संदीप देव । सभी राम भक्तों को राम-राम और बधाई। राम मंदिर का उद्घाटन शीघ्र 22 जनवरी को होने वाला है। अतः जैसे कुछ दिन पहले के पोस्ट में मैंने आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट (2010) और सुप्रीम कोर्ट (2019) के निर्णय में स्कंद पुराण से उपस्थित साक्ष्य के बारे में बताया था, वैसे ही आज रूद्रयामल एवं इन ग्रंथो के जरिए राम जन्मभूमि प्राप्ति के लिए रचे गये व्यूह के बारे में बताऊंगा, जिसकी जानकारी अधिकांश हिंदू समाज को शायद नहीं है!
अदालत के निर्णय में स्कंद पुराण का जिक्र 80 बार से अधिक आया है। वकील पीएन मिश्रा जी ने स्कंद पुराण से जहां यह साबित किया कि राम जी का जन्म वास्तव में किस जगह हुआ, वहीं रूद्रयामल, वाल्मीकि रामायण आदि अन्य ग्रंथों से यह साबित किया गया कि सरयू किनारे अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था, जिस पर मंदिर निर्मित था। रूद्रयामल का वह श्लोक है:-
सरयूतीरपूतानां जन्मभूम्या विलोकिनाम्।
दर्शनात् पातकं तेषां कल्पकोटिशतायुतान्।।35।।
राममंदिरमासाद्य दर्शनं क्रियते नरै:।
मनसापि स्मृतं येन मुच्यते चरणत्रयात।।36।।
इसी तरह स्कंद पुराण का वह श्लोक है:-
तस्मात्स्थानत ऐशाने रामजन्म प्रवर्तते।
जन्मस्थानमिदं प्रोक्तं मोक्षादिफलसाधनम्।।18।।

इन दोनों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों के साक्ष्य के कारण पौराणिक और धार्मिक रूप से रामजन्म भूमि को अदालत में सत्यापित किया जा सका।
अदालत के निर्णय के बाद इन दोनों ग्रंथों का सम्मान करते हुए और संक्षिप्त रूप में इनके केवल अयोध्या माहात्म्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए गीता प्रेस ने अलग से ‘अयोध्या माहात्म्य’ (रुद्रयामलोक्त एवं स्कंदपुराणोक्त) नाम से एक अलग से ही ग्रंथ प्रकाशित किया, जिसकी भूमिका में लिखा है:-

“सर्वोच्च न्यायालय में राम जन्मभूमि के पौराणिक साक्ष्यों को विशेषकर उक्त दो ग्रंथों के प्रकाश में ही सिद्ध करना संभव हुआ।”
आप यह ग्रंथ कपोत के निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं। (Link: https://www.kapot.in/product/ayodhya-mahatmya-2302/ )
राम जन्मभूमि प्राप्त करने के लिए शंकराचार्यों की पीठ ‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ ने वकील पी.एन.मिश्रा और पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुणाल के साथ मिलकर कैसे व्यूह की रचना की, यह भी बेहद रोमांचकारी और जानने योग्य है!
अदालत में रामजन्म भूमि की पैरवी करने के लिए ‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ का गठन ज्योतिष पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ने किया था। यह संगठन अदालत में चारों शंकराचार्य जी का प्रतिनिधित्व करता था। इसकी ओर से अदालत में केस की पैरवी मशहूर वकील P.N. Mishra जी कर रहे थे। गवाही में उस समय ज्योतिष पीठ के प्रतिनिधि के रूप में श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी जा रहे थे, जो वर्तमान में वहां के शंकराचार्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में लिखा है कि अविमुक्तेश्वरानंद जी (ज्योतिष पीठ के वर्तमान शंकराचार्य) मुख्य गवाह थे और अदालत में उनका क्रॉस एग्जामिनेशन भी किया था। नीचे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रस्तुत कुछ पन्नों में आप इसे स्पष्ट पढ़ सकते हैं।



स्कंद पुराण के आधार पर ब्रिटिश काल में अंग्रेज अधिकारी एडवर्ड ने अयोध्या में उन सभी जगहों पर शिलापट्ट लगाया था, जो अदालत के समक्ष बहुत बड़ा साक्ष्य बन गया। इसे भी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने साक्ष्य के रूप में रखा, जिसे सुप्रीम कोर्ट के पैरा 36 में पढ़ सकते हैं।

