कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥
मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥
राम कंगन की ध्वनि सुनकर लक्ष्मण से कह रहे हैं कि मानो कामदेव ने विश्व को जीतने का संकल्प लेकर डंके पर चोट मारी है. राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी गए हुए हैं. प्रात: ही वह वाटिका पहुँच गए हैं. रामचरितमानस में तुलसीदास ने राम और सीता की प्रथम भेंट का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है. वहीं वाल्मीकि रामायण में यह नहीं है. परन्तु जब हम वाल्मीकि रामायण को पढ़ते हैं तो रामायणकालीन आभूषणों का एक रेखाचित्र हमारी आँखों के सम्मुख खिंच जाता है, एवं हम उस लोक की भव्यता में खो जाते हैं. राम सीता विवाह के समय सीता को हर प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है.
तत: सीतां समानीय सर्वाभरणभूषिताम,
समक्षमग्ने: संस्थाप्य राघवाभिमुखे तदा!
अर्थात फिर सीताजी को समस्त आभूषण पहनाकर वेदी के निकट श्री रामचंद्र जी के निकट बैठाया गया.
राजा जनक के राज्य की भव्यता तो आभूषणों एवं सुरुचिपूर्ण व्यवहार की उदाहरण है. राजा जनक अपनी पुत्रियों के विवाह में इतने प्रसन्न हैं कि वह बहुसंख्य वस्त्रों एवं आभूषणों को स्त्रीधन के रूप में दे रहे हैं एवं दान भे कर रहे हैं. उन्होंने दैनदायजे में अयोध्यापति को एक लाख गौवें दी थीं, अत्यंत सुन्दर दुशाले एवं एक करोड़ रेशमी वस्त्र दिए थे. बहुत सी बढ़िया मोहरें, मोती मूंगे आदि अर्थात इनसे जड़े गहने दिए थे.
तुलसीदास राम और जानकी के विवाह के समय स्वर्ण के कलश एवं मणि के सुन्दर थाल का वर्णन करते हैं.
कनक काल्स मनि कोपर रूरे, सूचि सुगंध मंगल जल पूरे
निज कर मुदित राय अरु रानी, धरे राम आगे आनी!
इसी प्रकार जब वह राम के राज्याभिषेक की बात करते है तो लिखते हैं
चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती॥
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका
अर्थात वह कह रहे हैं कि चँवर, मृगचर्म, कई प्रकार के वस्त्र, नाना प्रकार की जातियों के ऊनी तथा रेशमी वस्त्र, विभिन्न प्रकार की मणियाँ (रत्न) तथा और भी बहुत सी मंगल वस्तुएँ, जो जगत् में राज्याभिषेक के योग्य होती हैं, वह सब मंगाने की आज्ञा दी.
चाहे वाल्मीकि रामायण हो या फिर रामचरित मानस, या फिर कम्ब रामायण, सभी में रत्नाभूषणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि हमारे सम्मुख इतिहास की वह भव्यता एवं सौन्दर्य अपने सम्पूर्ण रूप में आ जाता है, जिसे मिथक कहने का प्रयास अब तक किया गया है.
कम्ब रामायण में (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा अनूदित) सीता विवाह के समय सीता के आभूषणों का वर्णन देखिये
देवेन्द्र के शासन में रहने वाली रमा आदि अप्सराएं जा रही हों, इस प्रकार असंख्य सखिया सीताजी को चरों ओर से घेरकर चलीं. उस समय विशाल मेखलाएँ, सर्प के आकार के नूपुर और कर वलय बज उठे.
अपने आभूषणों में लगे रत्नों की कांति को आगे आगे फेंकती हुई सीता उस प्रकार आगे चलीं जैसे उन्हें जन्म देने वाली भूदेवी ने यह सोचकर कि उसके चरण अति कोमल हैं, उनके मार्ग में पल्लव एवं पुष्प बिखेर दिए हों.
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पूंजीभूत घनी स्वर्ण कांति से युक्त कलाप, (सोलह लड़ियों वाली) मेखला, तथा अन्य रत्नखचित आभूषणों से किरणें छिटक रही थीं, देह की कांति अत्यंत उज्ज्वल हो रही थी, कटि लचक रही थी,
उसके उपरान्त आगे लिखते हैं उस देवी की शरीर की कांति, उनके स्वर्ण आभूषणों की कांति, उनके पुष्पों की सुगंध तथा चंदन की शीतलता चारों ओर बिजली की चमक जैसी ही फ़ैल रही थी.
भारत में जो आज हमें चमकीले रंगों के प्रति आकर्षण दिखाई देता है, वह आकर्षण हमारे यहाँ आरम्भ से ही था. रामायण में तो रंगों का इतना सुन्दर वर्णन हुआ है कि रामायण एवं रामायण के बहाने भारत को नकारने वालों को जबाव मिलता जाता है.
वाल्मीकि रामायण में सजी धजी स्त्रियों का वर्णन बारम्बार प्राप्त होता है, रावण का अंत: पुर तो सुंदरियों एवं नाना प्रकार के आभूषणों से भरा हुआ था.
रेशमी वस्त्रों का चलन था, रेशमी वस्त्रों को शुभ माना जाता था, जो परम्परा आज तक चली आ रही है. राम के राज्याभिषेक से लेकर किसी भी मंगल कार्य हेतु रेशमी वस्त्रों को ही धारण किया जाता था. इससे एक और बात स्पष्ट होती है कि उस समय वस्त्र सीने की कला से लोग परिचित थे. यह भ्रम प्राय: फैलाया जाता है कि जब मुसलमान आए तब वह कैंची लेकर आए एवं तभी भारत में वस्त्र सीने की परम्परा का आरम्भ हुआ. जबकि यदि हम मन्दिरों पर उकेरी हुई मूर्तियों को देखें या फिर हम रामायण में वर्णित वस्त्रों को देखें, बार बार यह साबित होता है कि भारत में न केवल विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहने जाते थे अपितु ऊन भी प्रचलित थी. सीता कौशेय वस्त्र धारण करती थीं.
इसी प्रकार एक और प्रकार के वस्त्र अत्यंत पवित्र माने जाते थे वह थे क्षौम वस्त्र. इन वस्त्रों को पूजा अर्चना में प्रयोग किया जाता था.
रामायण से यह भी परिलक्षित होता है कि कढ़े हुए एवं किनारीदार वस्त्र तैयार करने की कला भी उस काल से ही उन्नत थी. रावण जब सीता जी को हरण करके ले जा रहा था तब सीता जी का उत्तरीय जो पीला कपडा था वह उड़ रहा था. तथा सीता जी ने मार्ग में अपने आभूषण भी वानरों को देखकर नीचे फेंके थे.
जो लोग बार बार यह कहते हैं कि भारत में वस्त्र सिलने की परम्परा मुसलमानों के बाद आरम्भ हुई उन्हें रामायण में वर्णित शब्द तुन्नवाय पर ध्यान देना चाहिए. तुन्नवाय का अर्थ होता है दरजी!
परन्तु न ही यह उन तमाम कथित साहित्यकारों को समझ आता है जिनके लिए इतिहास तब से शुरु होता है जब से बाबर ने इस धरती पर कदम रखा और न ही उन्हें जिनकी सुबह ईद की खुमारी में और रात बकरीद के उन्माद में डूबी रहती हैं. जिन्हें राम से इस हद तक घृणा है कि वह राम का नाम नहीं सुन सकते, उनके लिए अब आत्मावलोकन का समय है.
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