पंडित अजय शर्मा। काशी में धर्म-तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार का स्वागत हो लेकिन काशी में धर्म-तीर्थस्थलों के विध्वंश का नही काशी में एक वर्ष पूर्व धर्म-तीर्थस्थलों के विध्वंश से हमने अनेकस: अमूल्य देव- विग्रह- स्थलों को खोया शायद काशी के सांसद को भी नहीं कराया गया इसका भान. और भ्रमित शिव भक्तों को भी नहीं है इस तथ्य का ज्ञान.
चले जानले एक छोटी सी बात पुनः..
अविमुक्तनगरीकाशी के सर्वश्रेष्ठअविमुक्तक्षेत्र की सीमा के स्वामी है भगवान अविमुक्तेश्वर जिनके मूलस्थान को हमने विकास में नष्टकर रोड बनाया जिनकी अर्चना.
अर्चन्ति विश्वे विश्वेशं विश्वेशोऽर्चति विश्वकृत् ।
अविमुक्तेश्वरं लिङ्गं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ।।
(लि० पुराण 166का० खं०, 39/80)
जिसकी अर्चना विश्वेश्वर विश्वनाथ भी स्वयम् करते हैं। ऐसा अविमुक्तेश्वर लिंग दर्शनार्थी को भुक्ति तथा मुक्ति दोनों प्रदान करता है।
अविमुक्ते महाक्षेत्रे विश्वेशसमधिष्टिते यैर्न ।
दृष्टं विमूढास्ते ऽविमुक्तं लिङ्गमुत्तममम् ।।
(का० खं०, 36/63)
अविमुक्त क्षेत्र काशी में विश्वेश्वर के सान्निध्य में लिंगो में सर्वश्रेष्ठ अविमुक्तेश्वर लिंग का जिसने दर्शन नहीं किया, वह मूर्ख है।
अविमुक्ते महाक्षेत्रे सर्वसिद्धिप्रदे सताम्।
धर्मार्थकाममोक्षाख्यरत्नानां परमाकरे ॥
अविमुक्त नामक महाक्षेत्र, सज्जन लोगों को सर्वसिद्धिदायक है। धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष का बहुत बड़ा आकर है । जिसके–
पूर्वतो मणिकर्णीशो ब्रह्मेशो दक्षिणे स्थितः ।
पश्चिमे चैव गोकर्णो भारभूतस्तथोत्तरे ॥
पूर्व में मणिकर्णिकेश्वर, दक्षिण में ब्रह्मेश्वर, पश्चिम में गोकर्णेश्वर और उत्तर में- भारभूतेश्वर इतनां स्थान अविमुक्तक्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ और महाफलदायक है।
अविमुक्तसमं क्षेत्रमपि ब्रह्माण्डगोलके ।
न विद्यते क्वचित्सत्यं सत्यं साधकसिद्धिदम् ॥
ब्रह्माण्डमण्डल में अविमुक्त के समान साधकों का सिद्धिदायक दूसरा कोई भी क्षेत्र कहीं नहीं है। यह बात सर्वथा सत्य सत्य है हेसनातनधर्मियों नीचे चित्र में जो शिवलिंग_रूपी आकृति आप देख रहें वह है सर्वश्रेष्ठ अविमुक्तक्षेत्र की सीमा जिसे जानने से ही आपको विश्वेश्वर प्राप्त होगे। जहां दूसरे चरण के विकास से तीर्थस्थल के विध्वंश का पहिया जल्द घूमने वाला है….
विभूतिः सर्वलोकानां सत्यादीनां सुभङ्गुरा ।
अभङ्गराऽविमुक्तस्य सा तु लभ्या शिवाज्ञया ॥
सत्यादि सब लोकों का ऐश्वर्य क्षणभंगुर है,पर स्थिर सम्पत्ति तो केवल अविमुक्तक्षेत्र की है। वह भी शिव की आज्ञा होने पर ही मिल सकती है।
यत्र कालभयं नास्ति यत्र नास्त्येनसो भयम्।
तत्क्षेत्रमहिमानं कः सम्यग् वर्णयितुं क्षमः।।
भला जहाँ पर न तो काल का भय है और न पाप ही का डर है, उस अविमुक्त क्षेत्र की महिमा का पूर्णरीति से कौन वर्णन कर सकता है। बाबाकाशीविश्वनाथ की कृपा से यह तथ्य आप सबतक पहुंचाने का लघु प्रयास है। विश्वनाथकॉरिडोरनिर्माण से महाशमशान की 50% भूमि नष्ट होने, मां_गंगा का अर्धचंद्राकार स्वरुप नष्ट हो गया अनेक मोक्षदायक देवविग्रह भी नष्ट हो चुके है।
कृपया अब पवित्र मणिकार्णिका तीर्थ भूमि और पवित्र महाशमशान भूमि के महत्व और उसकी मर्यादा को जाने। पवित्र मणिकार्णिका तीर्थ और पवित्र महाशमशान भूमि का विध्वंश न करे।
पुण्यजलप्रियं लिंगं जललिंगस्थलादपि । आयातं तच्च गङ्गाया जलमध्ये व्यवस्थितम्।।
तत्प्रासादोऽद्भुततरो मध्ये गंगं निरीक्ष्यते । सर्वधातुमयः श्रेष्ठः सर्वरत्नमयः शुभः ।।
काशी में जन्म से लेकर मृत्यु तक शिवलिंग से अनायास ही सम्बन्ध स्थापित है काशीवासियों का…चाहे उन्हें इसका भान हो या न हो…
शरीर में मल द्वार का काम मल को विसर्जित करना होता है पर हम उसको विसर्जित करने के लिए उचित स्थान ढूंढते है (जो पशु हैं वो कहीं कर देते है)…उसी प्रकार मृत्यु एवं अंतिम संस्कार पर जिव की गति निर्भर करती है अंतिम संस्कार अनायास ही काशी में कहीं नहीं कर सकते। समस्त काशी में पग-पग पर तीर्थ है क्या उनकी मर्यादा नहीं हैं ?? अतः उसके लिए जलसेन घाट और जल तत्त्व रूपी शिवलिंग गंगा के मध्य स्थित हैं जब अस्थि की राख उसको स्पर्श करती है तो बड़े से बड़ा पापी भी पाप मुक्त हो उच्च लोकों को जाता है।
अतः महा शमशान का अर्थ यह नहीं कि कहीं भी शव जला दिया जाए इसके लिए काशी में स्थान सुनिश्चित किया गया है शवदाह के पश्चात अस्थियों का विसर्जन प्राचीन समय से जलासेन घाट पर किया जाता रहा है जिससे कि अस्थियां गंगा जी के मध्य में स्थित जल लिंग को स्पर्श करें।
जलासेन घाट – वर्तमान में कॉरिडोर की सीढियाँ जहाँ गंगा जी से मिलती हैं।
धर्मो रक्षति रक्षितः जय जय सीताराम हर हर महादेव।