उत्तराखंड में हरीश रावत की सत्ता में वापसी पर कांग्रेस बड़े गुमान के साथ जश्न मना रही है। बड़े गुमान के साथ लोकतंत्र की जीत के नारे लगाने के लिए कांग्रेस ने राज्यसभा में भी हंगामा मचाया। अपने दस विधायकों को खो देने के बावजूद कांग्रेस के नेता होली-दिवाली साथ-साथ मना रहे हैं। मनानी भी चाहिए आखिर जोड़-तोड़ और रिश्वत देने के बाद उत्तराखंड में हरीश रावत फिर से मुख्यमंत्री बन गए। लोकतंत्र की जीत बता रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी उत्तराखंड कांग्रेस में तो लोकतंत्र कायम नहीं रख पाए। इस वजह से कांग्रेस के नेता लगातार पार्टी छोड़ते जा रहे हैं। जिस सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लग रहे हैं, उनका जवाब भी कोई नहीं दे रहा। लोकतंत्र की बेदी पर अपने को शहीद बता रहे हरीश रावत को अभी तो कई संकटों का सामना करना होगा। फिलहाल तो स्टिंग ऑपरेशन की आंच की तपिश से झुलसे रावत को कई सवालों के जवाब देने हैं। एक के बाद एक घोटाले में घिरते जा रहे हरीश रावत को बनाए रखने में कांग्रेस की मजबूरी भी सामने आ ही जाएगी।
जोड़तोड़ और विधायकों को खर्चे पानी के लिए 25 लाख रुपये की पहली किश्त देने के सहारे दोबारा से सत्ता में आई कांग्रेस केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी को निशाना बना रही है। फ्लोर टेस्ट में पास हुए रावत और समर्थक ऐसे जता रहे हैं कि जैसे भाजपा को बड़ी करारी हार दी गई है। राजनीति में कांग्रेस इस तरह के कारनामें अक्सर करती रही है। दलबदल कानून भी कांग्रेस की ऐसी हरकतों के कारण ही बना। भाजपा ने कांग्रेस से बगावत करने वाले नौ विधायकों को सहारा दिया। सहारा नहीं देते तो भी यह होता कि भाजपा ने हाथ आया मौका गंवा दिया। हरीश रावत से नाराज विधायक बार-बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का समय मांग रहे थे। कांग्रेस आलाकमान ने उनकी शिकायत को अनसुनी कर दिया। इन विधायकों को लग रहा था कि ऐसे ही उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार चलती रही तो कांग्रेस का नुकसान होगा। कांग्रेस आलाकमान ने विधायकों की बातों पर गौर नहीं किया। इससे पहले भी कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर भाजपा के साथ आए थे।
उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष की कार्यशैली पर भी सवाल उठेंगे। नौ बागी विधायकों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। अच्छा यह होता है कि बागी विधायकों पर फैसला पहले ही हो जाता। अभी राज्यसभा के चुनाव भी होंगे। बेहतर यही होगा कि विधायकों की सदस्यता पर जल्दी फैसला हो। सदन में विनियोग विधेयक पर मतदान की भाजपा की मांग पर कांग्रेस के ही नौ विधायक भी समर्थन में खड़े हो गए। इस बगावत का खामियाजा नौ विधायकों को दलबदल कानून के तहत अपनी सदस्यता गंवाकर भुगतना पड़ा। करीब डेढ़ वर्ष से हरीश रावत का साथ दे रहे विधायक भीमलाल आर्य भी फ्लोर टेस्ट के दौरान कांग्रेस के पक्ष में खड़े नजर आए। नौ विधायकों की सदस्यता रद्द करने वाले विधानसभा अध्यक्ष ने भाजपा से बगावत करने वाले विधायक की सदस्यता को रद्द नहीं किया।
हरीश रावत के खिलाफ दो स्टिंग सामने आ चुके हैं। एक स्टिंग को लेकर भाजपा ने अपने अध्यक्ष को भी हटा दिया था तो सौदेबाजी के स्टिंग ऑपरेशन के बाद हरीश रावत के पीछे कांग्रेस क्यों पूरा जोर लगा रही है। इससे पहले हरीश रावत के पीएस रहे एक आईएएस आबकारी घोटाले में फंसे थे। हरीश रावत को विधायकों को रिश्वत देने के आरोपों का जवाब केंद्रीय जांच ब्यूरो को देना है। सीबीआई ने रावत को पूछताछ लिए बुलाया था, पर उन्होंने जाने से इंकार कर दिया। कह रहे हैं कि केंद्र के दवाब में काम कर रहा है सीबीआई। रावत भी केंद्र में मंत्री रहे हैं और उन्हें पता सीबीआई कैसे काम करती है। उत्तराखंड पुलिस जैसी है नहीं है सीबीआई कि मुख्यमंत्री ने कहा कि विरोधियों के काम तमाम कर दो और काम हो जाए। कमाल की बात तो यह है कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले में सीबीआई का इस्तेमाल करने और हलफनामा बदलने वाले कांग्रेस के नेता अब सीबीआई पर भी आरोप लगा रहे हैं। रावत को कम से कम विधायकों को खर्चे पानी के पैसे देने के मामले पर जवाब तो देना चाहिए। सवालों के जितने बचेंगे, उतना ही कांग्रेस का राज्य में नुकसान होता जाएगा।
जोड़तोड़ करके सरकार तो बना ली। बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक भी कांग्रेस के साथ चले गए। अब इन्हें संभालने के लिए रावत को मुहंमांगी कीमत देनी पड़ेगी। जो भी मांगेंगे रावत को देना पड़ेगा। जाहिर है भ्रष्ट तरीके भी अपनाए जाएंगे। पहली बात तो यह है कि भाजपा को तो कोई नुकसान नहीं हुआ। कांग्रेस के विधायक बागी हुए, भाजपा ने अल्पमत में आई सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया। ऐसे में कोई भी सरकार यही करती। नुकसान तो कांग्रेस को हुआ है और आगे भी होगा। फौरी तौर पर जश्न मनाने वाली कांग्रेस को यह नहीं दिखाई दे रहा कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उत्तराखंड की सत्ता से भी बाकायदा लोकतांत्रिक तरीके से बेदखल हो सकती है। वह भी तब जबतक सरकार चले। बागी विधायकों पर सुप्रीम कोर्ट फैसला भी आएगा। विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका भी सामने आएगी। सवाल तो यह भी है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी के खिलाफ कैसे खड़ी होगी। कांग्रेस पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ है तो केरल में विरोध में खड़ी है। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले कांग्रेस के नेताओं को अपने कारनामे भी देखने चाहिए। हरीश रावत के खास विधायक भी कह रहे हैं कि काम कराने के लिए उत्तराखंड के अफसरों को घूस देनी पड़ती है।
उत्तराखंड में सरकार बनाने में कांग्रेस जरूर कामयाब हो गई है, पर भाजपा इस मामले में जीत गई कि हरीश रावत का भ्रष्टाचार सामने आ गया। लोकसभा में तीस साल में 440 से 44 सीट तक आ गई कांग्रेस उत्तराखंड में भी अगले चुनाव में कुछ सीटों तक ही सिमट जाएगी। सरकारी भ्रष्टाचार के साथ ही जनता कांग्रेस के विधायकों के खर्चे-पानी मांगने के खुलासे पर क्या करेगी, यह सब जानते हैं।