श्वेता पुरोहित। नारदजी कहने लगे हे राजन! वैशाख मास सब धर्मों सब प्रकार के वर्षों, सब महीनों से और सब दानों से अधिक क्यों है, हे महाप्राज्ञ ! अब मैं तेरे सामने कहता हूँ तू ध्यान से सुन, जब सब युगों का अन्त होता है तब सब देवताओं के राजा शेषशायी विष्णु भगवान् सम्पूर्ण लोक जीवों को अपने उदर में समेट समुद्र में शयन करते हैं और योगमाया के प्रताप से अनेक एकता को प्राप्त होते हैं एवं एक निमेष व्यतीत होने पर वेद प्रार्थना करके भगवान् को जगाते हैं तब भगवान् ने अपने उदर में स्थित जीवों की रक्षा की और उन्हें अपने अपने कर्मों का फल देने के लिये सृष्टि को रचने का मन में विचार किया, तब विष्णु भगवान्की नाभि से त्रिलोकी का आधार रूप सुवर्णमय कमल उत्पन्न हुआ। उसी कमल में से विराट् पुरुषरूपी ब्रह्मा उत्पन्न हुआ, फिर भगवान् ने उस विराट् पुरुष में चौदह भुवन उत्पन्न किये जिनके भिन्न भिन्न प्रकार के कर्म और आशय हैं ऐसे अनेकों प्राणियों के समूह रचे, फिर सत, रज, तम तीनों गुण, प्रकृति, मर्यादा और भुवनों के स्वामी रचे। तत्पश्चात वर्णाश्रम के विभाग करके धर्म की कल्पना करते हुए चारों वेद तंत्र स्मृति पुराण इतिहास रचकर धर्म की रक्षा कर निमित्त इनके प्रवर्तक ऋषि प्रकट किए। इन ऋषियों ने अलग अलग वर्णों के अलग अलग धर्म प्रवृत्त किए उनपर सम्पूर्ण प्रजा श्रद्धा करने लगी।
सम्पूर्ण प्रजा अपने अपने आश्रमोचित धर्मों में प्रवृत्त है या नहीं यह देखने के लिये साक्षात् अविनाशी सर्वान्तर्यामी भगवान् डर दिखाने और परीक्षा क़े निमित्त आये। प्रजा सम्पूर्ण धर्मों को किस समय करे, ऐसी भगवान् चिन्ता करने लगे। मैंने वर्षाकाल निर्माण किया, इसमें सब प्रजा कीचड़ आदि में फंस दुखी हो रही है जिसमे सब धर्मों को नहीं कर सकती। यह देख क्रोध उत्पन्न होता है, मन प्रसन्न नहीं। मेरे देखते कोई दुःख नहीं पाए अतएव उन्हें देख – शरदकाल में सब खेती में लग रहे हैं इससे पूर्ण रीति से धर्म नहीं कर सकते हैं कोई पके फल की अपेक्षा कर रहे हैं कोई वर्षा से पीड़ित हैं, कोई शीत से दुःखी हैं अतएव धर्म नहीं करते। इन्हें देख मुझे रोष उत्पन्न होता है, इनकी उलटी मति देख कर मुझे सन्तोष नहीं हेमन्त ऋतु में सरदी के मारे कोई प्रातःकाल नहीं उठता, सूर्योदय से पहले न उठते देख मुझे क्रोध उत्पन्न होता है। शिशिर ऋतु में भी प्रातःकाल के समय शीत से पीड़ित रहते हैं तथा फसल पक जाने की प्रतीक्षा करते हैं। फिर जो मनुष्य जाड़े के मारे प्रातःकाल स्नान करने के लिये केवल सोचा ही करते हैं उनका शुभ कर्म लुप्त होता जाता है जो कभी पूरा नहीं होता। यह समय, प्रेक्षण का नहीं है ऐसा विचार कर भगवान् ने वसन्त ऋतु को सम्पूर्ण पातकों को निवारण करने वाली माना है। यह ऋतु स्नान, दान, यज्ञ, क्रिया भोग और सब प्रकार के धर्मों का साधन करने के लिए यह ऋतु बड़ी अनुकूल है। इस ऋतु में धनवान सब वस्तुओं को बिना प्रयास ही प्राप्त करते हैं जिस किस रीति से द्रव्यद्वारा देहधारियों की तुष्टि हो जाय है।
जो विष्णु भगवान् के भरोसे रहने वाले लोगों के धर्म का साधन ही द्रव्य है, वसन्त ऋतु में सम्पूर्ण द्रव्य लोगों को सुखदायक होते हैं। दानयोग्य, धर्मयोग्य और सब कुछ भोगने योग्य निर्धन, लूले, लंगड़े, व्याकुल और माहात्माओं को सम्पूर्ण द्रव्य और जलादि सुलभ हैं इसमें संशय नहीं है, प्रियजन इन द्रव्यों से अपना हित साधन करते हैं। पत्र, पुष्प, फल, शाकादि, प्रिय वचन, माला, तांबूल, चन्दन पग धोना तथा नम्रता से साधन करते हैं। मैं उनको वर देता हूँ ऐसा कहते हुए विष्णु भगवान् लक्ष्मी सहित चारों ओर वन देखते चले जिनमें अनेक प्रकार के फूल खिल रहे हैं, जिनमें हृष्ट पुष्ट प्राणी रहते हैं और मतवाले अमर और पक्षी विचर रहे हैं ग्रामवासियों के बहुमूल्य आश्रमों के आंगन, उद्यान स्थल लक्ष्मी दिखाने लगे। देवता मुनीश्वर, सिद्ध, चारण, गंधर्व, किन्नर, नाग, राक्षस सब स्तुति करते हैं। वर्णाश्र प्रवासियों के घरों में जाकर मीन की संक्रांति के कर्क की संक्रांति तक लक्ष्मी और सब देवताओं और मुनियों सहित भगवान् रह करके लोगों के कर्मों का निरीक्षण करते हैं, धर्माचरणवाले पुरुषों की मनोकामना पूरी कर देते हैं और मदोन्मत की आयु और धनादि को हरते हैं।
जो वैशाख में भगवान् की पूजा करते हैं
तथा उनके चलमूर्ति रूप साधु महात्माओं की सेवा करते हैं तथा अन्य महीनों में नहीं करते, उनके अपराध को भगवान क्षमा कर देते हैं। जैसे अपने देश में आये हुए राजा को देख उस देश के निवासी मनुष्य बहुमूल्य भेंट पूजा लेकर राजा की पूजा करते हैं, तब राजा पूजा के आकारादि द्वारा जान लेता है कि अमुक की सेवा पूरी है अमुक की न्यून है, जो पूजा अधिक होय तौ प्रसन्न होय कर निश्चय ही उसे मनोवांछित फल देय है और जिनकी पूजा सेवा ठीक नहीं है उन्हें दंड देते हैं ऐसे ही विष्णुभगवान वैशाख मास में जो अच्छी रीति से पूजा करते हैं उन्हें मनवांछित फल देते हैं और जो नहीं करते हैं उनके घनादि को हर लेते हैं। धर्म के रक्षक देव-देव शारंगपाणि विष्णुभगवान् इस मास में प्राणी की परीक्षा करते हैं इसलिये यह महीना सबसे उत्तम है।
इति श्रीस्कन्दपुराणे वैशाखमाहात्म्ये नारदाम्बरीषसंवादे वैशाखश्रेष्ठत्व निरूपणं नाम पंचमोध्यायः ॥५॥