इसमें एक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका पूर्व IPS अधिकारी किशोर कुणाल जी की भी है। किशोर कुणाल हनुमान जी के परम भक्त हैं। पटना स्टेशन के पास का सबसे बड़ा हनुमान मंदिर उन्हीं के प्रयासों से निर्मित है। यह मंदिर महावीर कैंसर संस्थान भी चलाता है, जहां सबसे कम दर में कैंसर का इलाज होता है। इतिहास और संस्कृत के विद्वान किशोर कुणाल दरभंगा के संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं। अपने धर्म, इतिहास और संस्कृत प्रेम के कारण उन्होंने अपने सर्विस के बचे हुए 10 साल से भी अधिक पहले स्वैच्छिक अवकाश ले लिया था।
अभी अयोध्या के रामलला मंदिर के उद्घाटन के लिए किशोर कुणाल के प्रयास से राम जी के ससुराल (मिथिला) पक्ष की ओर से पटना के महावीर मंदिर से करोड़ों रुपये का दान और उपहार सामग्री भी भेजी गई है।
पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह और चंद्रशेखर ने उन्हें Officer on Special Duty(Ayodhya) नियुक्त किया था, जिस कारण हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्ष राम जन्मभूमि संबंधित सारे साक्ष्य उन्हीं के पास जमा कराते थे। राम जन्मभूमि के साक्ष्य तक जितनी सीधी पहुंच किशोर कुणाल की थी, उतनी किसी की नहीं रही। इसलिए वह इस मामले के सबसे बड़े जानकार और विशेषज्ञ के रूप में उभरे।
उनके पास जब विश्व हिंदू परिषद की ओर से साक्ष्य जमा किया गया तो वह चौंके! विहिप पक्ष द्वारा राम मंदिर को बाबर द्वारा तोड़े जाने का सबसे बड़ा साक्ष्य केवल एक पुस्तक थी जिसका लेखक अनाम था। यह पुस्तक थी,’सहीफा-ए-चहल नसैह बहादुर शाही’। संघ और उससे जुड़े इतिहासकारों व लेखकों का कहना था कि यह पुस्तक औरंगजेब की पोती ने लिखी है। इसे भी सेकेंड्री सोर्स में ‘हदीका-ए-शाहदा’ के लेखक मिर्जा जान के द्वारा उद्धृत किया गया था।
आश्चर्य यह कि इस पुस्तक के कुछ लाईन में मुगल शासकों द्वारा अयोध्या, मथुरा, काशी में मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने जाने का जिक्र तो है, परंतु इसमें कहीं यह जिक्र नहीं था राम जन्मभूमि का मंदिर बाबर ने तोड़ा था। विहिप की ओर से जिसे सबसे मजबूत साक्ष्य बनाकर पेश किया गया था, दरसल वह सबसे कमजोर साक्ष्य था! इसे पढ़कर किशोर कुणाल का माथा ठनका! उन्होंने लिखा है कि यह साक्ष्य मात्र कुछ सुनवाई में धाराशाई हो जाता। इस संदिग्ध पुस्तक को साक्ष्य के साथ उन्होंने अपनी थिसिस में बुरी तरह से ध्वस्त कर इसे साबित भी किया है।
आगे बढ़ते हैं। किशोर कुणाल ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी के पास पहुंचे और बताया कि यदि हिंदू पक्ष की ओर से इसी तरह के संदिग्ध साक्ष्य पेश किए गये तो हिंदू पक्ष केस हार जाएगा। इसके बाद ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी ने चारों पीठ की ओर से ‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ का गठन किया। समिति की ओर से इस केस में पैरवीकार बने बंगाल के जाने-माने वकील पी.एन.मिश्रा।

