. जनजातीय समाज को ऐसे निष्पक्ष नेतृत्व की ज़रूरत है जो बिना किसी स्वार्थ के उनके हित को देश हित के साथ जोड़्ते हुए उनके विकास के लिये कार्य करे. और ऐसा नेतृत्व तभी संभव हई जब उनके खुद के समाज के प्रतिनिधि इस देश विरोधी प्रोपोगैंडा को काउंटर करने के लिये आगे आयें.