पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की मीडिया पर मार और दुलार की नीति पर मीडिया में चुप्पी छाई हुई है। ममता बनर्जी ने कुछ दिन पहले राज्य सचिवालय नबान्न में जमकर धमकाया और चार दिन बाद विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर स्वतंत्र होकर पत्रकारिता करने की नसीहत दी। ममता की धमकी पर पश्चिम बंगाल की मीडिया में कोई हलचल नहीं हुई। बड़े अखबारों और चैनलों ने ममता की मीडिया की धमकी को छापने और दिखाने से परहेज की बरता। 30 अप्रैल 30, 2020 को ममता बनर्जी ने पत्रकारों को ढंग से बर्ताव करने की सलाह देते हुए चेताया था। ममता का कहना था अगर वे सही से व्यवहार नहीं करते, तो उन पर वे आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केस कर सकती हैं।
ममता बनर्जी ने मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में प्रचार करने का आरोप लगाया। ममता की शिकायत की कि कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान भाजपा के लिए प्रचार कर रहे हैं। ममता ने शिकायत करते हुए कहा था मेरा मीडिया से एक अनुरोध है। जब कोई घटना होती है, तो आप सरकार की प्रतिक्रिया लेने की जहमत नहीं उठाते। बल्कि भाजपा की सुनकर एक तरफा, नकारात्मक और विनाशकारी वायरस वाहक बन जाते हैं। मुख्यमंत्री ने इसके बाद पत्रकारों से कहा कि वर्तमान में हम आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत, कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। लेकिन हम नहीं कर रहे, क्योंकि बंगाल की संस्कृति है। हम मानवता में विश्वास करते हैं। सहिष्णुता हमारा धर्म है। ममता की यह धमकी एक-दो अखबारों में ही छपकर रह गई। मामला यह था कि कुछ दिनों पहले कोलकाता के कोविड-19 के लिए समर्पित एमआर बांगुर अस्पताल के आइसोलेशन में मरीजों और शव को आसपास बेड पर रखने का वीडियो वायरल हुआ था। इसका जिक्र करते हुए ममता ने कहा था कि यह सब कुछ सरकार को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है। उनका दावा था कि कुछ लोग ऐसी खबरें चला रहे हैं कि बंगाल के अस्पतालों में कोरोना मरीजो के लिए पर्याप्त बिस्तर नहीं है। मुख्यमंत्री का कहना था कि उनकी सरकार ने 51 प्राइवेट अस्पतालों को लेकर उसे कोविड अस्पताल में तब्दील किया है और वहां मुफ्त में मरीजों की चिकित्सा हो रही है। इसके बाद 3 मई को विश्व स्वतंत्रता दिवस पर लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका की सराहना करते हुए ममता बनर्जी ने मीडियाकर्मियों से अपील की कि वह निर्भय होकर काम करें ।
ममता ने एक ट्वीट में कहा था कि वह समाज के लिए योगदान को लेकर वह पत्रकारों का सम्मान करतीं हैं। उनकी सरकार ने पत्रकारों समेत कोविड—19 के खिलाफ संघर्ष कि लिए अग्रिम मोर्चे पर तैनात लोगों के लिये दस लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था की है । मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लोकतंत्र में प्रेस चौथा आधार स्तंभ है और इसे निर्भय होकर अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिये । हम समाज के लिए योगदान को लेकर पत्रकारों का सम्मान करते हैं । कोरोना महामारी के प्रकोप को लेकर जारी लॉकडाउन में पश्चिम बंगाल सरकार और भारतीय पार्टी जनता पार्टी की जंग में ममता ने ठीकरा मीडिया पर फोड़ा। कोरोना जांच के अतंरमंत्रालय समिति टीम (आईएमसीटी) का दौरा, उनकी जांच रिपोर्ट और यह दावा कि महामारी से मरने वालों का औसत सबसे ज्यादा पस्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की नाराजगी बढ़ती जा रही है। आईएमसीटी के दौरे की खबरें मीडिया में छा गई। यह बात तो सही है कि पश्चिम बंगाल की मीडिया ममता की मार या दुलार के कारण निष्पक्षता और निर्भीकता से काम नहीं कर पा रही है।
मीडिया पर ममता के हमले के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ ने कहा कि संकीर्ण राजनीति कर रहीं ममता मीडिया को न धमकाएं। राज्यपाल ने ममता बनर्जी द्वारा मीडिया को धमकाने और विपक्षी (भाजपा नेताओं) की तुलना गिद्ध से करने की कड़ी निंदा करते हुए करारा जवाब दिया था। उन्होंने चेतावनी दी थी मुख्यमंत्री मीडिया को डराना-धमकाना बंद करें। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ममता बनर्जी पर बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि राज्य सरकार कोरोना के मामले और आंकड़े में फेरबदल कर रही है और जब सोशल मीडिया पर इन्हें उठाया जा रहा है, तो मामले दायर किये जा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया। विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया के खिलाफ बंगाल पुलिस के अभियानों पर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने बंगाल सरकार पर अभिव्यक्ति की आजादी खत्म करने का भी आरोप लगाया है। वैसे पता नहीं किसका डर था कि हुगली के तेलिनीपाड़ा हुए दंगे को एक-दो अखबारों ने प्रकाशित किया। अंग्रेजी अखबारों ने तो दंगे का जिक्र भी नहीं किया। आखिर पश्चिम बंगाल की मीडिया को किसका डर है।