हमने तो यही पढ़ा और जाना है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट के पास असीम शक्ति है मीलॉड! लेकिन इंसाफ के राज में किसी बुढे के दो जवान बेटों को तेजाब से नहला कर मार दिया जाए! तीसरे और एक मात्र चश्मदीद गवाह बेटे को ट्रायल कोर्ट (अदालत) में गवाही के तीन दिन पहले सरे राह गोली मार हत्या कर दी जाए! दुसरे गवाहों के अंदर खौफ के कारण अदालत में पेशी की हिम्मत न हो, अपराधी वह हो जिस पर हत्या और अपहरण जैसे आईपीसी के दो सबसे गंभीर अपराध के एक दो नहीं 37 एफआईआर हो, उसे दो तीन साल के अंदर सभी मामलों में जमानत कैसे मिल सकती है मीलॉड? खासकर उस हालात में जब की तेजाब से दो लोगों को नहला कर हत्या करने के मामले में उसे एक साल पहले ही उम्र कैद की सजा हुई हो।
आपकी न्यायपालिका तो किसी अपराधी को जमानत देने समय में यही देखती है कि आरोपी, आदतन अपराधी नहीं है। लेकिन यहां तो वो हत्या और अपहरण का खुंखार अपराधी है। हद यह है कि एक मात्र गवाह राजीव की हत्या 16 जून 2014 को सरे राह कर दी गई जब की दो दिन बाद 18 जून को उसकी गवाही होनी थी। उसके दो सगे भाई गिरीश और सतीश की ठीक दस साल पहले तेजाब से नहला कर इसलिए हत्या कर दी गई थी क्योंकि उसके पिता के नाम से जो प्लाट था उस पर शहाबुद्दीन कब्जा चाहता था। देश में डॉन दूसरों के जमीन पर कब्जा कर इसी तरह के अपराध से फलता फूलता है। लचर कानून व्यवस्था उसे बल देता है। क्या पटना हाईकोर्ट के जजों के आंखो पर पट्टी बंधी थी मील़ॉड? कौन सा कानून किसी हाइकोर्ट के जज को ऐसे अपराधी को जमानत देने के लिए प्रेरित कर सकता है मीलॉड। हद देखिए अभी हाल ही में एक अखबार के पत्रकार राजदेव की हत्या हुई उसमें भी उसके गुर्गे शामिल थे। कारण यह कि पत्रकार की रिपोर्टिंग से जेल में बैठा शहाबुद्दीन खुश नहीं था। इसी घटना के कारण पटना हाइकोर्ट ने शाहबुद्दीन को सिवान जेल से भागलपुर जेल भेज दिया था। ये तमाम रिकार्ड पटना हाइकोर्ट के न्यायमूर्तियों के पास थे, क्या हमें उन्हें न्यायमूर्ति कहने में शर्म नहीं आनी चाहिए मीलॉड?
शर्म तो मुझे भी आ रही है मीलॉड कि मैं पत्रकारिता के जिस पेशे में हूं उसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। टीआरपी के लिए हमारे मदारी, शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने पर खूब आंसू बहा रहे है। कोई इसे नीतीश की असफलता और हार बता ज्ञान दे रहा है तो कोई लालू के जंगल राज की वापसी पर ज्ञानी होने का दावा कर रहा है। तो कोई कुतर्की, आपके इस नाइंसाफी पर साथ तो नही दिख रहा, दुसरे राजनीतिक अपराधी के जेल से बाहर रहने का उदाहरण दे कर इसे दरकिनार करना चाहता है। लेकिन पत्रकारिता के इस बेशर्म जमात को अपनी गलती नहीं दिखती कि 36 अपराधिक मामलों में लगातार उसे जमानत की राह जब आप तय कर रहे थे तो इनने आवाज क्यों नहीं उठाई मीलॉड! पत्रकारिता के 17 साल के संघर्ष के सफर में कई बार आपके आदेश को मीडिया के कारण प्रभावित होते तब देखा जब मीडिया जनपक्ष में खड़ा रहा। लेकिन मदारियों से हम बार बार नैतिकता की उम्मीद नहीं कर सकते मीलॉड! आप से तो करना ही होगा न मीलॉड!
शहाबुद्दीन वो अपराधी रहा जो गवाही के लिए कभी अदालत में पेश नहीं होता था। जब भी अधिकारी वारंट तामिल करने उसके घर गए, उसे शहाबुद्दीन के गुंडों ने मार कर भगाया। 2001 में तो ऐसे एक अधिकारी को खुद शहाबुद्दीन ने थप्पड़ मार कर भगाया। उसी साल जब पुलिस उसके घर छापामारी करने गई तो तीन पुलिसवलों की हत्या कर दी गई। तलाशी में पुलिस को उसके घर से पाकिस्तानी सेना के मुहर वाले हथिय़ार समेत शेर और हिरण के खाल मिले। जिसे घर में रखना आपके कानून में अपराध है जज साहेब। कोई कानून ऐसे अपराधी को जमानत दे कैसे सकता है मीलॉड? जमानत तो इसी शर्त पर मिलती है न कि उससे समाज को खतरा नही? इस कलयुगी राक्षस को जमानत मिले, ये कैसा इसांफ है मीलॉड? आपके आंसू जब गिरते हैं तो लगता है कि आपके अंदर भी भावना है, तो जरा उस बुढे बाप के आंसू और दर्द बुझने और समझने की कोशिस तो कीजिए। सुनिए वो जो कह रहा है, ‘मरना तो है अब चाहे ईश्वर मार दे या शहाबुद्दीन!’
राजनीति करने वाले एक दूसरे पर आरोप लगाएंगे लेकिन इसांफ के राज में यदि न्यायपालिका यूं ही आखों पर पट्टी बांध कर खेलेगी तो चांद बाबू की तरह हर बाप अपनी बदनसीबी पर रोएगा जज साहेब। वो बाप भी जो अभी राजनीतिक रोटी सेक रहा है। चाहे वो राजनीति में हो मीडिया में या समझबूझ से कंगाल जाति य़ा मजहब के नाम पर किसी राजनेता का दीवाना। आम आदमी का भरोसा न्यायपालिका में जगाइए मीलॉड, नहीं तो न्यायपालिका का भी अपरहण हो जाएगा! जगिए और जगाईए मीलॉड! इस अंधेरे से देश को निकालिए ताकि न्यायपालिका पर भरोसा कायम रहे!
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं इससे India speaks daily का सहमत होना जरूरी नहीं है। ISD इन तथ्यों की पुष्टि का दावा नहीं करता है।