ग्लोबल वांच एनलिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों के भ्रष्ट नेताओं का इस्तेमाल कर अपना मतलब पूरा करता है. यानि एशिया, लैटिन अमरीका और अफ्रीका के देशों के भ्रष्ट नेताओं के साथ सौदा कर यानि उन्हे रिश्वत दे उस देश में चीन अपने व्यावसायिक फायदों को आगे बढाता है और साथ ही उस देश के शासन तंत्र पर भी हावी हो जाता है.
रिपोर्ट के अनुसार चीन की इस रणनीति का सबसे ताज़ा उदाहरण नेपाल है जहां के प्रधानमंत्री के पी ओली चीन के प्रभाव में आकर इस कदर खुल्ल्म्खुल्ला चीन के व्यावसायिक हितों को बढावा दे रहे हैं कि उनकी खुद की पार्टी के कई नेता इस बात से असहज महसूस कर रहे हैं.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है की पिछले कुछ सालों में नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की निजी संपत्ति में खासा बढोत्तरी हुई है. उनका स्विट्ज़रलंड के जेनिवा स्थित मिराबांड बैंक में भी अकाउंट है. इस खाते में 5.5. मिलियन यू एस डांलर यानि तकरीबन 41.34 करोड़ रुपये जमा हैं. उन्होंने यह रकम लॉन्ग टर्म डिपॉजिट और शेयर्स के तौर पर इन्वेस्ट की हुई है. इससे ओली और पत्नी राधिका शाक्य को प्रत वर्ष करीब 1.87 करोड़ रुपए का मुनाफा भी मिल रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार अपने दोनों ही कार्यकालों में प्रधानमंत्री ओली ने आंफीशियल प्रोटोकांल का उल्लंघन कर और नेपाली कंपनियों के हितों को ताक पर रख कई चीनी कंपनियों को नेपाल के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़े कांट्रेक्ट्स दिये. 2018 में उन्होने चीनी कंपनी हुआवई के साथ एक डिजिटल एक्शन रूम बनाने संबंधी अनुबंध पर हस्ताक्षर किये. बिना किसी कंपटीट्व बिडिंग के यानि बिना सभी कंपनियों को औपचारिक तौर पर आमंत्रित कर उन्हे प्रतिस्पर्धात्मक बोली लगाने का मौका दे यह प्रोजेक्ट सीधे चीनी कंपनी को दे दिया गया . जबकि नेपाक सरकार की ही नेपाल टेलिकम्यूनिकेशंस कंपनी इस काम को बखूबी कर सकती थी. लेकिन फिर इस काम के लिये एक चीनी कंपनी की सेवायें ली गयीं.
रिपोर्ट के अनुसार इस प्रकार नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली के दोनों कार्यकालों में ही चीनी कंपनियों के साथ ऐसे बहुत से समझौते किये गये जो कि प्रोटोकांल का उल्लंघन करते हैं, नेपाल के व्यवसायों के हितों का उल्लंघन करते हैं और संदेह के घेरे में आते हैं. इन सभी का विस्तृत ब्यौरा ग्लोबल वांच एनलिसिस की रिपोर्ट में मौजूद है.
अब प्रश्न यह उठता है की जब चीन की कारस्तानियां एक एक कर पूरे विश्व के सामने आ रही हैं तो आखिर उसके विरुद्ध वैश्विक स्तर पर कोई कठोर कार्यवाही क्यों नही हो रही? अपनी वन बेल्ट वन रोड परियोजना से चीन ने कितने देशों को कर्ज़ में डुबो उन्हे अपना गुलाम बना लिया ह. हाँग कांग और तिब्बत के बाद अब उसका निशाना नेपाल पर है. जब चीन देशों की आजादी के लिये ही इतना बड़ा खतरा बनता जा रहा ह तो आखिर कब तक पूरा विश्व यूं चुप्पी साधे रहेगा?
जब नेपाल में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा हैं और चीन नेपाली नेताओं को पैसे दे कर खरीद रहा हैं तो ऐसे में भारत सरकार क्या कर रही है।भारत के पास क्या कमी हैं??भारत भी नेपाली नेताओं को अपने पक्ष में कर सकते हैं??