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India Speaks Daily > Blog > इतिहास > भाग 3 : सरस्वती के बीज मन्त्र फर्श पर लगा दिए, ताकि अपमान हो
इतिहास

भाग 3 : सरस्वती के बीज मन्त्र फर्श पर लगा दिए, ताकि अपमान हो

Vipul Rege
Last updated: 2022/05/25 at 1:17 PM
By Vipul Rege 103 Views 6 Min Read
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विपुल रेगे। महाराज भोजदेव महान विद्याप्रेमी और कला के प्रति अनुराग रखने वाले शासक थे। उन्होंने अपने जीवन काल में ज्योतिष, योग, काव्य, धर्म, शिल्प, राजनीति, नाटक से संबंधित 34 ग्रंथों की रचना की थी। परमार शासकों के समय शिल्पकला का अत्यंत विकसित रुप दिखाई पड़ता है। वे अपने पूर्ववर्ती शिल्प से अधिक अचूक और सुंदर शिल्प बनाते थे। अपने शासन काल में राजा भोज ने कलात्मक मंदिरों और भवनों से संपूर्ण मालवा भर दिया था। भोज ने कुल 104 मंदिरों का निर्माण करवाया था, इनमे से एक भोजशाला भी थी।

भोजशाला का शिल्प

भोज ने भोजशाला को एक विद्यालय की तरह विकसित किया था। यहाँ एक खुला प्रांगण है, जिसमे एक अग्निकुंड हवन के लिए बनाया गया था। प्रवेश करते ही सामने एक बड़ा मुख्य मंडल दिखाई देता है। इसके पीछे स्तम्भों की लंबी शृंखला बनाई गई है। यही से आगे जाने पर गर्भगृह है। इसी गर्भगृह में कभी वाग्देवी की प्रतिमा लगी हुई थी। स्तम्भ नक्काशीदार हैं।

इनकी विशेषता ये है कि हर स्तम्भ पर हमें एक नई कलाकृति देखने को मिलती है। प्रार्थना गृह की सुंदर छत भोजशाला की एक विशिष्ट पहचान है। यहाँ सरस्वती के अनेक बीज मन्त्र काले पत्थर पर उत्कीर्ण किये गए हैं। इसके साथ ही इन शिलालेखों पर संस्कृत के बहुत ही दुर्लभ नाटक उत्कीर्ण किये गए हैं। इसे अर्जुन वर्मा देव के शासनकाल में उत्कीर्णित किया गया था। इस काव्यबद्घ नाटक की रचना राजगुरु मदन द्वारा की गई थी।

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जमीन पर लगे सरस्वती के बीज मन्त्र

जो विख्यात जैन विद्वान आशाधर का शिष्य था, जिन्होंने परमारों के राज दरबार को सुशोभित किया था और मदन को संस्कृत काव्य शिक्षा दी थी। भोजशाला में स्तंभों पर धातु प्रत्यय माला व वर्णमाला अंकित है। स्थापत्य कला के लिहाज से भोजशाला एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। ये एक श्रेष्ठ परमारकालीन कृति है, जिसका मेंटनेंस एएसआई बिलकुल नहीं करता। जब वसंत पंचमी आती है तो करोड़ों रुपये सुरक्षा पर खर्च दिए जाते हैं लेकिन भोजशाला का स्वरुप सुधारने के लिए कभी धन खर्च नहीं किया जाता है।

मंदिर होने के प्रमाण

ज्ञानवापी की तर्ज पर धार की भोजशाला में यदि सर्वे करवा लिया जाए तो सर्वे करने वालों को कुछ अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा। यहाँ मंदिर होने के प्रमाण हर ओर बिखरे पड़े हैं। भोजशाला का निर्माण अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से किया गया था। कहा जाता है कि यहाँ स्वयं वाग्देवी ने भोजदेव को दर्शन दिए थे। सरस्वती पुत्र होने के नाते उन पर देवी का इष्ट था। सरस्वती के बीज मन्त्र अकेले ऐसे प्रमाण हैं, जो इसे हिन्दू स्थली सिद्ध करते हैं।