उधर किशोर कुणाल ने राम जन्मभूमि पर पुराण से लेकर इतिहास और पुरातत्व तक-सारे साक्ष्य को आधार बनाकर एक थिसिस लिखना आरंभ किया। वह थिसिस बाद में ‘Ayodhya Revisited’ नाम से प्रभात प्रकाशन के अंग्रेजी विभाग Ocean Books से छपी, जिसे आप निम्न लिंक से प्राप्त कर सकते हैं। (Link: https://www.kapot.in/product/ayodhya-revisited/ )
किशोर कुणाल थिसिस की भूमिका में लिखते हैं, ” I must intervene in Ayodhya dispute and thus prepared this thesis assiduously, a part of which brilliantly submitted before the Hon’ble High Court by Advocate P.N..Mishra, one of the outstanding civil lawyers in the country.”
अर्थात् किशोर कुणाल साक्ष्य के साथ थिसिस लिख कर वकील पी.एन.मिश्रा को देते थे और मिश्रा जी उसे अदालत में तार्किक ढंग से पेश करते थे। इस थिसिस के कारण राम जन्मभूमि पर हिंदू पक्ष के पास वैज्ञानिक, ठोस और अकाट्य साक्ष्य आ गया, जिसने केस में जीत दिलवाने में अहम भूमिका निभाई।
किशोर कुणाल की यह थिसिस इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय (2010) के छह साल बाद 2016 में जाकर पुस्तक के रूप में आई। इसकी कॉपी वह तब के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी को भी भेंट करने गये थे (नीचे फोटो संलग्न)।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में राम जन्मभूमि के पक्ष में जो निर्णय आया, उसमें स्कंद पुराण, रूद्रयामल आदि धर्म ग्रंथों के साथ इस थिसिस की भी बड़ी भूमिका रही।
आज अधिकांश हिंदुओं को यह नहीं पता है कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि पर हिंदुओं के पक्ष में जो निर्णय दिया, उसमें सारे साक्ष्य यथावत इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही लिए गये हैं। 929 पेज में सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन व निर्णय है और बाद के 116 पेज में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट और साक्ष्य को यथावत रखा गया है। यही नहीं, 929 पेज में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय का 50-60% सम्मिलित किया गया है। अर्थात् 2019 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का आधार 2010 के इलाहाबाद का वह फैसला और उसमें प्रस्तुत साक्ष्य ही है।

आज अधिकांश हिंदुओं को शंकराचार्यों द्वारा राम जन्मभूमि प्राप्ति के लिए वकील पी.एन.मिश्रा और विद्वान किशोर कुणाल जैसै विशेषज्ञ के साथ मिलकर रचे गये इस व्यूह का पता ही नहीं है, क्योंकि न तो उन्होंने हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पढ़े हैं और न ही मीडिया ने ही उन्हें सच्चाई बताया है! इसमें सारा दोष मीडिया का है, क्योंकि जनशिक्षण का काम उन्हीं का है, जिसमें वो लगातार चूक रहे हैं।
अतः हमें अपने शास्त्रों, अपने धर्म गुरुओं और विद्वानों का सम्मान करना चाहिए। आज कलियुग में प्रत्यक्ष रूप से इन तीनों की जुगलबंदी ने हमें अपने आराध्य श्रीराम का जन्म स्थान दिलाने में महती भूमिका निभाई है। बिना शास्त्र, बिना धर्म गुरु और बिना विद्वान कोई भी धर्म और विचारधारा लंबे समय तक नहीं टिक सकती।
आगे आपको अदालत के निर्णय से और अधिक साक्ष्यों के साथ इतिहास तो बताऊंगा ही, साथ ही यह भी बताऊंगा और चित्र से दिखाऊंगा कि शंकराचार्यों ने राम जन्मभूमि पर 1008 फीट ऊंचा राम मंदिर निर्माण का कैसा नक्शा और आकृति प्रस्तुत किया था! उसकी शैली और भव्यता सनातन की दिव्यता लिए हुए थी।
यह सब आप श्रृंखला के रूप में #ISDYoutube Channel पर प्रतादिन दोपहर 3.15 बजे देख और सुन भी सकते हैं। अभी तक इस पर तीन वीडियो की श्रृंखला आ चुकी है। आज रात्रि 9 बजे कोर्ट केस के एक जनकार के साथ वार्ता भी है। आप सब सनातनी अवश्य पधारें।
जयश्री राम। 🙏