विपुल रेगे। सरकार में रहते हुए भाजपा और संघ परिवार से अपनी आलोचना सहते नहीं बन रही है। आलोचना से परेशान केंद्र सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगातार हमलावर है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने सार्वजनिक रुप से कहा है कि भारत सरकार एक्स पर चल रहे कुछ अकाउंट बंद कराना चाहती है लेकिन एक्स यानि ट्वीटर स्वयं नहीं चाहता कि इन अकाउंट्स पर रोक लगाई जाए। मोदी सरकार और सोशल मीडिया मंचों के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है। लोगों की आवाज़ दबाने के लिए केंद्र सरकार पिछले कई वर्ष से ये पैंतरे आज़मा रही है। अब ताज़ा मामला किसान आंदोलन से जुड़े ट्वीटर अकाउंट्स का है। सरकार ट्वीटर पर दबाव डालकर इन अकाउंट्स को बंद करवा रही है।
सूत्रों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने गृह मंत्रालय के अनुरोध पर किसानों के विरोध प्रदर्शन से जुड़े 177 सोशल मीडिया अकाउंट और वेब लिंक को अस्थायी रूप से ब्लॉक करने का आदेश दिया है। एक्स ने अपनी ऑफिशियल पोस्ट में लिखा कि भारत सरकार ने कार्यकारी आदेश जारी किये हैं। आदेश में कहा गया है कि कुछ विशेष अकाउंट्स और पोस्ट्स पर कार्रवाई की जाए। एक्स इन आदेशों का पालन करते हुए केवल भारत में ही इन खातों और संबंधित पोस्ट्स पर रोक लगाएगा। भारत में जब सोशल मीडिया संस्कृति शुरु हुई, भाजपा की सरकार नहीं थी।
विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने सोशल मीडिया की ताकत का अनुमान लगा लिया था। उस समय सोशल मीडिया की सहायता से भाजपा ने कांग्रेस पर आक्रामक हमले किये और उसकी प्रचंड जीत में इसी सोशल मीडिया का प्रमुख योगदान रहा। आज इतिहास खुद को दोहरा रहा है। जैसे अपने पतन के समय कांग्रेस सोशल मीडिया पर सवाल उठाती थी, वैसे ही मोड में अब भाजपा आ चुकी है। केंद्र सरकार को अपनी निरंतर आलोचना कचोट रही है। मैन स्ट्रीम मीडिया पर तो सरकार का अघोषित कब्ज़ा किसी से छुपा नहीं है। मज़े की बात ये है कि केंद्र सरकार अपने एक मुंह से कहती है कि हम स्वस्थ आलोचना के पक्षधर हैं और दूसरी तरफ वह ट्वीटर को कार्यकारी आदेश देती है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट अब भी उनके एक्स अकाउंट पर मौजूद है। 2018 के इस ट्वीट में वे कहते हैं ‘मैं चाहता हूँ कि इस सरकार की आलोचना हो। आलोचना लोकतंत्र को मजबूत बनाती है।’ हालाँकि उनका ये कथन उनकी सरकार नहीं मानती। इस बयान के एक वर्ष बाद ही 2019 में मोदी सरकार और सोशल मीडिया के बीच तनातनी शुरु हो चुकी थी, जो आज तक बदस्तूर जारी है। फेसबुक पर तो काबू पा लिया गया लेकिन एक्स यानी ट्वीटर काबू में नहीं आया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने केंद्र पर आरोप लगाते हुए कहा था कि कृषि कानूनों के खिलाफ भारत में हुए विरोध प्रदर्शन के समय सरकार ने आलोचना करने वाले कई ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने के निर्देश दिए थे।
डोर्सी ने दावा किया कि भारत सरकार की तरफ से उन पर दबाव बनाया गया और ट्विटर को भारत में बंद करने की भी धमकी दी गई। डोर्सी ने ये आरोप भी लगाए कि सरकार की तरफ से उनके कर्मचारियों के घरों पर छापेमारी की बात कही गई। साथ ही नियमों का पालन नहीं करने पर ऑफिस बंद करने की भी धमकी दी गई। डोर्सी ने कहा कि यह सब भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में हुआ। ये सर्वविदित है कि जब नई सरकार पुरानी होने लगती है तो आलोचनाएं भी अधिक होने लगती है। जब मैन स्ट्रीम मीडिया जी-हुजूरी और अवतारवाद में व्यस्त हो और दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर सरकार की घोर आलोचना हो रही हो तो सरकार का घबराना लाज़मी है।
