आनंद राजाअध्यक्ष। पाँच महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव थे और अचानक एक न्यायालयीन निर्णय आ गया जिसने उत्तर भारत के कई राज्यों में हिंसा फैला दी और हिन्दू वोट को ही विभाजित कर दिया। एक केस में निर्णय आया था कि किसी सरकारी कर्मचारी को उस विशिष्ट कानून के तहत अगर गिरफ्तार करना है तो डीएसपी लेवल के अधिकारी द्वारा जांच बाद ही गिरफ्तार किया जा सकता है।
न्यायालय का निर्णय आया नहीं कि काँग्रेस के आनंद शर्मा जी एक विडिओ में मोदी सरकार को कोसते दिखे कि राजीव गांधी ने दी हुई सुरक्षा मोदी सरकार ने हटाई है, हम इसका विरोध करते हैं। याद रहे, निर्णय न्यायालय का था लेकिन दोष दिया गया मोदी सरकार को। और दे दनादन दंगे शुरू हुए। पूर्व तयारी दिख रही थी और जब कि आंदोलन तो किसी अन्य समाज का था, जालीदार भागीदारी जोरदार दिखाई दी। हिंसा हुई, कम से कम आठ लोगों ने प्राण गँवाए और केंद्र सरकार ने अध्यादेश से उस न्यायालयीन आदेश के इस विवादित भाग को निरस्त किया। दंगे ठंडे हुए।
इसपर समाज में फिर से जोरदार प्रतिक्रिया आई कि इससे सवर्णों पर अन्याय हुआ है। अब पक्षीय झण्डा हटाकर जातीय चोला पहनकर काम शुरू हुआ और एक लंगड़े कानून की पैरवी शुरू हुई जो पूरी तरह भाजपा सरकार को नुकसान करने के लिए ही बनाया गया था। सबक सिखाने की गर्जनाये शुरु हुई और मोदी समर्थकों के लिए नए नए ताने उलाहने गढ़े जाने लगे।
लेकिन मजे की बात यह थी कि इनमें से किसी को यह पता नहीं था कि वह निर्णय केवल सरकारी कर्मचारियों पर लागू हो रहा था, सामान्य जनता उससे प्रभावित नहीं थी। तो वो निर्णय अगर लागू होता भी तो भी प्रतिशत नगण्य होता और स्थिती में कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन फ़िर वही बात, इनको समझ से काम लेना था ही नहीं। उन दिनों मेहनत कर के तथ्य जुटाकर एक पोस्ट लिखो तो दस लोग झुंड बनाकर उलाहने देने आ जाते थे, तर्क या तथ्य किसी के पास होते तो थे नहीं।
और सब से मजे की बात तो यह है कि एक को भी वो केस क्या थी यह पता नहीं था। मैंने एक दिन जान बूझकर वो केस जिनपर चलाई गई थी उनका नाम लिखा और पूछा कि क्या कोई इन्हें जानता है ये कौन हैं और क्यों इनका नाम आप को पता होना चाहिए? उत्तर केवल पाच लोगों ने दिया था और वे पांचों मोदी समर्थक थे, विरोधकों में किसी को यह नाम पता नहीं था, बस हो हल्ला करना ही उनका उद्देश्य था।
आज यह क्यों याद आया ? क्योंकि उस समय भी महत्व के राज्यों के चुनाव घोषित हुए थे जिन में हिन्दू मतों के विभाजन से या हिन्दू रुष्ट होने से भाजपा ने राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ गँवाए। पंजाब में स्थिती अलग थी। और उसके तुरंत बाद लोकसभा 2019 के चुनाव थे।
जब हम जानते हैं कि प्रशासन में कई लोग मोदी जी से खार खाए बैठे हैं तो कई बातें ऐसे समय देखकर ही हो जाती हैं इसका आश्चर्य नहीं होता बल्कि दुख होता है कि निजी स्वार्थ के लिए लोग देश का भविष्य भी फूंकने को तैयार हैं। शायद उन्हें यह पता ही नहीं या शायद उन्होंने विदेशों में भागने की सेटिंग कर रखी है। और ये लोग सिस्टमो रक्षति रक्षित: हैं।
बिहार में जो हो रहा है उसकी सघन जांच हो तो अगर यही पता चलेगा तो कैसा आश्चर्य ? बिलियर्ड्स इसी को कहते हैं, जो बॉल को पॉकेट में धकेलना है उसे कभी सीधा छुआ नहीं जाता, चौथा पाँचवा बॉल उसे सही दिशा में धक्का देता है तब वो पॉकेट में जाता है, लेकिन सब से पहले कौनसे बॉल पर क्यू स्टिक लगी, और खिलाड़ी कौन ? पॉलिटिक्स में यह अनजान रहता है।
अभी यूपी के चुनाव हैं, और उसके बाद 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं। यूपी चुनाव को भाजपा के लिए खराब करने के कहाँ कहाँ से कौन कौन जोर लगाए हैं। अंदर से भी, बाहर से भी। शुक्र है कि पहलेवाला मामला नहीं कि रास्ते में ही रोककर कहा जाए कि आप का वोट पड चुका है, जाइए, घर जा कर चैन से सो जाइए। अगर चैन से वाकई सोना है तो चुनाव जिस दिन है उस दिन वोट डालिए, योगी जी को लाइये, और चैन की नींद सुनिश्चित कीजिए ।