मनोहरलाल जैन। जब पृथ्वीराज फिल्म बनाई गई थी तो निर्देशक लेखक पंडित चंद्र प्रकाश द्विवेदी, जो पहले वामपंथी हुआ करते थे, और जिनके विद्वान होने की बड़ी चर्चाएँ रहती हैं.
उन्होंने सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान की जाति लोप कर दी और वहीं चंदरबरदाई जिनका असली नाम पृथ्वीराज भाट था उन्हें पृथ्वीराज भट्ट बना दिया.
पंडित चंद्रप्रकाश द्विवेदी संघ के साथ अपनी ट्यूनिंग में पूरी ऐतिहासिक फिल्म में मनमाने ढंगे से इतिहास के साथ बलात्कार करते रहे. और अपनी थोपते रहे.
भाट को भट्ट बना देना और शिखा का प्रतीक देना. और फिर पृथ्वीराज की जाति का लोप ऐसा कर देना मानों पृथ्वीराज कोई मिथकीय पात्र हों.
संघ और वामपंथ के भाईचारगी का यही रूप हमें पंडित मनोज शुक्ला “मुंतशिर” के साथ दिखता है. अभी दस वर्ष पूर्व तक वामपंथी रहे पंडित मनोज शुक्ला अब हिंदु बेच रहे हैं.
संघ के पंडित मोहन भागवत और पंडित इंद्रेश कुमार व वामपंथ के पंडित चंद्रप्रकार द्विवेदी और पंडित मनोज शुक्ला का यह कॉकटेल हिंदुत्व का कितना अपना है, यह तो आदिपुरुष स्पष्ट कर देती है.
पंडित मनोज शुक्ला “मुंतशिर” राम प्रसाद बिस्मिल का इतिहास मिटाकर उन्हें पंडित बनाकर अपने जियो तिवारी गाने में सान चुके हैं. चलिए उनको ये नहीं पता था.
लेकिन उनको इतना तो पता ही होगा कि हनुमान जी को उर्दू नहीं आती थी. साथ ही मेघनाद टैटू पार्लर गया था, यह तो किसी भी रामायण में नहीं लिखा है.
ऐसे में रामायण का यह विद्रूपीकरण क्या यूँ ही किया गया है? नहीं पंडित मनोज शुक्ला “मुंतशिर” ने यह संघ की लाइन पर ही किया है, इसके पीछे संघ का अपना एजेंडा है.
क्योंकि फिल्म से इतिहास सीखने वाले कई कूल डूड और डूडनी हैं. इसी के साथ ही विदेशों में जब यह फिल्म पहुँचेगी को रामायण उनको रोमन-इस्लामिक अधिक लगेगी.
तो संघ विदेशों में हिंदु को इस्लाम और क्रिश्चियन के साथ मिलाना चाहता है. इसीलिए आभूषणों के स्थान पर ग्रीक-रोमन योद्धाओं की कास्ट्यूम बनाई गई है.
राम को इमाम बनाना तभी ना संभव है जब हनुमान जी उर्दू में बाप की गाली देते दिखेंगे. और सीता जी, जगत जननी ना होकर लैला लगें.
संघ किसी भी तरह से हिंदु धर्म को मिटाकर अपने अनुसार का हिंदु स्थापित करना चाहता है. जिसके लिए वामपंथी पंडित चंद्रप्रकाश और पंडित मनोज साथ हैं.
यही है संघ और वामपंथ का भाईचारा जिससे वह हिंदु धर्म की मार्केट से कमाने के साथ ही, नैरेटिव पर इसको भारत से काट रहे हैं. कहानी में आग लगा रहे हैं.
उर्दू बोलते हुए, गाली बकते हुए हनुमान जी, जिहादी अधिक लगते होंगे बनिस्पत रामदूत हनुमान के. इसी तरह रोमांस करती कृति, सीता लगती हैं या लैला?
संघ के हाथों से हिंदु धर्म को बचाइए नहीं तो संघ और जाने क्या-क्या करेगा. सोचिए यह फिल्म सेंसर बोर्ड से कैसे पास हुई? आभूषण के स्थान पर लेदर बेल्ट क्या कर रही हैं.
और यह फिल्म विदेशों तक जाएगी और आज ओटीटी का युग है तो जाएगी ही तो क्या संदेश देगीं? संघ ने यह सारा कुछ जानबूझकर प्लांट करवाया है.
संघ को मिटाइए नहीं तो संघ और वामपंथ के मूर्ख इस देश को चट कर जाएंगे. धर्म प्रयोग करने की चीज नहीं होती है. उसे उसी रूप में रखना होगा.
हनुमान उर्दू नहीं बोल सकते हैं, आभूषण का स्थान ग्रीक लेदर बेल्ट नहीं ले सकती हैं, सीता लैला नहीं हो सकती हैं, रावण टैटू पॉर्लर नहीं जा सकता है.
पंडित मनोज शुक्ला को बचाने के लिए संघ की ओर से फरमान जारी हो चुका है और हर संघी लेखक सारे दोष से इनको बचाने में लगा है. इसी से सोचिए क्या है इसके पीछे.