इन दिनों लेखक बनने का जमाना है, लेखक कब नेताओं में तब्दील हो जाता है, पता नहीं चलता और नेता कब कॉलम लिखने लगता है, वह भी नहीं पता लगता। कुछ लोगों के लिए यह परस्पर भूमिका बदलने वाली बात हो जाती है। आजकल हम कई नेताओं को कॉलम लिखते हुए पाते हैं। एक लेखक के राजनीति में पड़ने का खतरा तो सभी जानते हैं, मगर जब राजनेता कॉलम लिखें और वह भी केवल अपने ही नेता के लिए और अपने मुखपत्र के लिए तो इसे किस श्रेणी में रखा जाएगा? वह दर्द बेचें, मगर सिलेक्टिव दर्द? उनकी डिक्शनरी में इन्क्ल्युसिव नामक शब्द है नहीं, तभी वह सिलेक्ट करती हैं। उत्तरप्रदेश की प्रभारी हैं, तो वह उत्तरप्रदेश में सिलेक्टिव दर्द खोजती हैं, जिअसे उनकी राजनीति चलती रहे। सिलेक्टिव गरीबी बेचती हैं। जी, हाँ बात हो रही है प्रियंका गांधी की! हाल ही में उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कोबस वाले मामले पर सशर्त एवं कठोर टिप्पणियों के साथ जमानत मिली है। यह लेख लल्लू को जमानत मिलने से पहले प्रियंका गांधी ने लिखा था।
यह लेख अपने आप में एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे के साथ शुरू होता है। उन्नाव में बलात्कार पीडिता, जिसे जला दिया गया था। मगर जैसे ही आप लेख में आगे बढ़ेंगे आपको पता चल जाएगा कि यह लेख उन्नाव में पीड़िता पर नहीं, बल्कि व्यक्तिपूजक लेख है। लल्लू जी के विषय में लेख लिखने के लिए उन्नाव की रेप पीड़िता का बहाना क्यों? जब आपको अपने अध्यक्ष के लिए लिखना है तो दूसरे के दर्द का सहारा क्यों? मगर यही राजनीति है। यह कांग्रेस की वह राजनीति है जो उसे बार बार लोगों के जले पर नमक छिड़कने पर मजबूर करती है। वह गरीबों के नाम पर खुद को चमकाने में यकीन करते हैं। याद करिये उत्तराखंड में आई हुई बाढ़ और राहत सामग्रियों का राहुल गांधी की राह ताकते हुए सड़ जाना! कलावती की कहानी बेचना, अंग्रेजों को लेजाकर अमेठी के टूटे घरों में बैठाना और चाटुकार अखबारों में लिखवाना “राहुल ने दिखाया असली भारत! यदि वह असली भारत है तो आपकी माता जी दुनिया की सबसे अमीर स्त्रियों में सम्मिलित क्यों है? क्यों आपके जीजाजी की जमीन की भूख का अंत कभी नहीं होता।
खैर, यह मसले दूसरे हैं, बात प्रियंका गांधी के इस लेख की। इस लेख में एक बहुत रोचक बात लिखी है कि “जय लल्लू कक्षा 6 के छात्र थे जब उन्होंने सड़क पर ठेला लगाया। दीवाली में पटाखे बेचे, बुआई के मौसम में खाद और बाकी के दिनों में नमक।“ यह सबसे रोचक बात है, क्योंकि यहाँ पर वह अपने नेता की वह सामान्य पृष्ठभूमि बेचने की कोशिश कर रही हैं, जिस पृष्ठ भूमि का मज़ाक साल 2014 से लेकर अभी तक वह लोग उड़ाते आ रहे हैं। हर किसी को वर्ष 2014 में मणिशंकर अय्यर का वह कथन याद होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैं आपसे वादा करता हूँ कि 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। लेकिन अगर वो यहाँ चाय बेचना चाहते हैं तो हम उनके लिए एक जगह तलाश लेंगे।”
इतना ही नहीं स्मृति ईरानी की टीवी की पृष्ठभूमि होने के कारण उन्हें नचनिया जैसे शब्दों से उनकी ही पार्टी के संजय निरुपम ने नचनिया कहा था। और स्मृति ईरानी के विषय में कांग्रेस के समर्थक अक्सर अपशब्द बोला करते हैं, मगर कभी भी प्रियंका गांधी या राहुल गांधी की तरफ से कोई विरोध नहीं आया।
जिस सामान्य पृष्ठ भूमि को लेकर प्रियंका गांधी आज अपने प्रिय नेता लल्लू जी का बचाव कर रही हैं, वह जरा याद करें कि जब श्री नरेंद्र मोदी जी ने पकौड़े बनाना भी तो एक रोजगार ही है,” कहा था, तो कैसा हंगामा हुआ था? इतना ही नहीं सामान्य भूमि के किसी भी राजनेता के प्रति कांग्रेस का दृष्टिकोण क्या होता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। मनोज तिवारी के पेशे को लेकर भी कई बार ऐसा सुनने में आया कि यह तो गाने नाचने वाले हैं, यह क्या जाने राजनीति? क्या राजनीति में आप जिस व्यक्ति की बनावट गरीबी बेचना चाहेंगी वही बिकेगी? या फिर आप असली लोगों को सामने आने देंगी? आपने जिस उद्देश्य से यह लेख लिखा था, वह उद्देश्य आपका सफल रहा क्योंकि लल्लू सिंह को जमानत मिल गयी है। मगर आपने जिस तरह से आगे इस लेख में योगी सरकार को कोसा है, उसी मुद्दे पर आपको कितनी फटकार कोर्ट से पड़ी है, वह भी आप देखिएगा। जब आप अपने प्रिय लल्लू सिंह की कथित गरीबी बेच रही हैं, उसी समय आपकी ही पार्टी के नेता प्रदेश के यशस्वी मुख्यमत्री योगी आदित्य नाथ की साधारण पृष्ठभूमि का उपहास उड़ाते हुए, अपमान करते हुए दिख जाते हैं। योगी आदित्यनाथ नाम न लेकर अजय सिंह बिष्ट सरकार कहते हैं, यह कौन सी संवेदनशीलता है आपकी?
केवल अपने पोर्टल में लिखने, केवल अपने मुखपृष्ठ में अपने प्रिय चापलूस की गरीबी बेचने की आपकी कोशिश कितनी कामयाब होती है, वह तो समय बताएगा, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि अपने प्रिय नेता के विषय में जो आपने लिखा है, यदि आपको इस अलोकतांत्रिक सरकार पर इतना ही गुस्सा है तो किसी न्यूट्रल पोर्टल में प्रकाशित करवातीं? या आपको अपने प्रिय नेता के बारे में ही लिखना था तो कम से कम उस जली हुई लड़की के घाव तो और नहीं कुरेद्तीं! शायद हम ही भूल जाते हैं कि कांग्रेस कभी संवेदनशील नहीं रही, लाशों और घावों पर रोटियां सेकना इसका प्रिय शगल रहा है!
इन सब के बावजूद जब लोग बोलते हैं कि फिर भी काँग्रेस गरीबों के लिए काम करती है तब मन करता है कि एक बार दिल खोल कर ज्ञान दें इन लोगों को कि आपकी और मेरी गरीबी के ईंधन से काँग्रेस कि गाड़ी चल रही है।
सही कह रहे हैं. लोग समझते नहीं हैं
We don’t need to buy from them either
Let her learn like Pappu