अभी हाल ही में दो घटनाएं हुईं और उन घटनाओं का सम्बन्ध स्त्रियों से है। इन दोनों घटनाओं की पृष्ठभूमि में स्त्री अस्मिता है। परन्तु दोनों ही घटनाओं को देखे जाने के नजरिये में अंतर है। एक मामला आया केरल से! जी हाँ वही केरल जहां की सकारात्मक बातें तो हमारे लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग तक पहुँचती हैं, मगर केरल में जो गलत कार्य होते हैं, स्त्रियों के प्रति जो अत्याचार होते हैं, उनपर पूरी बिरादरी मौन रहती है। यह मौन क्यों है? यह मौन किसलिए है? और भाजपा से जुडी हुई स्त्री के साथ कोई कुछ भी कर दे, इन्हें वह स्त्री ही गलत लगेगी।

यह लोग इस बात पर लम्बे लम्बे विमर्श और लेख लिखेंगे कि कैसे सनी लिओनी की यौनिक स्वतंत्रता का स्वागत करना चाहिए, उसे गलत नहीं समझना चाहिए आदि आदि! जबकि देखा जाए तो सनी लिओनी को लेकर विरोध हुआ भी नहीं था, तो उसके समर्थन में विमर्श क्यों लिखा जाना चाहिए था यह समझ से परे की बात है। वहीं यदि टिकटोक स्टार और भाजपा नेता सोनाली फोगट अपशब्द कहने वाले किसी अधिकारी पर हाथ उठा दे तो उसे टिकटोक पर नाचने वाली और सत्ता का घमंड रखने वाली कहेंगे। क्या सोनाली फोगट का विरोध इसलिए कि वह टिकटोक स्टार है? मगर यह तो कोई विरोध का कारण नहीं! क्या इसलिए कि वह भाजपा की नेता है? हाँ, विरोध का कारण यही है। भाजपा या कहें वामपंथ न मानने वाली हर स्त्री इनकी नजर में वैश्या है।
परन्तु एक नजर जरा केरल में कही गयी एक बात पर डालते हैं। दृष्टिभ्रम है हमारे लेखक और बुद्धिजीवियों को, उन्हें अमेरिका में हो रही घटनाएं दिखती हैं मगर केरल में कही गई बातें नहीं! वह सुनते नहीं हैं। केरल की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष एमसी जोसेफिन ने शुक्रवार को एक सवाल के जबाव में कहा कि सीपीएम एक न्यायालय और पुलिस स्टेशन दोनों ही है। इसलिए अगर पार्टी ने अपनी तरफ से जांच कर ली है, तो स्त्रियों को पुलिस के पास जाने की जरूरत क्या है? उनसे जब यह प्रश्न पूछा गया कि आयोग उन मामलों में क्या कार्यवाही करता है जब सीपीएम के नेता आरोपी होते हैं।
सीपीएम नेता पीके सासी पर लगे हुए आरोपों के सम्बन्ध में यह सवाल जब उनसे पूछा गया था, तो जोसेफिन ने यह कहा कि आयोग को इस मामले की जांच करने की कोई जरूरत नहीं है। पीड़िता ने जब कह दिया है कि पार्टी द्वारा की गयी जाँच ही काफी होगी। आइये जानते हैं कि यह मामला क्या है? क्योंकि वामदलों में हो रहे स्त्री शोषण के मामले सामने नहीं आ पाते हैं। फासीवाद से लड़ाई के नाम पर स्त्रियों की शिकायतों को दबाया जाता है। परन्तु फिर भी कई स्त्रियाँ ऐसी हैं जो शिकायत करती हैं, इस आस में कि उन्हें न्याय मिलेगा। मगर न्याय तो पार्टी का मुख ताकता है, न्याय उन्हें न्यायालय से नहीं पार्टी से मिलता है, और वही पार्टी अपनी स्त्री कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय करती है जो स्त्री अधिकारों की सबसे बड़ी पैरोकार बनती है। यह पार्टी है जिसे न ही पुलिस की जांच पर भरोसा है और न ही भारतीय संविधान द्वारा दिए जाने वाले न्याय पर। वह अपनी अदालत लगाती है, वह अपनी जांच करती है। और कभी कभी जांच के नाम पर पीडिता को ही प्रताड़ित करती हैं। वर्ष 2018 में एक महिला कार्यकर्ता ने पल्लकड़ जिले के शोरनुर के विधायक ससी पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था। राज्य इकाई ने उसकी बात नहीं सुनी थी और उस महिला ने निराश होकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, सीता राम येचुरी से शिकायत की थी।
