श्वेता पुरोहित। नारदजी बोले, वैशाख मास में तेल मलना, दिन में सोना कांसे के बर्तन में भोजन, खाट पर सोना, घर में स्नान निषिद्ध भोजन, दोबारा भोजन और रात्रि काल में भोजन वर्जित हैं। वैशाख के महीना में नियमपूर्वक कमल के पत्तों पर भोजन करने से सब पापों से निवृत होकर विष्णुलोक मिलता है । वैशाख की दुपहरी में थके हुए ब्राह्मणों की चरण सेवा करने से सब व्रतों से उत्तम व्रत कर लिया समझो। जो दुपहर के समय मार्ग चलने से अपने घर आए हुए ब्राह्मणों को सुन्दर आसन देकर उसके चरणों को दबाता है और चरणोदक को अपने मस्तक पर छिड़कता है उसके सब बन्धन कट जाते हैं। उसको गंगा आदि सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने के बराबर फल मिलता है, जो मनुष्य वैशाख में स्नान नहीं करते हैं और कमल के पात्र पर भोजन नहीं करते हैं, वह गधैया की योनि पाता है पीछे खच्चरी की योनि में जाता है जो मनुष्य हृष्टपुष्ट रोगहीन और स्वस्थ होकर भी वैशाख में स्नान नहीं करता है वह चांडाल की योनि पाता है।
हे राजन! वैशाख के महीने में मेष की संक्रांति के दिन बाहर जाकर किसी तीर्थपर स्नान नहीं करता है वह सौ जन्म तक कुत्ता की योनि पाता है, जो मनुष्य इस वैशाख मास को बिना स्नान किए अथवा बिना दान किए व्यतीत कर देता है, वह पिशाच योनि प्राप्त कर नरकों को चला जाता है । वैशाख मास में अन्नदान व जलदान न करने से पाप और दुख कभी दूर नहीं होते हैं इसमें संशय नही है ।
वैशाख मास में नदी में स्नान करके विष्णु भगवान् में मन लगाने से तीनों जन्मों के संचित पाप नष्ट होजाते हैं इनमें संशय नहीं। प्रातःकाल सूर्योदय होनेपर सागर से मिलने वाली नदियों में स्नान करने से सात जन्म के भी पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं, उषःकाल में सप्तगङ्गा में स्नान करने से कोटि जन्म पर्यंत के पाप तुरंत नष्ट हो जाते हैं इसमें संशय नहीं ।
जाह्नवी, वृद्धगङ्गा, कालिन्दी, सरस्वती, कावेरी नर्मदा और वेणी यह सात गङ्गा कही जाती हैं। वैशाख मास में देवखात अर्थात् अप्राकृत जलाशयों में स्नान करने से जन्म से लेकर उस समय तक के पापों से छूट जाता है इसमें संशय नहीं। वैशाख महीने में बावड़ी में स्नान करने से बड़े बड़े पाप दूर हो जाते हैं, जो घर से अलग गौ के चरण रखने की जगह के समान जल भरा हो तो वहाँ गंगा से आदि लेकर सब नदी निवास करते हैं यह बात निश्चय है। जो इस बात को जानता है उनको सम्पूर्ण तीर्थों से अधिक फल होता है।
हे राजन! रसों में दूध अधिक है और दूध से दही अधिक और दही से घृत उत्तम है ऐसे ही महीने में कार्तिक मास उत्तम है। कार्तिक से अधिक माघ अधिक है माघ से वैशाख अधिक है इस महीने में जो धर्म किया जाता है वह बड़ के बीजकी तरह बढ़ता है। धन सम्पन्न अथवा अत्यन्त दरिद्री अथवा पराधीन को भी जो वस्तु मिल जाय वह ब्राह्मण को देनी उचित है।
कन्द, मूल, फल, शाक, नमक, गुड़, बेर, पत्र, जल और छाछ जो वस्तु दान की जायगी अपरिवर्तित होती जायगी बिना दिये ब्रह्मादि देवताओं को भी नहीं मिलेगा। दान नहीं करने से दरिद्रता आ जाती है दरिद्री होने से पाप किया जाता है। पाप करने से नरक मिलता है। इसलिसे सुख की इच्छा करने वाले को अवश्य दान करना चाहिये। कोई बड़ा मकान अच्छा सुन्दर और सब सामग्रियों से शोभायमान हो उस पर छत न हो तो शोभा नहीं पाता है ऐसे ही जो मनुष्य और महीनों में सब प्रकार के धर्म करता है और वैशाख में कुछ नहीं करता है उसका किया सब वृथा ही है। जैसे सुलक्षिणी स्त्री पति के विद्यमान होने से ही लक्षणवती होती है इसी तरह सभी धर्म सांगोपाङ्ग वैशाख में न करने से वृथा ही होते हैं जैसे दया न होने पर सब गुण वृथा हैं ऐसे ही वैशाख में धर्म किये बिना सम्पूर्ण क्रिया वृथा हैं।
