सारा कुमारी. Neil Postman की एक किताब आई थी – Amusing ourselves to death, (modern era) आधुनिक युग में हिन्दुओं की सभी लीडरशिप कुछ इसी तरह की आ रही है, भीड़ से निकल कर स्वयं को इस तरह से दिखाती हैं, की मैं आ गया हूं, तुम्हारा रक्षक, अब तक सब तुम्हे लूट रहे थे, बर्बाद कर रहे थे, मैं तुम्हारा खोया हुआ गर्व, तुम्हारे सभी हक तुम्हें वापस दिलवाऊंगा, जो अब तक की सत्ता ने नही किया, वो में करूंगा, और जनता मदहोश हो कर , खुशी खुशी इसके पीछे चल देती हैं।और अंत में अपना सब कुछ गवां बैठती हैं। हम अपनी बर्बादी की कहानी लंबे समय से स्वयं लिख रहे है।
उस नेता का नशा ऐसा चढ़ता है, की जनता अपने सोचने – समझने की क्षमता को बिलकुल खो देती हैं।हमारे सामने ही हमारा बुरा हो रहा होता है, परन्तु हम एक भ्रम में जीने लगते है ( हिन्दुओं के सर काटे जा रहे है) और हम एक मुगालते में जी रहे होते हैं, नेता कहता है, ये केवल एक रास्ता है, परीणाम/ मंजिल बहुत सुखद होगी, तो जनता उस दुःख को भी भुला देती हैं, अर्थात उसको मात्र क्षणिक दुख समझती हैं, और झूम झूम कर हंसते हंसते नेता के पीछे चलती रहती है। Critical thinking या अपनी तार्किक क्षमता को बिलकुल खो कर। जैसे पहले hunter gatherer रहते थे, शिकार किया, खाया और सो गए,नेता से कोई प्रश्न नहीं, हमारे हक हमे नही मिल रहे, उसकी कोई शिकायत नही, और क्या भरोसा देकर , वादे करके आप सत्ता में आए थे उस पर कोई डिबेट नहीं।
गांधी से लेकर इंदिरा तक, और अटल से लेकर मोदी तक सब यहीं कर रहे है।और स्वयं की ऐसी छवि गढ़ते है की Indira is India – India is Indira मतलब मैं नहीं तो देश भी नहीं रहेगा, जैसा आजकल भाजपा का slogan हैं, “फिर विकल्प क्या है ” एक तर्कशील, बुद्धिमान व्यक्ति ये जानता है, सृष्टि बहुत लंबे समय से चली आ रही हैं, और आगे भी चलेगी। राम गए, कृष्ण आ कर गए, परन्तु सृष्टि अनवरत चलायमान है।परन्तु नेता के नशे में चूर व्यक्ति की बुद्धि बहुत सीमित हो जाती हैं और वो इतनी वृहद परिकल्पना नहीं कर पाता है, उसकी पूरी सोच पूरी दुनिया अपने नेता के चारो तरफ ही घूमती रहती हैं। (यहां मैं पार्टियों से फायदे लेने वाले लोगो की बात नहीं कर रहीं, क्योंकि जनता के ऊपर से नेता का नशा उतर ना जाए, इसके प्रयास में वो भी बहुत मेहनत कर रहे होते हैं)। यहां मैं आम जनता की बात कर रही हूं।
वैसे लंबे समय तक ऐसा ही दौर चलते रहने पर, वो नेता स्वयं भी उस नशे का शिकार हो जाता है, उसको लगने लगता हैं “I AM THE ONLY SOLUTION” और ये नशा उसके उपर इस कदर हावी हो जाता हैं की फिर देश और जनता का बड़े से बड़ा नुकसान भी उसके सामने नागण्य हों जाता हैं। अब वो केवल और केवल अपने बारे में सोचने लगता हैं, यदि उसके जाते ही पूरा देश समाप्त भी हो जाय तो ये भी उसके अहंकार की उसको बहुत छोटी कीमत लगती हैं। अब देश से बड़ा “मैं” हो जाता हैं।
जैसे गांधी जो कहते थे मेरी लाश पर भारत का विभाजन होगा, उनके सामने देश के टुकड़े भी हुए, लाखो लोग बेघर हुए, मार दिए गए, परन्तु उसके बाद का उनके कोई पत्र, लेख या भाषण ऐसा नहीं मिलेगा, जहां वो इस बात का खेद व्यक्त कर रहे हो, या स्वयं को इसके लिए दोषी मान रहे हों। कहने को ये सब डेमोक्रेसी में हो रहा हैं, परन्तु ये एक तरह का fascism होता है, जिसमें औरों के विचारो का कोई आदर नहीं होता, वरन एक ही व्यक्ति का हित सर्वोपरि होता है।
