विपुल रेगे। एक समय था जब राष्ट्रवादी समूह अपने दम पर किसी भी फिल्म को हिट और किसी भी फिल्म को फ्लॉप करवाने का दम भरा करते थे। ऐसे राष्ट्रवादी इन दिनों गायब हैं। हाल ही में अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर आधारित बॉयोपिक रिलीज हुई और बुरी तरह पिट गई। बल्क बुकिंग कराने वाले इस फिल्म पर नहीं रीझे। ये एक भ्रामक तथ्य है कि सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलाकर किसी अच्छी फिल्म का रास्ता रोका जा सकता है या किसी बुरी फिल्म को हिट की श्रेणी में लाया जा सकता है।
सन 2014 के बाद से सोशल मीडिया पर बॉलीवुड के विरुद्ध एक बड़ी मुहीम की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। इस मुहीम का उद्देश्य बॉलीवुड द्वारा हिन्दू धर्म पर किया जा रहा आघात और भारतीय संस्कृति को प्रभावित करने के विरुद्ध एक बड़ा जन-आंदोलन खड़ा करना था। शुरुआती दौर में ये सफल भी हुआ। इसके सफल होने का कारण बड़ा जन समर्थन था। उस समय इसका उद्देश्य बड़ा ही ईमानदार था। हालांकि ये लड़ाई लड़ने वाले शुरु से ही सरकार द्वारा ठगाते रहे।
इधर एकता कपूर द्वारा फिल्मों में फैलाई जा रही गंदगी का विरोध हो रहा था और उधर उन्हें राष्ट्रीय महत्व का पुरस्कार दिया जा रहा था। ‘बिग बॉस’ जैसे अपसंस्कृति फैलाने वाले शो बदस्तूर चल रहे थे। बॉलीवुड के विरुद्ध ये आंदोलन अधिक नहीं चल सका, क्योंकि सरकार ने इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। इस बीच अच्छी फ़िल्में भी आती रही, जिनका प्रमोशन सोशल मीडिया पर होता रहा। दस साल की इस सर-फुटव्वल का परिणाम ये निकला कि एक लोकप्रिय फिल्म को आप सोशल मीडिया पर हैशटैग चलाकर नहीं गिरा सकते।
शाहरुख़ खान का उदाहरण सामने है। शाहरुख़ ने पिछले वर्ष हिट फिल्मों की हैट्रिक मार दी। उनकी हर फिल्म के पहले कुछ बिस्कुट युट्यूबर्स बॉयकॉट के हैशटैग चलाते थे लेकिन शाहरुख़ का बाल भी न उखाड़ सके। अभी एक फिल्म ‘मैं अटल हूँ’ रिलीज हुई। एक सप्ताह में इस फिल्म ने वर्ल्ड वाइड 10 करोड़ का कलेक्शन किया। स्पष्ट है कि फिल्म फ्लॉप हो चुकी है। इस फ्लॉप फिल्म को बिस्कुट युट्यूबर्स हिट नहीं करा सके। इसलिए नहीं करा सके कि फिल्म के कंटेंट में वह दम ही नहीं था, जो इसे सफल करा देता।
अच्छी फिल्म को सोशल मीडिया पर प्रशंसा मिलती है, तो उसे थोड़ा बूस्ट मिल जाता है। असली काम तो पब्लिक ओपिनियन करता है और ये पब्लिक ओपिनियन किसी राजनीतिक पार्टी के कंट्रोल में नहीं है। इस ओपिनियन में एक बड़ा हिस्सा युवा दर्शक का है, जो राजनीतिक दलों के ऐसे कैम्पेन से दूरी बनाकर रखता है। अच्छा हुआ कि ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘हनुमान’ के निर्माता रिलीज से पूर्व भाजपा के किसी लेजेंड से जाकर नहीं मिले, नहीं तो ऐसा हो जाता कि फिल्म की सक्सेस का कारण कंटेंट नहीं, बल्कि ‘व्यक्ति विशेष’ हो जाता।
बिस्कुट युट्यूबर्स, पार्टी प्रवक्ताओं और फेसबुक पर कलम घिसाई करने वालों को समझ लेना चाहिए कि फ़िल्में आपकी दया से नहीं चलती और न आपकी कृपा से फ्लॉप होती है। तांगे के आगे चलते कुत्ते को अक्सर गुमान हो जाता है कि तांगा वहीँ चला रहा है। फिल्मों को लेकर दावे भरने वालों का भी यही हाल है।