सर्वश्रेष्ठ नस्ल के भारतवासी आर्य वंशज है. यह सिद्धांत यदि किसी ने ऐतिहासिक तौर पर नहीं भी पढा है तो भी उन्हे इस बारे में कुछ न कुछ जानकारी तो अवश्य होगी. यह थ्योरी एक किविदंति या परिकथा की भांति सुसंस्कृत पढ़े लिखे भारतीयों के बीच फली फूली है, विस्तृत हुई है. उत्तर भारतवासी मूल रूप से यूरोप से आये आर्यों के वंशज है, सरल शब्दों में यह इस थ्योरी का मूल है. या फिर यूं कहें कि उतरी यूरोप के गोरे, चिट्टे, सुंदर, पराक्रमी आर्य मूल के लोग भारत में आये, उन्होने देश पर कब्ज़ा किया और इस तरह भारतवासी आर्यवंशज बन गये.
लेकिन एक नयी पुरातत्व संबंधी खोज ने इस सदियों से चली आ रही थ्योरी को चुनौती दी है. हरियाणा की राखीगढ़ी पुरातत्व साइट पर मिले नर कंकालों के DNA अवशेषों के विश्लेषण से इस शोध ने यह स्थापित किया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी भारतवर्ष के मूल निवासी हैं, न कि आर्य वंशज. जब्कि आर्यों को लेकर बनायी गयी थ्योरी यह कहती है कि 1500 बी सी के आसपास , यूरोपीय मूल के लोग जो कि आर्यंस के नाम से जाने जाते थे, भारत आये और यहां पर कब्ज़ा किया. यही नहीं हिंदू धर्म की समस्त बौद्धिक प्रकृति , यहां तक कि वेदों का निर्माण भी इन्होने किया. लेकिन हरियाणा की राखीगढ़ी साईट के शोध से यह पता चलता है कि हरप्पा और मोहंजोदाड़ो सभ्यता या सिधु घाटी सभ्यता के निवासी दक्षिण ऐशियायी मूल के लोग थे जिनके मूल की उत्पति 7,000 बी सी से भी पहले हुई थी.
राखीगढी साइट के शोधकर्ताओं के अनुसार उनकी खोज इस बात को प्रमाणित करती है कि दक्षिण एशिया के अधिकतर लोग हड़्प्पा वासियों के ही वंशज हैं, न कि बाहर यूरोप से आये आर्यों के.
यह शोध, शोधकर्ताओं के अनुसार यह बात भी स्थापित करती है कि खेती बाड़ी का ज्ञान भारतीयों को पहले से ही था. इससे पहले अक्सर के कहा जाता रहा है कि भारत में खेती बाड़ी की प्रक्रिया इरान से आयी थी. कि जैसे जैसे इरान से लोगों ने भारत में पलायन करना शुरू किया, वैसे वैसे इन लोगों ने भारत में खेतीबाड़ी की शुरुआत की. यह नया शोध इस थ्योरी को सिरे से खारिज करता है.
इस शोध का सबसे अहम पहलू यह है कि यह इस बात की ओर भी संकेत देती है कि सभ्यता का प्रचार प्रसार और लोगों का दूसरे देशों में आवगमन जिससे दुनिया भर के लोगों का मिला जुला जेनेटिक इतिहास बना, ईस्ट से वेस्ट, यानि भारत से यूरोप की ओर हुआ था, न कि वेस्ट से ईस्ट या यूरोप से भारत की ओर. शोध का यह पहलू भारतवासियों के संस्कृति बोध और इतिहास बोध के लिये सबसे अहम पहलू है.
अंग्रेज़ी शासन काल से भारत्वासियों के ज़ेहन में यह बात डाली गयी कि उनकी संस्कृति अपने आप में तुच्छ और हीन है और उनकी संस्कृति के महानतम पहलुओं का जो भी प्रचार प्रसार हुआ, वह सब प्राचीनतम यूरोपीय सभ्यताओं की देन हैं. अंग्रेज़ी शासनकाल में भारतीयों क मनोबल गिराने और उन्हे अपनी खुद की नज़रों में ही हीन साबित करने के लिये इस थ्योरी का बहुत उपयोग हुआ. पढे लिये, उच्च कुल के भारतवासियों में यह थ्योरी फैलाई गयी कि वे यूरोप से आये आर्यों के वंशज हैं, ताकि वह अंग्रेज़ी शासन का विरोध न कर उसके प्रचारक बन जायें. हालांकि इतिहास साक्षी है, ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ.
बीसवीं शताब्दी में भी बहुत से इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को अपनी सहूलियत और ग्लोबल कम्यूनिज़्म के एजेंडे के मुताबिक तोड़ा मरोड़ा है. राखीगढी शोध ऐसे अहम शोधों में एक पहली कड़ी है जो कि भारत के प्राचीनतम इतिहास का पुनरवलोकन कर उसे पूरे विश्व के सामने रखेंगे.
बहुत से अकादमिक शोधकर्ताओं के अनुसार जहां तक वैदिक संस्कृति के विकास की बात है तो इस संस्कृति के अनेकों ऐसे पहलू हैं, जो कि इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वेदों का ज्ञान देशी भारतीयों ने विकसित किया था, न कि बाहर से आये किन्ही आर्यंस ने.
भारत के प्राचीनतम मंदिरों और बुद्ध स्तूपों में भी सिंधू घाटी सभय्ता के वास्तुशिल्प की झलक मिलती है. भारत की प्राचीनतम संस्कृति या वैदिक संस्कृति के इतिहास में अभी और भी बहुत शोध की आवश्यकता है. राखीगढ़ी का शोध तो बस शुरुआत मात्र है. क्या पता है कि ऐसे और शोधों के ज़रिये भारत की प्राचीनतम सभ्यता विश्व की भी प्राचीनतम सभ्यता और विश्व संस्कृति की जननी निकले!
Rati Agnihotriji
Very nice article on Rakhigarhi research and sindhu culture. Kindly also evaluate these findings with respect to Mohenjodaro -Sindh, Harappa- Punjab and throw some more light to strengthen the view that Indian culture is almost 10000 years old