श्वेता पुरोहित। श्रीमद् बेनीमाधवदासजी ने इस पदमे कितने सुंदर तरह से श्रीमद गोस्वामी तुलसी दास जी के अवतार और कार्य के रहस्यों को बताया है। मनुष्य जीवन का फल रामभक्ति ही होता है। भक्ति ही भगवत्प्राप्ति का एकमात्र सरल उपाय है।
अतः भक्तिमार्ग अधिकतम मनुष्यों के लिए प्रशस्त रहे इस बात की चिंता स्वयं भगवान को रहती है। और कलिकाल के जीवों की स्थिती तो अत्यंत ही भीषण और भक्ति के प्रतिकूल होती है। इस युग मे केवल रामनाम ही आश्रय है यथा-
रामनामैव नामैव नामैव मम जीवनम् ।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥
रामनाम, केवल राम नाम ही मेरा जीवन है । कलियुग मे इसके अतिरिक्त और किसी उपाय से सद्गती नही होती, नही होती, नही होती.
- स्कंद पुराण
कलिकाल के प्रभाव से भक्तिमार्ग की मूल शिक्षाएं लगभग नष्ट हो जाती है अथवा धूर्त लोग उन्हे बदल देते है अथवा ये केवल बाह्याचार मे सीमीत होकर सारहिन हो जाती है।
अतः भगवान इन्हे पुर्ववत बनाने के लिए अपने विशेष शक्त्यावेश पार्षदों को इस कार्य मे नियुक्त कर धरातल पर भेज देते है । और यदि कलि के कपटि कुराहि कूर जीवों के बिच राम नाम कि चरचा चलाने जैसा महाकठीण कार्य करना है तो भगवान अपने विशेष महाप्रभावशाली पार्षद को भेजते ये सरल सी बात है ।
और वो महाप्रभावशाली पार्षद थे श्रीमद गोस्वामी तुलसीदासजी, जिन्हे केवल हम लोगों के कल्याण के लिए रघुपती ने भेजा था। भक्तमाल के अनुसार गोस्वामीजी का अवतार ‘कलि कुटिल जीव निस्तार हित’ ही हुआ था।
तीर्थराज प्रयाग से लगभग पंद्रह कोस पश्चिम यमुना तटपर स्थित बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम है । श्रीकालिन्दी नदी के कल कल निनाद से निनादित, प्रयाग से चित्रकूट के मार्ग मे स्थित होने से भगवान श्रीभानुकुलभूषण, जानकीजी, लक्ष्मणजी तथा श्रीभरतलाल और उनके साथ आये हुए संपुर्ण अवधवासियों एवं श्रीमिथिलानरेश और उनके साथ पधारे हुए मिथिलावासियों और अनादिकाल से लेकर आज तक के विचरणशील असंख्य संत महात्माओं की परम पावन चरणधूलि से समलंकृत इस सौभाग्यशाली गाँव मे एक स्वनामधन्य सरयूपारीण ब्राह्मण श्रीआत्माराम दूबेजी रहते थे।
श्रीहुलसीदेवी इनकी सुशीला धर्मपत्नी थी। पंडीत आत्मारामजी बडे पुण्यशील थे। सुयोग्य पुत्र की कामना से दंपति ने बडी श्रद्धापुर्वक श्रीतीर्थराज प्रयाग एवं चित्रकूट मे निवास करके विविध व्रतानुष्ठान किये। श्रीमद बेनीमाधवदासजी ने श्रीगोस्वामीजी के मंगलमय प्राकट्य के क्षण का शब्दांकन मूल गोसाई चरित मे इस प्रकार किया है-
पंद्रह सै चौवन विषै कालिन्दी के तीर ।
सावन सुक्ला सत्तमी तुलसी धरेउ सरीर ॥
संवत १५५४ श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन कालिन्दी नदी के तीरपर राजापूर मे श्रीमद गोस्वामी तुलसीदास जी ने शरीर धारण किया ।
कलियुग केवल हरि गुन गाहा सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा
जय श्री तुलसीदासजी
क्रमशः… (भाग – ४)