गीता और उपनिषदों को पढने के दौरान मन को असीम शांति का अनुभव होता है! वर्तमान में जब मैं अपनी ‘भारतीय वामपंथ का काला इतिहास’ पुस्तक लेखन के दौरान थक जाता हूं तो गीता और ईशावास्य उपनिषद की शरण में चला जाता हूं। सोचता हूं कि थोड़ा बहुत और बेहद सरल भाषा में कुछ चीजें आप साथियों से साझा करूं!
आज का यह पोस्ट कुछ समय पूर्व आप सभी से शेयर भी किया था, लेकिन अब नियमित अंतराल पर गीता और उपनिषद पर जो कुछ मैं समझ रहा हूं, आपसे सरल भाषा में व छोटे-छोटे टुकड़ों में शेयर करता रहूंगा। इससे मुझे भी समझने में आसानी होगी और यदि आप लोगों की उत्कंठा भी गीता व उपनिषदों की ओर हो जाए तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा!
एक कोशिश कर रहा हूं, कृपया इसे मेरा अहंकार न समझें! मैं अभी इस लायक नहीं हूं कि किसी को कुछ समझा सकूं, बस जो समझ रहा हूं उसे ही साझा करने की कोशिश कर रहा हूं! किसी को बुरा लगे तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं! फिर से कह रहा हूं, मेरा उददेश्य आप सभी को कुछ समझाना नहीं, खुद समझना है…और सनाातन समुद्र से कुछ मोतियों को हृदयंगम करना है!
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: ! भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के 10 वें अध्याय में कहा है, हे अर्जुन वृक्षों में मैं पीपल हूं और देवर्षियों में नारद! कदम्ब के पेड़ के नीचे रास रचाने वाले श्रीकृष्ण ने खुद की उपमा आखिर पीपल से ही क्यों दी? मैं भी सोचता था!
मुझे इस सदी की सबसे बड़ी औपन्यासिक कृति देने वाले आदरणीय मनु शर्मा जी (उम्र 88 वर्ष) के सान्निध्य में काफी समय तक बनारस में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रभात प्रकाशन के लिए मैंने उनकी जीवनी लिखी है, जिसके संपादन का कार्य अभी चल रहा है। मनु शर्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण की आत्मकथा आठ खंडों में और करीब 3000 पृष्ठों में लिखी है, जो आधुनिक साहित्य में सबसे बड़ी कृति है। उन्होंने मुझे समझाया कि आखिर भगवान श्रीकृष्ण ने खुद को पीपल ही क्यों कहा:
1) पीपल में अदभुत जिजीविषा (जीने की चाह) का गुण है। आप उसे उखाड़ कर फेंक दीजिए, वह कहीं भी फिर से उग आएगा। मिट्टी तो मिट्टी वह पत्थर पर भी उग आता है। आपके घर की दीवारों को तोड़ कर उग आता है। भगवान श्रीकृष्ण मानव को यह संदेश देते हैं कि हे मनुष्य तुम सभी में पीपल के समान ही जिजीविषा होनी चाहिए! स्थान को पकड़कर मत बैठो! जहां भी संभावना हो, जैसी भी परिस्थिति हो- तुम्हारे अंदर जीने की चाह बनी रहनी चाहिए! तुम्हारी जड़ें कहीं भी फूट सकती हैं, खुद को ऐसा बनाओ! आखिर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी जड़ों को मथुरा से उखाड़, द्वारका नगरी को बसाया ही था।
2) पीपल का दूसरा गुण भी जीवन देने से जुड़ा है! सभी वृक्षों में सबसे अधिक ऑक्सीजन पीपल का वृक्ष ही देता है। इतना ही नहीं, पीपल एक मात्र वृक्ष है, जो दिन के समान रात में भी ऑक्सीजन देता है। अन्य वृक्ष रात में कार्बनडॉयऑक्साइड छोड़ते हैं, जिसके सन्निकट रात में रहना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है।
लगातार, अनवरत आप ध्यान समाधि में एक मात्र पीपल के वृक्ष के नीचे ही बैठे रह सकते हैं। अन्य वृक्षों के पास से आपको रात के समय उठना पड़ेगा। सनातन धर्म ने इसी कारण पीपल पर ब्रह्म का वास बताया है। ब्रहृम अर्थात सृष्टि! सृष्टि जिस दिन अपनी जिजीविषा छोड़ देगी, मानव ही नहीं, पूरे प्राणी जगत का विनाश हो जाएगा!
क्या हम श्रीकृष्ण के ज्ञान को जीवन में उतारते हुए पीपल सदृश्य जिजीविष के गुण को धारण करने का संकल्प ले सकते हैं? देखिए, सनातन धर्म पर न जाने कितने संकट आए, भारत भूमि पर आक्रांताओं ने बार-बार हमले किए, लेकिन मिश्र, बेबिलोन, यूनान, रोम की सभ्यता जहां नष्ट हो गयी, वहीं भारत भूमि बना रहा! यह पीपल का जिजीविषा वाला गुण ही है, जो हमारी असली जड़ें हैं! भगवान श्रीकृष्ण हमें यही स्मरण करा रहे हैं!