सरकार सोशल मीडिया पर भी अपनी स्तुति-वंदना चाहती है। यही कारण है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैण्डर्ड’ के माध्यम से उन अकाउंट्स का विशेष रुप से शिकार किया गया, जो मोदी सरकार की खरी आलोचना कर रहे थे। फेसबुक ने तो मिम्स बनाने वालों को नहीं बख्शा। 2018 में फेसबुक ने एक पेज को एक पोस्ट होने के चंद घंटों के भीतर बंद कर दिया। इस पेज ने पीएम नरेंद्र मोदी की एक बच्चे के साथ तस्वीर अपलोड की, जिसमें हिटलर की ऐसी ही तस्वीर लगाकर दोनों की तुलना की गई थी। कुछ ही घंटों में फेसबुक ने पहले तस्वीर हटाई और फिर पेज बंद कर दिया।
क्या ये इतना घातक अपराध था कि जिसके लिए पेज ही बंद कर दिया गया ? ट्वीटर अब भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरक़रार रखे हुए हैं। ट्वीटर की इस हिमाकत के कारण 2020 से लेकर अब तक सरकार से उसका संघर्ष चालू है। ऐसा नहीं है कि एक्स ने सरकार के खिलाफ विद्रोह की तलवार खींच रखी हो। पिछले वर्ष एक्स ने 25 लाख अकाउंट पर प्रतिबंध लगा दिया था। हमारी सरकार ऐसा दिखाना चाहती है कि देश में सब ठीक चल रहा है। ये प्रोजेक्शन मैन स्ट्रीम मीडिया अच्छी तरह दिखा रहा है लेकिन एक्स जैसे मंचों पर अब भी वास्तविकता प्रकट हो रही है। इस कन्फ्लिक्ट को वे लोग समझ सकते हैं, जो सोशल मीडिया से लेकर मैन स्ट्रीम मीडिया पर नज़र रखे हुए हैं।

मुझे हैरानी होती है कि अधनंगी लड़कियां मेट्रो में सह यात्रियों को शर्मसार करते हुए पोल डांस करती हैं और उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करती है। आम नागरिकों के लिए परेशानी पैदा करते ऐसे अकाउंट्स केंद्र सरकार को नज़र क्यों नहीं आते। वह केवल अपनी आलोचनाओं के उगते कांटें साफ़ करती है, उसे नागरिक की परेशानी से कुछ सरोकार नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ‘एडिट’ करने का हुनर इस सरकार के पास है।
चलते-चलते सन 2023 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की बात। 2023 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में नार्वे 95.18 का स्कोर लेकर पहले नंबर पर है। भारत 180 देशों की इस सूची में और लुढ़ककर 161 नंबर पर आ गया है। युगांडा, ज़िम्बाब्वे और श्रीलंका जैसे देश स्कोर में हमसे ऊपर हैं। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत के लिए जो टिप्पणी दी गई है, वह उल्लेखनीय है। ‘पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रुप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया स्वामित्व की एकाग्रता यह दर्शाती है कि 2014 से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शासित “दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र” में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है। भारत में, प्रधान मंत्री मोदी के करीबी कुलीन वर्गों द्वारा मीडिया पर कब्ज़ा करने से बहुलवाद खतरे में पड़ गया है।
ये कितना सत्य है, ये तो पढ़ने वाले ही महसूस कर सकते हैं। अपना टीवी खोलिये, अपना रेडियो चलाइये अपने अख़बार का पहला पन्ना पलटिये, आपके मोबाइल के स्क्रीन पर, मेट्रो में, रेलवे स्टेशन पर बस ‘गारंटी’ दिखाई देती है। क्या वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स वह नहीं देख रहा, जो हम और आप देख पा रहे हैं?