Democracy में facsism लाना भी एक बहुत बडी कला है , जो हर किसी के पास नही होती, एक साधारण से इंसान को एक बड़ा नेता बनाने के लिए उसकी एक नकली छवि गढ़ी जाती हैं, जो हकीकत से परे होती हैं। इसके लिए asthetic की समझ होना आवश्यक हैं, बहुत सुंदर – सुंदर slogan बनाएं जाते है, अच्छी अच्छी तस्वीरें खींची जाती हैं, और पंक्ति में आखिरी खड़े व्यक्ति से जुड़ने के लिए, गरीब और शोषित दिखाया जाता हैं। गांधी की पूरे वर्ष मात्र एक धोती और मोदी की मां का लोगों के घरों में काम करना याद हैं ना? इस तरह बनाए जाते हैं, जनता को मदहोश करने वाले mass leader, फिर जनता 1947 की मार काट के बाद भी, वर्षो तक उन्ही के गुण गाती रहती हैं।
यदि सोशल मीडिया ना आता तो आज भी भारत की अधिकतर जनता को नेहरू गांधी का असली चरित्र मालूम ही नहीं पड़ता, क्योंकि उनसे प्रताड़ित पीढी ने आगे की पीढी को,तो ऐसा कुछ बताया ही नहीं। या उनको एहसास ही नहीं हुआ की उनकी प्रताड़ना हुई थी, वो सब कुछ खुद सह कर भी , अपने उस नकली नेता को बेदाग साबित करने में लगे रहे।
अब सवाल ये उठता है कि ऐसे नेताओं से आम जनता को छुटकारा कैसे मिलेगा, हमारा देश वाकई में, विकास की राह पर आगे कैसे बढ़ेगा, जहां सबको बराबर का हक मिले, और हमारी जान और माल सुरक्षित हों। तो सर्वप्रथम ये जानना भी जरुरी है, की इसका कोई जादुई सॉल्यूशन नही है, हमारे देश के 4 सतंभ माने जाते है, तो केवल नेता बदलने से स्थिति में सुधार नहीं होगा। वृहद स्तर पर सुधार की आवश्यकता है, नेता, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मिडिया सभी को प्रश्नों के घेरे में लाना होगा। इसके लिए large scale पर जनता का जागरूक होना बहुत जरुरी है।
क्यूंकि fascist regime का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, एक critical thinking mind, हजारों लोग हाथ में बंदूक लेकर भी उस नारेटिव को नही तोड़ सकते जो एक सोचने समझने वाला दिमाग तोड़ सकता है। तो इन नेताओ की दुश्मन ऐसी जनता होगी, जो उनसे सवाल करे, केवल प्रशासन जो कर रहा है, वही सही है, इस बात पर आश्वस्त ना हो जाए, बल्कि उनसे प्रश्न करे, डिबेट करे।
जनता को अच्छी तरह से एक बात अपने मन में बिठा लेनी चाहिए की, हमें स्टेट को डिफेंड नहीं करना हैं, बल्की स्टेट हम डिफेंड करने के लिए बनी है, स्टेट की जिम्मेदारी है, हमारे जान की संपत्ति की रक्षा करनी, अन्यथा हम आपको वोट या tax नहीं देंगे, यदि आप अपना कॉन्ट्रैक्ट हमारे से तोड़ रहे हो, तो हम अकेले उसका निर्वाहन क्यों करें, हम भी आपसे अपना कॉन्ट्रैक्ट तोड़ रहे है।
और याद रखिए fascist regime की सबसे बड़ी ताकत होती हैं, बिखरी हुई जनता, जनता में विभेदीकरण कर के ही इनकी सत्ता बनी रहती हैं, आज इतने हिंदू मरने पर सभी हिंदू एक साथ आवाज नहीं उठा रहें, यहीं तो सरकार चाहती हैं, वो इससे बहुत खुश हैं, because it makes their survival very easy, जनता की एकता, ऐसी सत्ताओं को कमजोर बनाती हैं, जनता के हित के लिए कार्य करने को मजबूर करती हैं।आपका टूटना, बिखरे रहना,उनके बने रहने के लिए ज़रूरी है। एक स्वर में सभी को सभी के लिए आवाज उठाना, ऐसी सत्ताओं को भयभीत करने के लिए काफ़ी है।
जय हिन्द जय भारत