विपुल रेगे। ठीक इस समय देश का वातावरण बड़ा ही विचित्र हो रखा है। सत्तासीन केंद्र सरकार आगामी चुनाव में जीत के लिए हर हथकंडा अपनाती दिखाई दे रही है। सरकार ऐसा कोई कोना छोड़ना नहीं चाहती, जहाँ उसका कोई योगदान न दिखाई दे। अयोध्या में श्री राम मंदिर बनने के बाद सत्तारुढ़ भाजपा बार-बार याद दिलाती रही कि यदि सत्ता में नरेंद्र मोदी न होते तो सनातनियों को भव्य मंदिर नहीं मिलता। मंदिर बन जाने के बाद भी भाजपा श्रीराम की ‘राजनीतिक विरासत’ मुट्ठी में कैद करना चाहती है, क्योकि उसे लगता है कि अब भी इस गन्ने से बहुत सा चुनावी रस निकाला जा सकता है।
वर्ष की शुरुआत में अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हुआ। राम मंदिर उद्घाटन से पहले और बाद में देखा गया कि भारतीय जनता पार्टी ने राम जी को अपनी राजनीति का हथियार बना लिया था। सत्तारुढ़ भाजपा को ये आशा नहीं थी कि मात्र तीन माह में श्रीराम को लेकर तैयार किया विराट माहौल इस तरह बर्फ की तरह ठंडा हो जाएगा। जनवरी में राम मंदिर खोला गया और मार्च आते-आते तो राम मंदिर के समाचार पटल से गायब होने लगे। सोशल मीडिया पर राम जी को लेकर एक ठंडापन आ गया। इस परिणाम के लिए भाजपा तैयार नहीं थी।
अब श्रीराम के ज़रिये भाजपा की राजनीतिक उपलब्धि जनता को याद आए इसके लिए दूरदर्शन पर रामजी के लाइव प्रसारण की व्यवस्था की गई है। हर दिन सुबह 6 बजे दूरदर्शन पर रामजी के दर्शन सुलभ होंगे। पिछले दिनों केंद्र सरकार बड़ी मुसीबतों में उलझ गई। इन मुसीबतों का दर्शन आजकल न्यूज़ चैनलों पर नहीं होता क्योकि चैनलों को मोदी जी की स्तुति करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिया गया है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति रुकवाने के लिए कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट चली गई है। इलेक्टोरल बांड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट भंयकर ढंग से सख्त हो गया है। 12 मार्च की शाम तक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को चुनावी बांड से सभी जानकारियां सार्वजनिक करनी है।
ऐसी घबराहट में राम का नाम याद नहीं आएगा तो और किसका आएगा। भाजपा ने राम मंदिर का सतत इस्तेमाल किया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर को अपना मुख्य मुद्दा बनाया था जबकि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने तो चुनाव प्रचार में वादा किया कि ‘अगर मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बनी तो रामलला के मुफ्त दर्शन के लिए सहयोग करेंगे।’ यानी कि मंदिर बन जाने के बाद भी राम जी का इस्तेमाल करना पार्टी छोड़ नहीं सकती। राम लला के मुद्दे पर जितना भी रस बचा है, वह भाजपा किसी भी कीमत पर निकाल लेना चाहती है।
आपको तो संपूर्ण देश को राम जी के मुफ्त दर्शन कराना चाहिए, क्योंकि उनके नाम का इस्तेमाल का आज आप सत्ता भोग कर रहे हैं। राम जी के दर्शन कराने के लिए भी आप चाहते हैं कि नागरिक पहले आपको वोट करे। जनवरी में आपने राम लला के दर्शन शुरु करवाए और मार्च समाप्त होते-होते आप सुप्रीम कोर्ट के शिकंजे में फंसते दिखाई दे रहे हैं। इसका अर्थ कि श्रीराम भी आपके कार्यकलापों से खुश नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी के पहले और बाद के अपीयरेंस में काफी अंतर दिखाई देता है। पिछले तीन दिनों से वे मंचों से 370 पार की गारंटी देते हैं लेकिन मुखमंडल कुछ और ही बयां करता है।
अब उनके चेहरे पर परेशानी के भाव जागृत होने लगे हैं। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, इलेक्टोरल बांड्स का खुलासा, महाराष्ट्र की राजनीति में मच रही खींचतान और सतह के नीचे से लगातार आक्रामक हो रही एंटी इंकम्बेंसी की लहर के चौतरफा हमलों से घिरी मोदी सरकार को पुनः श्रीराम का सहारा लेने की नौबत आ गई है। भाजपा को आशा नहीं थी कि करोड़ों की लागत से श्रीराम को लेकर खड़ा किया गया उनका भव्य प्रचार तंत्र यूँ तीन माह में दम तोड़ देगा। अब दूरदर्शन पर राम लला को लाइव दिखाकर इस मुद्दे को पुनर्जीवित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ वाला शर्मनाक वचन हमको भुलाए नहीं भूलता। कैसे व्यक्तिवाद को ईश्वरीय सत्ता से ऊपर दिखलाने का प्रयास किया गया था।
गलत परंपराएं ऐसे ही जन्म नहीं ले पाती। पहले उन छिछली परंपराओं का विरोध करने वालों को समाप्त किया जाता है। फिर एक दिन ऐसा आता है, जब उस परंपरा का विरोध करने वाला नहीं रहता। फिर समाज थोपी गई परंपराओं को मानाने के लिए बाध्य हो जाता है। भारत इस समय परंपराओं के कुचले जाने और नई आने वाली कुरीतियों के बीच फंसा पड़ा है। 2024 के चुनाव के बाद के भारत की कल्पना अभी हमने नहीं की है। चुनाव के उस पार का भारत राजनीतिक अवतारवाद को सर्वमान्य ढंग से स्थापित होते देखेगा। फिर जब वह आवाज़ उठाने वालों को खोजेगा। और आवाज़ उठाने वाले तो पहले ही समाप्त कर दिए गए हैं। ये समय एक आम नागरिक के जागने का है। नागरिक का जागरण ही समाज और देश को सत्तालोलुप शक्तियों से बचा सकता है।