विपुल रेगे। (पॉलिटिकल डेस्क ) सर्वोच्च न्यायालय ‘शनि’ बनकर भाजपा की कुंडली में जा बैठा है। इलेक्टोरल बांड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने निगाहें टेढ़ी कर ली है। जनता को बिना सोर्स बताए हज़ारों करोड़ के चंदे की ख़ुशी सहसा ही ‘मार्गी’ से ‘वक्री’ हो चली है। गत 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम खारिज करते हुए एसबीआई को 6 मार्च तक चुनाव आयोग के समक्ष लेन-देन की सारी जानकारी उपलब्ध कराने के सख्त निर्देश दिए थे। समय सीमा समाप्त होने के अड़तालीस घंटे पहले ही स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भागा-भागा सुप्रीम कोर्ट की शरण में जा पहुंचा और कहा कि ‘हुज़ूर’ जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय चाहिए। एसबीआई को ‘पीछे’ से चला रहे लोग जानते हैं कि यदि सूचनाएं बाहर आई तो पिछले दस वर्ष से निरंतर बजाई जा रही सत्यनिष्ठा की पुंगी बंद हो जाएगी।
चुनावी चंदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का हलक सूख गया है। बुधवार 6 मार्च को एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट के पटल पर चुनावी चंदे की सारी जानकारी रखनी थी। समय सीमा समाप्त होने से पहले ही सोमवार को एसबीआई भागा-भागा सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुँच गया। विगत 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक कदम उठाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को चुनावी चंदे से जुडी जानकारी सार्वजनिक करने के लिए 6 मार्च तक का समय दिया था। सोमवार को एसबीआई ने कोर्ट के समक्ष जो बहानेबाज़ी की है, उसे जानकर आम नागरिक को भी हंसी आ जाएगी।
एसबीआई ने कहा कि वह 6 मार्च तक जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकता। जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एसबीआई को 30 जून तक का समय चाहिए, यानि तब तक आम चुनाव समाप्त होकर परिणाम आ जाएगा और नई सरकार पुनः अपना कार्यकाल शुरु कर चुकी होगी। इसका साफ़ अर्थ है कि एसबीआई भी किसी ‘अदृश्य’ दबाव में जानकारी देने से हिचक रहा है। आइये अब एसबीआई के बहानों को समझते हैं और जानते हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देना वाकई कोई रॉकेट साइंस है।
एसबीआई ने कोर्ट के समक्ष कहा है कि 12 अप्रैल 2019 से लेकर 15 फरवरी 2024 के बीच 2217 चुनावी बांड जारी किये गए। ये बांड्स विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए जारी किये गए थे। एसबीआई ने कहा कि बांड्स मुंबई स्थित एक शाखा में डिपॉजिट किये गए थे। एसबीआई ने कहा कि ये सूचनाएं कम्प्यूटर के दो अलग स्लॉट्स में स्टोर की गई है। इस तरह एसबीआई को 44 हज़ार 434 सेट्स की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देनी है। एसबीआई को लगता है कि इस कार्य के लिए तीन माह का समय और लगेगा।

एसबीआई का इस मामले में कहना है कि इस ट्रांजिक्शन के दो हिस्से हैं। एक हिस्से में बांड खरीदने वाली की जानकारी है और दूसरे हिस्से में उनकी, जिन्होंने इसे रिडीम किया या भुनाया है। एसबीआई के मुताबिक इन दोनों हिस्सों की जानकारी को मिलाना होगा, जिसमे समय लग सकता है। अब समझते हैं कि क्या वाकई में इस काम के लिए एसबीआई को तीन माह चाहिए। ढाई लाख कर्मचारियों के विशाल स्टाफ वाले एसबीआई के लिए दोनों स्लाटों का मिलान कर जानकारी देने में एक सप्ताह से कम समय लगेगा। एसबीआई के कर्मचारी हर दिन करोड़ों के ट्रांजिक्शन का हिसाब करते हैं। ये काम हिमालय पर चढ़ने जैसा तो कठिन नहीं है।
डाटा एनालिसिस के लिए आज एक से एक बेहतरीन सॉफ्टवेयर उपलब्ध है, जो घंटों में ये काम कर सकते हैं। एसबीआई के पास न लोगों की कमी है और न संसाधन की। ये खेल समय काटने का दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी इसे अच्छे से समझ रहा है। सुप्रीम कोर्ट को और सख्त होकर समय सीमा घटा देनी चाहिए। एसबीआई ये काम महज बारह घंटों में कर आपके सम्मुख प्रस्तुत हो जाएगा। भाजपा शासित मोदी सरकार की गर्दन 15 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट के हाथों में फंसी हुई है।
ये सरकार दावा करती है कि वह अब तक की सबसे निष्ठावान और साफ़ सुथरी सरकार है। इस सरकार का ये भी दावा है कि आज की तारीख में सारा भ्रष्टाचार कांग्रेस कर रही है, जो दस साल से सत्ता में ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को ठीक चुनाव से पहले एक भंवरजाल में फंसा दिया है। एसबीआई को जानकारी तो देनी ही होगी। ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जब संस्था द्वारा मना करने पर कोर्ट ने स्वयं ही वह काम करा लिया है। सीजेआई चंद्रचूड़ चाहे तो वे कार्य आज की आज करा सकते हैं। इस मामले में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस व् अन्य पार्टियां भी उलझी हुई हैं। हालाँकि सबसे अधिक चंदा बटोरकर भारतीय जनता पार्टी इस सर्वदलीय चंदा गिरोह की ‘सरगना’ घोषित हो चुकी है। आम आदमी चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट इन्हें रगड़ रगड़कर पैसों की जानकारी उगलवाए।
12000 करोड़ कुल चंदा
22217 बांड्स के जरिये पैसा लिया गया
भाजपा -6,556 करोड़
कांग्रेस – 1123 करोड़
तृणमूल कांग्रेस –1093 करोड़
बीजू जनता दल –774 करोड़
डीएमके –617 करोड़
आम आदमी पार्टी –94 करोड़
एनसीपी –64 करोड़