इनका दारुण अंत है निश्चित (भाग-1)
धर्म – सनातन की धरती पर , कैसे इतने पापी आये ?
कितने अवतार अनवरत आये ? पाप नष्ट करने आये ।
इसके पीछे चार हैं कारण , स्वार्थ , लोभ , भय , भ्रष्टाचार ;
धर्म – सनातन से जब दूरी , तब ये चारों लेते आकार ।
इनका दारुण-अंत है निश्चित , कुछ भी न रह जायेगा ;
यदि हिंदू ! सही राह न आया , दारुण-अंत निकट आयेगा ।
घोर पाप बढ़ रहे देश में , जिसका प्रतीक अब्बासी-हिंदू ;
आंख मूंद कर करे भरोसा , महामूर्ख अज्ञानी – हिंदू ।
स्वयं बढ़ रहे मृत्यु-मार्ग में , सही-राह न चुनना चाहें ;
उसको कौन रोक सकता है ? आत्महत्या जो करना चाहे ।
ये आत्महत्या भी नहीं समझते , बने हुये भेंड़ों का झुंड ;
अब्बासी – हिंदू डंडे से हांके , जेहादी काटें रुंड – मुंड ।
चेतावनी ! अंतिम ये समझो , हिंदू ! तुम न बच पाओगे ;
मृत्यु-मार्ग पर अगर चले तो , मृत्यु-तुल्य जीवन पाओगे ।
धर्म और सम्मान न होगा , जिम्मी तुमको बनना होगा ;
अब्बासी-हिंदू की ये साजिश है, बहुसंख्यक को मरना होगा ।
धर्म से दूर हैं जितने हिंदू , अब्बासी-हिंदू के वही पास हैं ;
एक – एक मारे जायेंगे , जिनको उस पर विश्वास है ।
विश्वासघात की मिट्टी से ही , अब्बासी-हिंदू पूर्ण बना है ;
अलतकिया की सामग्री है , गजवायेहिंद के लिये बना है ।
लफ्फाजी और जुमलेबाजी , रग – रग में है धोखेबाजी ;
चरित्रहीनता के सागर में , खाता रहता है कलाबाजी ।
धर्म से दूर अज्ञानी-हिंदू , तिलक-त्रिपुंड में फंस जाता है ;
कालनेमि के झांसे में आकर , अपना सब-कुछ लुटवाता है ।
लगता है कि प्रबल है होनी , हिंदू ! नहीं सुधरने वाला ;
सिविल-वार होने वाला है , खून का दरिया बहने वाला ।
फिर भी बुद्धिमान जो हिंदू ! धर्म-सनातन के अनुयायी ;
उनकी रक्षा धर्म करेगा , धार्मिक-सद्बुद्धि जिन्हें आयी ।
चरित्रहीन या कायर-हिंदू , जिनको सद्बुद्धि नहीं आयी ;
निश्चित उनकी कटेगी गर्दन , जो अब्बासी-हिंदू के अनुयायी ।
मरने वालों की अंतिम-इच्छा , भी न पूरी हो पायेगी ;
जैसी करनी वैसी भरनी , जिनको सुमति न आयेगी ।
जहां सुमति तहां संपति नाना,जहां कुमति तहां विपति निधाना
ज्यादातर को सुमति नहीं है,इसी से निश्चित विपति का आना ।
धर्म-प्राण जितने हैं हिंदू ! स्वाभाविक इनका सुमति का पाना ;
धर्म-विरोधी जितने हिंदू हैं , धोखा खाकर निश्चित मिट जाना ।