जैसे उत्तम शाक भी बिना नमक के स्वादिष्ठ नहीं लगता है वैसे ही जो पुण्य वैशाख में नहीं किये जाते हैं वे अच्छी रीति से सेवनीय नहीं हैं। न उनका कुछ फल मिलता है जैसे किसी रूपवती स्त्री का अच्छा शृंगार होने पर भी बिना वस्त्र सुहावनी नहीं लगती है ऐसे ही मनुष्य अनेक प्रकार को धर्म सम्बन्धी क्रिया करता है परंतु वैशाख में न करने से सब शोभा को प्राप्त नहीं होती है। इसलिये जैसे
बने वैसे प्रयत्न पूर्वक वैशाखमें धर्म करना उचित है यह बात निश्चय है। मेष की संक्रांति में मधुसूदन भगवान का ध्यान करके प्रातःकाल स्नान करऔर फिर विष्णु का पूजन करे ऐसा न करने पर नरक मिलता है। वैशाख मास सद्य फलदायक है और इसके मधुसूदन भगवान देवता है, तीर्थयात्रा, तप, यज्ञ, दान और होम आदि का फल भी इसमें अधिक होता है। इस मंत्र से मधुसूदन भगवान की प्रार्थना करे –
“ मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे खौ।
प्रातः स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।
हे मधुसूदन ! देवदेव! हे माधव ! मैं वैशाख में मेष की संक्रांति पर प्रातः स्नान करने की कामना करता हूँ आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कर दीजिये।
फिर अर्घ्य दे ।
अर्घ्यमन्त्र वैशाखे मेषगे भानौ प्रातः स्नानपरायणः। अर्घ्यं तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।
अर्घ्य मंत्र का अर्थ हे मधुसूदन ! वैशाख में मेष की संक्रान्ति में स्नान कर आपको अर्घ्य देता हूँ इसे भलीभांति ग्रहण कीजिये।
गङ्गादि सब नदी, तीर्थ, सब जलाशय, मेरे दिये हुये अर्ध्य को प्रसन्नता से ग्रहण करो और मुझ पर प्रसन्न हो। आप पापियों पर शासक योग्य समदर्शी, सबके स्वामी हैं इस लिये मेरे दिये अर्ध्य को ग्रहण कर यथोचित फल दीजिये इस प्रकार अर्घ्य दे स्नान करे और फिर वस्त्र पहनकर आह्निक कर्मों को करे।
वैशाख में होनेवाले फूलों से मधुसूदन भगवान् का पूजन करके विष्णु भगवान् की वैशाखमास सम्बन्धी दिव्य कथा सुने, वह कोटि जन्म के संचित पापों से छूटकर मोक्ष पाता है, उसको पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल कहीं भी दुख नहीं होता वह कभी गर्भ में नहीं आता है और न कभी माता का दूध पीता है, जो वैशाख में कांसे के पात्र में भोजन करता है और उत्तम उत्तम कथा नहीं सुनता, न स्नान करता है न दान, वह नरक में ही जाता है, हजार ब्राह्मणों की हत्या का पाप किसी तरह दूर हो जाता है, परन्तु जो वैशाख में स्नान नहीं करता उसका पाप कभी दूर नहीं होता, जो मनुष्य स्वाधीन शरीर से स्वतंत्रवर्ती जलमें स्नान करता है और स्वाधीन जिह्वा से हरि, इन दो अक्षर का उच्चारण करता है, यदि वह नीच वैशाख में प्रातःकाल स्नान नहीं करता है तो उसे जीवित हुआ ही मरा समझो इसमें कोई सन्दह नहीं है, जिसने किसी भी प्रकार से भी वैशाख के महीने में मधुसूदन भगवान् का पूजन नहीं किया वह मूढबुद्धि सूकर की योनि पाता है, जो तुलसीदल से वैशाख में मधुसूदन भगवान् का पूजन करता है, वह सार्वभोम राजा हो कोटि जन्म तक अनेक सुख भोगता है, फिर अपने करोड़ कुलों को लेकर विष्णु को सायुज्य मुक्ति पाता है।
इति श्रीस्कन्दपुराणे वैशाखमाहात्म्ये नारदाम्बरीषसंवादे वैशाखधर्मप्रशसनं चतुर्थोऽध्यायः