एक बात इसमें गौरतलब है कि हर मामले पर संविधान की दुहाई देने वाले वामपंथी अपनी पार्टी की महिला नेताओं को भारतीय नहीं केवल वामपंथी समझते हैं। वह पार्टी से जुडी हैं, भारत से नहीं! मामला जब बढ़ा और मीडिया में यह बात आई तो आनन फानन में जांच करके माकपा सरकार ने 6 महीने के लिए निलंबित कर दिया था।
परन्तु क्या यौन उत्पीडन के लिए यही सजा पर्याप्त है? महिला अधिकारों का दावा करने वाली पार्टी ने क्यों अपनी नेता की शिकायत पुलिस में नहीं होने दी और क्यों अपने विधायक को वह सजा नहीं होने दी जो एक यौन उत्पीडन करने वाले को मिलनी चाहिए थी? आईपीसी की धारा 354क आईपीसी- यौन उत्पीड़न के अनुसार जो व्यक्ति –
किसी महिला को गलत निगाह रखते हुए छूता है; या
उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता है; या
उसे उसकी इच्छा के विरूद्ध अश्लील साहित्य/पुस्तकें दिखाता है; या
उस महिला पर अश्लील टिप्पणी/छीटाकशी करता है,
वह यौन उत्पीड़न का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। और इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि यह समझौता करने योग्य नहीं है।
मगर भारतीय संविधान को कब वामपंथी मानते हैं! उनके लिए तो उनका संविधान अलग है, उनके लिए उनका झंडा अलग है और कभी कभी तो लगता है कि उनके लिए उनका देश ही अलग है। यह तो कम से कम उनका देश नहीं है।
जब केरल की महिला आयोग की अध्यक्ष यह कहती हैं कि वह राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हो सकती हैं, मगर वह कम्युनिस्ट पार्टी से हैं। उन्होंने कहा कि मेरी पार्टी के अलावा कोई भी और पार्टी नहीं है जो महिलाओं के मुद्दे पर इतना कठोर दंड देती हो। इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं जानती हूँ कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं, उस मामले में परिवार के ही सदस्यों ने, जो कि पार्टी के कार्यकर्ता हैं, बताया कि उन्हें पार्टी से लिया हुआ निर्णय चाहिए।
यहाँ तक तो ठीक था, मगर उसके बाद उन्होंने जो कहा है उससे पार्टी की भारत विरोधी विचारधारा स्पष्ट होती है, उन्होंने कहा “हमारी पार्टी ही कोर्ट और पुलिस स्टेशन है। इस सम्बन्ध में किसी भी नेता के प्रति कोई दया नहीं दिखाई जाएगी!”
महज़ दो ही वाक्य में इस नेता ने अपनी पार्टी के देशद्रोही, और महिला विरोधी चरित्र को उधेड़ कर रख दिया है। जब यह लोग विपक्ष में होंगे तब इनके लिए देश का संविधान महत्वपूर्ण होगा मगर जैसे ही यह लोग सत्ता में आएँगे इनकी अपनी अदालत होती है, अपनी पुलिस और अपना ही संविधान! अर्थात देश के भीतर एक ऐसा देश जिसमें देश का संविधान लागू नहीं होता। यह अपने विधायकों को अपनी मर्जी से क्षमा करते हैं और महिला कार्यकर्ताओं के साथ होने वाले यौन शोषण को बाहर आने ही नहीं देते।
और यही लोग हैं, जो अपनी महिला कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी में आवाज़ नहीं उठाने देते और भाजपा या राष्ट्रवादी महिलाओं का रोज़ चरित्रहनन करते हैं। कल उनके लिए सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी थी, आज सोनाली फोगट है और कल और कोई होगा।
सोनाली फोगट ने जो कार्य किया है उसके लिए क़ानून सजा देगा, परन्तु यदि वाकई उस व्यक्ति ने अपशब्द कहे हैं तो? खैर हमारे लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग की निगाह जल्द ही वहां तक पहुंचे, हम यह उम्मीद ही कर सकते हैं। और वामपंथी कभी भारतीय क़ानून को मानेंगे यह तो सपने में भी उम्मीद नहीं कर सकते हैं और वह अपनी ही महिला कार्यकर्ता को इंसान नहीं समझते तो बाकी को क्या और क्यों समझेंगे यह भी प्रश्न ही है!