स्वस्थ और निष्पक्ष पत्रकारिता का दंभ भरने वाले पीडी पत्रकारों ने अगर उस समय सही पत्रकारिता की होती तो वाड्र-भंडारी की युगलबंदी का भांडा उसी दिन फूट गया होता जब यूपीए सरकार के दौरान साल 2010 में भारतीय वायु सेना के लिए बेसिक जेट ट्रेनर्स (बीटीए) खरीदने का सौदा एचएएल (हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) से छीनकर पिलेटस को दे दिया गया। पिलेटस के लिए इसी युगलबंदी ने पैरवी की थी।
आरोप है कि इस सौदे के तहत मिलने वाला कमीशन इसी युगलबंदी को मिला था। जिसका कुछ हिस्सा उन पीडी पत्रकारों में बंटा था जो इससे संबंधित खबरें और रिपोर्ट को दबाने में शामिल थे। नहीं तो ऐसा कैसे हो सकता है कि जो बीटीए सौदा एचएएल से छिन गया हो उसकी कहीं रिपोर्ट तक नहीं हुई हो? चिंता नहीं कीजिए पीडी पत्रकारों की संलिप्तता की कहानी हम आपको बताएंगे, लेकिन अभी नहीं, क्योंकि इसकी अलग स्टोरी है। भाजपा ने जो आरोप लगाया है वह महज आरोप नहीं बल्कि आईबी रिपोर्ट में साक्ष्य के रूप में मौजूद है। ध्यान रहे कि उस समय केंद्र में सोनिया गांधी की मनमोहिनी सरकार थी इसलिए रिपोर्ट तैयार तो हुई लेकिन कभी बाहर नहीं आ पाई।
पहले ही ऐसी कई रिपोर्ट आ चुकी है कि राहुल गांधी राफेल डील से नहीं बल्कि उसमें उनके संबंधी वाड्रा-भंडारी की कंपनी ओआईएस को हिस्सा नहीं मिलने से नाराज हैं। इसकी पुष्टि पिछले सोमवार को रिपब्लिक टीवी ने की है। यूपीए सरकार के दौरान पहले राफेल डील में तो वाड्र-भंडारी युगलबंदी की कंपनी ओआईएस को हिस्सा मिला था, लेकिन इस डील में उसका पत्ता कट गया। वैसे इस बार भी वाड्रा-भंडारी जोड़ी की कंपनी ने राफेल डील के तहत डसॉल्ट एविएशन से समझौता करने का प्रयास किया था। लेकिन उसकी दाल नहीं गली। भले यह रिपोर्ट अभी रिपब्लिक टीवी ने दिखाई हो और भाजपा ने उसे आरोप का शक्ल दिया हो जबकि इस संदर्भ में आईबी के रडार पर बहुत पहले ही संजय भडारी आ चुका था। यह साक्ष्य भी आईबी रिपोर्ट में दर्ज है।
जहां तक भडारी-वाड्रा के बीच गहरे संबंध होने की बात है तो इसका खुलासा भी आईटी और ईडी रेड के तहत साक्ष्य के रूप में हो चुका है। जब संजय भंडारी के ग्रेटर कैलाश स्थित घर तथा डिफेंस कॉलोनी स्थित दफ्तर पर ईडी और आईटी विभाग ने छापेमारी की थी तो वाड्रा, मनोज अरोड़ा, संजय भंडारी तथा सुमित चड्ढ़ा के कई ईमेल जब्त किए गए थे। इन लोगों के बीच ईमेल से संवाद होता था। इससे साफ जाहिर होता है कि इनलोगों के संबंध कितने गहरे है। इन्हीं ईमेल से वाड्रा के ब्रिटने में ब्रैंटन स्क्वायर स्थित एल्लर्टन हाउस समेत कई घरों का पता चला जो 2009-10 के बीच करोड़ों रुपये में खरीदे गए थे।
इन्हों घरों के लेनदेन को लेकर सुमित चड्ढा, मनोज अरोड़ा, रॉबर्ट वाड्रा और संजय भंडारी के बीच ईमेल आदान-प्रदान होता रहा है। इसके अलावा वाड्रा के दो बार ज्यूरिख जाने के लिए टिकट का बंदोबस्त भी भंडारी ने ही किया था और उसके लिए एयर टिकट भी वाड्रा को ईमेल से भेजा गया था। आपको बता दें कि ज्यूरिख जाने के लिए जो दो टिकट के जो एयर फेयर बताया गया है वह करीब आठ लाख है। भाजपा ने राहुल गांधी से जवाब देने को कहा है कि आखिर रॉबर्ट वाड्रा ज़्यूरिख में नकदी से भरे बैग लेकर क्या कर रहे थे।
आईबी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि डिफेंस डील में लाभ कमाने तथा यूपीए सरकार की नई रक्षा नीति का फायदा उठाने की मंशा से ही वाड्रा-भंडारी ने मिलकर ओआईएस कंपनी बनाई थी। आईबी रिपोर्ट के मुताबिक ओआईएस कंपनी 2008 में अस्तित्व में आती है और यूपीए सरकार ने 2009 में रक्षा नीति बदलती है। क्या इसे सांठगांठ नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? ज्ञात हो कि यूपीए सरकार ने 2009 में रक्षा नीति में बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत विदेशी कंपनियों को हांसिल सौदा का 30 प्रतिशत हिस्सा भारतीय साझीदार कंपनी के लिए निर्धारित करना अनिवार्य कर दिया गया।
इसके बाद से भारत के साथ जितना भी रक्षा सौदा हुआ है, ओआईएस किसी न किसी रूप में भागीदार रही। अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाला भी इसी का हिस्सा रहा है। इस मामले में अभी भी संजय भंडारी के खिलाफ सीबीआई जांच कर रही है। उसी जांच के डर से संजय भंडारी विदेश भागे हुए हैं। आईबी के पास संजय भडारी और राबर्ट वाड्रा के संबंध होने का और भी सबूत हैं। आईबी की रिपोर्ट में ही संजय भंडारी द्वारा रक्षा मंत्रालय का दस्तावेज चुराने का आरोप है जो रक्षामंत्रालय से बाहर नहीं निकलना चाहिए। यह वही फाइल थी जिसमें राफेल डील के तहत 126 राफेल विमान खरीदने का विवरण था। बगैर ऊंची पहुंच के डिफेंस मंत्रालय जैसे सुरक्षित जगह से फाइल चोरी की घटना को अंजाम दिया नहीं जा सकता?
ऐसी कई घटनाएं है जिसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए! अगर इस मामले में ठीक से जांच हो और संजय भंडारी से सख्ती से पूछताछ हों तो कई और गहरे राज खुलकर सामने आएंगे। संदेह तो अब यहां तक होने लगा है कि संजय भंडारी तो महज मुखौटा है, इसके पीछे शक्ल और अक्ल किसी और का है। अब देखना यह है कि इसका खुलास कब तक होता है? यह तो तय है कि इसका खुलासा कोई कांगी-वामी पीडी पत्रकार तो नहीं ही करेंगे, जान हथेली पर रखने वाले किसी राष्ट्रवादी पत्रकार से ही इसकी उम्मीद की जा सकती है।
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राफेल डील मे़ रॉबर्ट वाड्रा के जिस सहयोगी का नाम आया है, वह संजय भंडारी कौन है?
URL: Rafale deal controversy- Who is Sanjay Bhandari, associate with Robert Vadra-1
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