विपुल रेगे। मणिरत्नम की फिल्म ‘पीएस-1’ का संगीत रिलीज कर दिया गया है। फिल्म का संगीत ए.आर.रहमान ने दिया है। किसी भी फिल्म का संगीत उसकी कहानी और पृष्ठभूमि से जुड़ा होना चाहिए। तब ही वह दर्शकों के बीच लोकप्रिय होता है और फिल्म की रिलीज के बाद उसकी महक और अधिक बढ़ जाती है। अब तक तो फिल्म संगीत के साथ यही परंपरा जुड़ी हुई है। ‘पीएस-1’ मधुर तो है, किन्तु चोल राजवंश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से मेल नहीं खाता है।
जहाँ ए.आर.रहमान होंगे, वहां मेलोडी स्वाभाविकता के साथ होगी। हालाँकि बहुत अरसे बाद, यानी ‘रांझणा’ के बाद उनके बैंक से मेलोडियस धुनें निकली हैं। ये धुनें लोकप्रिय भी होंगी, इसमें संदेह नहीं है। प्रश्न ये उठता है कि क्या वे फिल्म के स्तर के अनुरुप संगीत रच सके हैं। यूट्यूब पर फिल्म के दो गीत तेलुगु और हिन्दी वर्जन के साथ उपलब्ध हैं। इन दोनों गीतों को सुनना तो मज़ेदार लगता है लेकिन हम इसे चोल साम्राज्य की भव्यता और संस्कृति के साथ रिलेट ही नहीं कर पा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि फिल्मों की कथावस्तु के अनुरुप संगीत देने की इंटेलिजेंस रहमान की सांगीतिक शैली में नहीं है। राहुल देव बर्मन के बाद ये विशेषता रहमान में ही देखी गई है। रहमान ने इससे पूर्व भी कालखंड फिल्मों के लिए संगीत दिया है। ‘लगान’ और ‘जोधा-अकबर’ में उन्होंने जो संगीत रचा था, उसके अंदर फिल्म की कथावस्तु समाई हुई थी। हालांकि ‘पीएस-1’ में ऐसा दिखाई नहीं देता। संगीत के वाद्ययंत्रों के साथ प्रयोग करने के लिए ख्यात रहमान अब कम्प्यूटर जनित ध्वनियों पर आश्रित हो चुके हैं।
संगीत में हमें मौलिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग नहीं दिखाई देता है, जो कालखंड यानी पीरियड फिल्मों के लिए अत्यंत आवश्यक है। नगाड़े का स्वर यहाँ ओरिजिनल ही चाहिए, कंप्यूटर उस स्वर को पैदा नहीं कर सकता। दूसरी बात मुझे ये अखरती है कि चोल साम्राज्य की कहानी आप दिखा रहे हैं लेकिन गीतों में जमकर उर्दू शब्दों का प्रयोग किया गया है। फिल्म के तेलुगु संस्करण के गीत नागराजन मुथुकुमार ने लिखे हैं. तमिल वर्जन के लिए इलिंगो कृष्णन ने लेखनी चलाई है।
जबकि हिंदी वर्जन रहमान के चहेते गीतकार महबूब से लिखवाए गए हैं। महबूब की उर्दू लेखनी कथा को उसके संगीत से दूर ले जाती प्रतीत होती है। कोई जुड़ाव नहीं दिखाई देता। महबूब ने ‘शहीदों का जश्न है’, हिम्मत,गैरत, खुमार, ख्वाहिशें, जूनून, दीवाना, हसीना, खंजर जैसे शब्दों का प्रयोग उस कथा के लिए किया है, जिसके नायकों की धाक नौवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक भारतवर्ष में जमी रही। वे तमिल शासक थे और इस समुदाय की भावनाएं उनसे जुड़ी हुई हैं।
इस नाते उर्दू शब्दों का प्रयोग अन्य भाषाओं के गीतों में नहीं डाला गया होगा। रहमान ने महबूब से ये गीत लिखवाए और उर्दूकरण पर आपत्ति भी नहीं ली। ‘पीएस-1’ के संगीत में रहमान का वह जादू नदारद है, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। उपरोक्त दोनों ही गीत ‘राग आधारित’ नहीं लगते। इससे अच्छा संगीत तो रहमान ने ऋत्विक रोशन की ‘ मोहनजो दारो’ के लिए क्रिएट किया था। रहमान के ये ‘कूल ड्यूड’ गीत आईपॉड पर सुनते हुए आनंद आएगा, इसमें संदेह नहीं है। किन्तु फिल्म के कथानक को देखते हुए जब इनकी समीक्षा की जाएगी, तो ये रहमान का ‘चूका हुआ क्रॉफ्ट’ कहा जाएगा। क्षमा कीजियेगा रहमान, आपसे तो इससे भी अधिक ऊंचाई की अपेक्षा होती है।