अजय शर्मा काशी। यहां जो शिव कहें तो कहते हैं राम जिनके ईश्वर वही रामेश्वर , और राम कहें तो वही राम के जो ईश्वर वही रामेश्वर। यहाँ शिव अपने भाव को रामजी के प्रति प्रकट किए हैं और राम शिव जी के प्रति। दोनो ही रूप ब्रह्म स्वरूप हैं। जो राम को नही जाना वो शिव कैसे समझ सकता है और जो शिव को नही जाना वो कैसे रामजी को जान पायेगा।
ये काश्यां निवसन्ति शङ्करपरा विष्णोः समाराधका।
स्तेषाम्पापचयोऽपि याति विलयम्मुक्तिं लभन्तेऽपि च ।।
जो काशी में भगवान् शङ्कर को अपना परम आराध्य मानते हैं अथवा भगवान् विष्णु की सम्यक् आराधना करते हुए वास करते हैं, उनका सञ्चित पाप नष्ट हो जाता है और वे मुक्ति को प्राप्त करते हैं।
देवभूमि काशी का सत्य….
श्रीहर श्रीहरि की नगरी काशी के पग पग पर विद्यमान पौराणिक तीर्थों एवं देवमंदिरों के सौंदर्यीकरण एवं जीर्णोद्धार हेतु अन्य सरकारों से कई गुना अधिक धन विगत वर्षों से योगी जी की सरकार में आ रहा है..
परन्तु दुर्भाग्य है, वह धन काशीखण्ड के मूल पौराणिक मंदिरों पर खर्च न होकर मात्र… आडंबर रचित व्यक्ति विशेष के निर्देशानुसार मंदिरों पर खर्च हो रहा है..या ??.., परिणामतः अनेक पौराणिक मंदिर उपेक्षित पड़े हैं।
जिसका साक्षात् प्रमाण है काशी के रामघाट पर भगवान राम द्वारा स्थापित पूजित- रामेश्वर महादेव….जो विगत 6 वर्षो से मिट्टी में दबा था परन्तु उसकी सुधबुध लेने वाला कोई नही था… परन्तु विगत दिनों आप सब की जागरूकता से परिणाम सामने है…..
उपरोक्त रामेश्वर लिंग के संदर्भ में देवाधिदेव महादेव कहते है– हे वीर! रामेश्वर के आगे रामतीर्थ है, उसमें केवल स्नान करने ही से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है–
ततस्तु रामतीर्थं च बीर रामेश्वराऽग्रतः।
तत्तीर्थस्नानमात्रेण वैष्णवं लोकमाप्नुयात्॥
काशीखंड अध्याय 84 के श्लोक सं..69 के आधार पर काशी के अन्य मंदिर पूजित हो रहे परंतु रामघाट पर विराजमान मूल भगवान रामेश्वर महादेव अपने भक्तों से वंचित है।
काशी की अयोध्यापुरी के अंतिम सीमा पर भगवान राम द्वारा स्थापित पूजित रामेश्वर लिंग की रक्षा हेतु विगत चार वर्ष से प्रयास रत महंत मंगला गौरी पं. नरेंद्र पांडेय जी और बीएचयू धर्मशास्त्र विभाग के प्रो.माधव रटाटे जी सहित अन्य शिवभक्त और उक्त कार्य में पूर्ण सहयोगी रहें मंडल अध्यक्ष नलिन नयन मिश्रा एवं क्षेत्रीय पार्षद श्रीमति कनक लता जी द्वारा 21 जनवरी को देव स्थान से मिट्टी हटवाने के लिए मैं कोटि कोटि धन्यवाद करता हूं । हरि हर