इसमे कोई संदेह नहीं कि देश में बढ़ते नन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) संकट के लिए सोनिया गांधी नियंत्रित पूर्व की यूपीए सरकार ही जिम्मेदार है। लेकिन इस प्रकार एनपीए संकट के लिए सिर्फ पूर्व की महमोहन सरकार पर ठीकरा फोड़कर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। क्योंकि जिस समय देश में एनपीए का संकट अपने चरम पर था तब वही आरबीआई के गवर्नर थे। अब सवाल उठता है कि जब उन्हें पता था कि एनपीए का संकट देश में बढ़ रहा है वह भी मनमोहन सरकार की पंगु नीतियों के कारण, तो उन्होंने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? एक बात ध्यान रहे कि ये वही रघुराम राजन है जिन्होंने यूपीए सरकार की 80:20 सोना आयात योजना की प्रशंसा की थी।
मालूम हो कि 80:20 सोना आयात योजना की जांच की जा रही है। अभी तक जो जांच सामने आई है उसमें पूर्व यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम की करतूत खुलकर सामने आने लगी है। इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए जो रघुराम राजन एनपीए संकट के लिए यूपीए सरकार को कसूरबार ठहरा रहें उन्हीं के समर्थन में कांग्रेस सरकार खासकर पी चिदंबरम ने मोदी सरकार पर हमला किया था। 80:20 सोना आयात योजना में हुए भ्रष्टाचार मामले को लेकर भाजपा के लोकसभा सांसद नीशिकांत दुबे ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन तथा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की संलिप्तता के खिलाफ सीबीआई तथा ईडी द्वारा जांच की मांग कर रखी है। देश में एनपीए संकट के लिए जितनी जिम्मेदारी पूर्व यूपीए सरकार की है उतनी ही जिम्मेदारी आरबीआई के पूर्व गवर्नर होने के नाते रघुराम राजन की भी है।
मुख्य बिंदु
* आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने लोकसभा की प्राक्कलन समिति को भेजे अपने जवाब में एनपीए संकट का ठीकरा यूपीए सरकार पर फोड़ा
* जांच में फंसी यूपीए सरकार की 80:20 सोना आयात योजना की काफी प्रशंसा कर चुके हैं रघुराम राजन
गौरतलब है कि रघुराम राजन ने लोकसभा की प्राक्कलन समिति को भेजे अपने जवाब में देश में बढ़ते एनपीए संकट के लिए पूर्व की यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि यूपीए सरकार के घोटालों की जांच के कारण निर्णय लेने में हुई देरी की वजह से ही एनपीए बढ़ता चला गया। मालुम हो कि डॉ मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली लोकसभा प्राक्कलन समिति ने बढ़ते एनपीए संकट को लेकर पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम से जवाब मांगा था। लेकिन उन्होंने कहा था कि इस बारे में ठोस और तथ्यगत जानकारी आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ही दे सकते हैं। जिसके बाद डॉ जोशी ने राजन को संसदीय समिति के सामने हाजिर होकर इस संदर्भ में जानकारी देने को कहा था।
प्राक्कलन समिति को दिए अपने जवाब में राजन ने कहा कि यूपीए सरकार की नीतिगत पंगुता के कारण बैंकों का एनपीए संकट के स्तर तक बढ़ गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बड़े बैंकों ने दिए गए कर्जों की वापसी के लिए ठोस कार्रवाई नहीं की, इस वजह से उम्मीद के अनुरूप लाभ नहीं हुआ। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ही दिन पहले बैंकों की खराब हालत तथा एनपीए संकट के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि बट्टेखाते में गए बैंकों के लाखों करोड़ रुपये के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर उस समय आरबीआई गवर्नर होने के नाते रघुराम राजन क्या कर रहे थे? उस समय बड़े कर्ज देने वाले बड़े बैंकों के खिलाफ उन्होंने क्या कार्रवाई की? आखिर उस समय उन्होंने यूपीए सरकार की कारगुजारियों का खुलासा क्यों नहीं किया?
जबकि यही रघुराम राजन हैं जो सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना करने से कभी बाज नहीं आए। सवाल उठता है कि जब सबकुछ उनकी नाक के नीचे हो रहा था आखिर तब उन्होंने देश को यह क्यों नहीं बताया कि यूपीए सरकार की वजह से एनपीए संकट बढ़ रहा है जो देश की आर्थिक स्थिति के लिए उचित नहीं है? तभी तो नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भारत की विकास गति धीमी होने के लिए रघुराम राजन की नीति को पूर्ण रूप से जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि उनकी नीतियों की वजह से बैंकों के एनपीए संकट को सही समय पर नहीं पहचाना गया, न ही उसे रोकने का कोई ठोस उपाय किया गया।
यूपीए सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्षों में शुरू हुई 80:20 सोना आयात योजना के लिए भी रघुराम राजन को जिम्मेदार बताया गया है। तभी तो भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन तथा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से जांच कराने की मांग की थी। ज्ञात हो कि रघुराम राजन ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान इस योजना का बचाव करते हुए कहा था कि इस योजना में उद्देश्य के मानदंड का पूरा पालन किया गया था। गौर हो कि यह योजना देश में सोने के आयात को रोकने के लिए साल 2013 के अगस्त में शुरू हुआ था। यूपीए सरकार की यह योजना अभी जांच के दायरे में है। अभी तक जांच एजेंसियों के हवाले से जो जानकारी सामने आई है उसमें बड़ स्तर पर लूट की बात सामने आई है। इसी योजना के तहत भगोड़े नीरव मोदी के भगोड़े मामा मेहुल चौकसी की कंपनी को सोना निर्यात-आयात करने का लाइसेंस दिया गया था।
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