अर्चना कुमारी। दिल्ली दंगे के मामले की सुनवाई कर रही एक अदालत ने एक जांच अधिकारी के आचरण की निंदा की। अदालत का कहना था कि पुलिस अधिकारी अदालत के साथ लुका-छिपी का खेल खेल रहे हैं।
वह अदालत को गुमराह करने की भी कोशिश कर रहे हैं। कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने तीन आरोपियों के खिलाफ दयालपुर पुलिस थाने के एक मामले में आरोपों पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की। न्यायाधीश ने पाया था कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के अलावा यह मामला चार शिकायतों से संबंधित है।
उन्होंने कहा कहा कि फारूक अहमद की एक शिकायत में 25 और 26 फरवरी की दरमियानी रात को दो अलग-अलग कथित घटनाओं का उल्लेख है। जबकि प्राथमिकी 25 फरवरी को सुबह करीब 9.50 बजे मुख्य वजीराबाद रोड पर विक्टोरिया पब्लिक स्कूल के सामने एक दंगे की घटना से संबंधित थी।
संबंधित अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि कई घटनाओं को एक ही आरोप पत्र में मिलाने के कारण अदालत को बार-बार विचार-विमर्श करना पड़ रहा है। क्योंकि कानून के मापदंडों के भीतर यह तय करने के लिए एक स्पष्ट तस्वीर तैयार हो सके कि किन आरोपों पर आरोप तय किए जाने हैं।
न्यायाधीश ने अदालत के समक्ष जांच अधिकारी के पहले के बयान को संज्ञान में लिया, जिसके अनुसार अहमद की शिकायत से संबंधित कथित घटनाओं की अलग से जांच की जाएगी और इस संबंध में एक अलग रिपोर्ट दाखिल की जाएगी।