आनंद राजाध्यक्ष। स्वतन्त्रता दिवस, 15 अगस्त को आप को सोशल मीडिया में कई मुसलमान हिंदुओं को उलाहना देते मिलेंगे कि हिंदुस्तान की आज़ादी की जंग तो मुसलमानों ने ही लड़ी थी, हिंदुओं ने उनका साथ नहीं दिया था । इसपर विचलित न हों।
बल्कि शांति से कह दीजिये, हाँ, मुसलमानों ने हिंदुस्तान की आज़ादी की जंग लड़ी, और १४ अगस्त को पाकिस्तान ईज़ाद कर लिया। हिंदुओं ने भारत के स्वाधीनता का संग्राम लड़ा। दोनों पूर्णत: भिन्न थे यह हिंदुओं को धीरे धीरे पता चलने लगा जब मुसलमानों द्वारा अलग मुल्क की मांग उठाई जाने लगी, हिंसा होने लगी जिसका चरम बिन्दु डायरेक्ट एक्शन डे में दिखाई दिया।
आज़ादी के माने क्या ? ला इला इलल्ललाह – कश्मीर में जब सुनाई दिया तो समझ आया कि आठसौ वर्ष तो इसी आज़ादी से स्वतंत्र होने के लिए हमारे पूर्वजों ने रक्त बहाया था। यह तो गांधी, नेहरू और मौलाना बर्बाद की मेहनत का नतीजा है कि हमने आज़ादी को स्वतन्त्रता की जगह छीनने दी। हुतात्मा या बलिदानी को शहीद कहते रहे और पता नहीं अभी और कितने साल कहते रहेंगे।
लेकिन सरकार इन शब्दों को ऑर्डर निकाल कर प्रतिबंधित नहीं कर सकती, इसके परिणाम अच्छे नहीं आएंगे, खास कर ऐसी घड़ी में। इसलिए हमें ही आज़ादी और शहीद की जगह स्वतन्त्रता / स्वाधीनता और हुतात्मा या बलिदानी कहते रहना होगा, मित्रों को यह फर्क समझाना होगा। आप को कोई ज़बरदस्ती आज़ादी और शहीद कहने को नहीं कहेगा, धीरे धीरे सब की ज़ुबान पर चढ़ जाएँगे। भाषण देते हुए नेताओं के भी।
वर्षों की आदत है, जाते जाते ही जाएगी, किसी पर ज़बरदस्ती न करें, किसी को शर्मिंदा करने का प्रयास न करें, परिणाम विपरीत ही आएंगे। धीरे धीरे ही होगा। कोई अगर पूछे कि आप क्यों स्वतन्त्रता / स्वाधीनता और हुतात्मा या बलिदानी कहते हैं, आज़ादी और शहीद क्यों नहीं कहते, तो उसे कारण समझाने का अवसर न गँवाएँ । वो व्यक्ति और दस को यह संदेश पहुंचाएगा। बात ऐसे ही आगे बढ़ सकती है। समय तो लगेगा। कोई पुतला थोड़े ही है जो तुरंत उखाड़ा जाये। समय लगेगा ही।
वापस लौटते हैं उन भैजान लोगां पर जो सोशल मीडिया में हमें शर्मिंदा करने की कोशिश कर रहे होंगे। जवाब तो मिल चुका होगा, अब एक सवाल भी पूछ लीजिये।
अगर भारत स्वतंत्र न हो कर मुसलमानों के हिसाब से हिंदुस्तान आज़ाद हो जाता तो उसका झण्डा कौनसा होता, राष्ट्रगान कौनसा होता और सब से अहम बात, उस हिंदुस्तान में हम हिंदुओं की हालत और हैसियत क्या होती ? क्या हम हिन्दू होते भी, या थरथर काँपते सोते कि जो बेटी आज अपने घर में सोयी है, कल न जाने कहाँ होगी ?
सभी का खून शामिल था यहाँ की मिट्टी में, हम अनजान थोड़े ही हैं ? लेकिन जिनके अब्बाजान ने लिया पाकिस्तान, अब हिंदुस्तान उनका थोड़े ही है?