अधिक अंक लाकर भी एडमिशन जब देश में नहीं मिलता तो सवर्ण छात्र बेहतर भविष्य के लिए देश न छोड़े तो क्या करे? यूक्रेन में गोलाबारी में मारे गए भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा के पिता के अनुसार, “पीयूसी में 97% अंक हासिल करने के बावजूद मेरा बेटा राज्य में मेडिकल सीट हासिल नहीं कर सका। यहां कास्ट वाइज आरक्षण पर सीट मिलता है। और निजी मेडिकल कॉलेज में सीट पाने के लिए करोड़ों रुपये देने पड़ते हैं।”
नकली दलित रोहित वेमुला के लिए आंसू बहाने वाले आज मुझसे कह रहे हैं कि यूक्रेन में मारे गये नवीन की मौत को आरक्षण से मत जोड़िए। यही आज कोई भीम-मीम वहां मरा होता तो कोहराम मच जाता। मैंने नहीं, नवीन के पापा ने यह सवाल उठाया है कि पीयूसी में 97% अंक लाकर भी उसके बेटे को मेडिकल में एडमिशन नहीं मिला, क्योंकि यहां सरकारी कालेज में कास्ट बेस्ड आरक्षण और निजी में करोड़ों की फीस लगती है। उनका वीडियो नीचे है, सुनो सरकारी हिंदुओं!
सरकरी हिंदुओं का यह भी सवाल था कि बच्चे यूक्रेन आदि विदेश पढ़ने ही क्यों जाते हैं? तो उसकी वजह यहां सरकारी कालेज में आरक्षण व्यवस्था और निजी कालोज में महंगा डोनेशन है!
यही इस देश की आरक्षण व्यवस्था का सच है तो स्वीकार क्यों नहीं करते? और रही संविधान की बात तो संविधान ने केवल SC/ST वर्ग को आरक्षित किया था। आज इस देश की घृणित राजनीति के कारण नयी-नयी जातियां OBC में शामिल की जा रही हैं, और अब तो मुस्लिम-इसाई को भी OBC की आड़ में आरक्षण दिया जा रहा है, जो संविधान की भावना के प्रतिकूल है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक अवसर दिया था इस अवैध व्यवस्था को सुधारने का, लेकिन सरकार ने संसद से कानून बनाकर इस अवैध व्यवस्था को ही वैध बना दिया। और हां, बकैतों, ‘अवैध’ शब्द सुप्रीम कोर्ट ने प्रयुक्त किया है, मैंने नहीं। और OBC की आड़ में मुस्लिम-इसाई लाभ की बात भी मद्रास हाईकोर्ट और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने हालिया के ANI साक्षात्कार में स्वीकारा है।
नीचे अखबार की कटिंग में निट का रिजल्ट देखो कि मेडिकल में टॉपर की जगह जिनको एडमिशन दिया जा रहा है, उनसे स्वयं इस देश के राजनेता और तुम जैसे षठमक्कार भी उपचार नहीं कराएंगे! नवीन की मृत्यु ने आरक्षण की विसंगतियों को उजागर कर दिया है। इस पर खुलकर विमर्श होना ही चाहिए।