अर्चना कुमारी। वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण सिंह बने नए हिंदू को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट ने उनके द्वारा धर्म बदलने से पहले लिखित पुस्तक मुहम्मद के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया । बताया जाता है कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि पुस्तक में पैगंबर मोहम्मद, इस्लाम और कुरान के संबंध में भड़काऊ बयान हैं।
जबकि कमर हसनैन नामक व्यक्ति ने याचिका में वसीम रिज़वी को भविष्य में इस तरह के कृत्यों को रोकने के लिए 2,05,00,000 रुपये के हर्जाना देने की मांग की थी। इतना ही नहीं इसके अलावा याची ने वसीम रिजवी को इस तरह के भड़काऊ बयान देने या उन्हें किसी भी मंच पर प्रकाशित करने से रोकने के लिए स्थायी रोक की मांग की गई थी। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके दावे को ठुकरा दिया।
जैसे कि आपको पता है वसीम रिजवी ने हाल ही में हिंदू धर्म अपनाया है और अब वह जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी के नाम से जाने जाते हैं । वह यूपी के सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष हैं और उन्होंने पूर्व में पैगंबर मोहम्मद पर एक किताब लिखी है। इस चर्चित मामले में शिकायतकर्ता शिया विद्वान होने का दावा करता है और उसका कहना था पुस्तक के कई अंश इस्लाम धर्म के खिलाफ हैं और सांप्रदायिक एकता एवं सद्भाव और शांति के लिए हानिकारक हैं।
लेकिन विद्वान जस्टिस संजीव नरूला ने टिप्पणी की कि मामले में आधार की कमी है क्योंकि मांगी गई राहत व्यक्तिगत रूप से नहीं है।अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि मामले को बनाए रखने के लिए याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत कानूनी अधिकार या कानूनी क्षति होनी चाहिए जो कि तत्काल मामले में नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिका को बनाए रखने के लिए कानून का कोई प्रावधान नहीं दिखाया गया है और इसलिए इसे खारिज किया जा सकता है।
हालाँकि, अदालत ने कहा कि भले ही मामला चलने योग्य नहीं है, अदालत ने पुस्तक की सामग्री में नहीं गया है और वादी कानून के अनुसार अपने अधिकारों का उपयोग कर सकता है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि एक व्यक्तिगत कानूनी अधिकार होना चाहिए, एक व्यक्तिगत कानूनी चोट जो वर्तमान मुकदमे को बनाए रखने के लिए वास्तविक क्षति को जन्म देती है।
वादी ने इस्लाम के अनुयायियों की ओर से अनिवार्य और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की है लेकिन कोई ठोस साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया। याची के वकील ने तर्क रखा कि उनके मुवक्किल ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में याचिका दायर की है और उक्त पुस्तक की सामग्री से व्यथित है और उसे लगता है कि उसकी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया गया है, इसलिए वह अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहता है।
उसने तर्क दिया कि पुस्तक मुहम्मद की सामग्री ने मुस्लिम के रूप में वादी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है। पीठ ने कहा कि सुनवाई के दौरान कहा पेश किए गए प्रस्तावों के समर्थन में अदालत के समक्ष कोई मामला कानूनन नहीं रखा गया। अभद्र भाषा के संबंध में विधि आयोग की रिपोर्ट का और संदर्भ दिया गया, लेकिन याचिका खारिज कर दिया गया।