छतों और दीवारों पर हिंदुत्व के प्रमाण आसानी से देखे जा सकते हैं।

पूर्व में संस्कृत के नाटक और सरस्वती बीज मन्त्र भोजशाला की दीवारों पर लगे हुए थे। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में इनको दीवार से उखड़वाकर जमीन में लगवा दिया गया। जब सर्वे करने वाले भोजशाला जाएंगे तो उनको अपने पैरों में वे मन्त्र मिलेंगे। जमीन पर बीज मन्त्र लगवाने का उद्देश्य बहुत घृणित रहा था। दिग्विजय सिंह चाहते थे कि बीज मन्त्र लोगों के पैरों में आए और वाग्देवी का अपमान होता रहे।

भोजशाला के स्तम्भों में और दीवारों में मांगलिक चिन्ह अंकित किये गए थे। ये चिन्ह अब मिटाए जा रहे हैं और इस पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कुछ नहीं कर पा रहा है। संभवत विश्व का ये इकलौता मंदिर है, जहाँ ये मन्त्र सुरक्षित बचे हुए हैं।

भोज का सरस्वती कूप

जब भोजशाला में वाग्देवी का प्रकटीकरण हुआ, तो वहां एक अनोखी घटना घटी। भू जल विज्ञान के विशेषज्ञ भोजदेव को मालूम हुआ कि इसी स्थान के नीचे सरस्वती नदी की एक धारा भूमिगत होकर प्रवाहमान है। भोज ने यहाँ एक कुआँ खुदवाया। इसे उन्होंने सरस्वती कूप का नाम दिया। ऐसी मान्यता है कि इसका जल पीने से सरस्वती का आशीर्वाद मिल जाता था।


भोज द्वारा निर्मित सरस्वती कूप पर उत्कीर्ण जल यंत्र

उस समय देश-विदेश से जो विद्यार्थी धार आते, उन्हें ये जल पीने का सौभाग्य मिलता था। समय बदला और इसी मूल्यवान स्थान पर उसी आक्रांता फ़क़ीर कमाल मौलाना की दरगाह बना दी गई। अब वह कुआं यानी साक्षात सरस्वती दरगाह में कैद है। उर्स के समय वहां का पानी अक्ल कुए का पानी कहकर बेचा जाता है। इस कुए पर एक यंत्र अंकित किया गया था।

वह यंत्र बताता था कि सरस्वती भूमिगत रुप से कैसे इस स्थान पर प्रकट हुई है। ये कुआं अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि हिन्दुओं के अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान को षड्यंत्रपूर्वक हथिया लिया गया है। महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। इसी तरह उन्होंने नाव व बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है।

इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था। मालवा के इस चक्रवर्ती, प्रतापी, काव्य और वास्तुशास्त्र में निपुण और विद्वान राजा राजा भोज के जीवन और कार्यों पर विश्व की अनेक यूनिवर्सिटीज में शोध कार्य हो रहा है।

समाप्त

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TAGGED: Alauddin Khalji, Bhojshala, gyan vapi masjid shivling, Indian history rewritten, King Bhoja, Madhya Pradesh, mandu, Parmar dynasty, Shivraj singh chauhan
Vipul Rege May 25, 2022
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Vipul Rege
Posted by Vipul Rege
पत्रकार/ लेखक/ फिल्म समीक्षक पिछले पंद्रह साल से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय। दैनिक भास्कर, नईदुनिया, पत्रिका, स्वदेश में बतौर पत्रकार सेवाएं दी। सामाजिक सरोकार के अभियानों को अंजाम दिया। पर्यावरण और पानी के लिए रचनात्मक कार्य किए। सन 2007 से फिल्म समीक्षक के रूप में भी सेवाएं दी है। वर्तमान में पुस्तक लेखन, फिल्म समीक्षक और सोशल मीडिया लेखक के रूप में सक्रिय हैं।
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