प्राचीन काल में दो निर्माण ऐसे हुए, जिनसे भारतीयों की विलक्षण इंजीनियरिंग का पता चलता है। रामसेतु और द्वारिका नगरी के निर्माण की बातों का आधुनिक विज्ञान ने कपोल कल्पना कहकर खूब मज़ाक बनाया है। ‘कृष्ण ने समुद्र से द्वारिका के लिए भूमि मांगी और समुद्र उनका सम्मान करते हुए पीछे हट गया’। इस वाक्य की गूढ़ता समझे बिना इसे काल्पनिक मान लिया गया। ‘राम ने लंका जाने के लिए कई किमी लम्बा रामसेतु बना डाला।’ इस वाक्य की गूढ़ता समझे बिना पूरी दुनिया ने भारत की खिल्ली उड़ाई।
स्वतंत्रता के बाद सन 1970 में कच्छ की खाड़ी के ऊपर से उड़ान भरते समय पायलटों ने देखा कि किसी पुरातन नगरी के अवशेष समुद्र से झाँक रहे हैं। हज़ारों साल से समुद्र में जलमग्न कृष्ण की बसाई द्वारिका मानो संसार को अपने बारे में बताना चाह रही थी। सन 2005 में हुई व्यापक खोजों के बाद ये सिद्ध हो गया कि कृष्ण ने द्वारिका बसाई थी। द्वारिका का लोप हो गया और रामसेतु अपनी निर्माण के बाद एक भयंकर सुनामी का शिकार हो गया। इसकी मध्य भुजा कई मीटर नीचे पानी में डूब गई थी। इन दोनों निर्माणों के बारे में शास्त्रों में लिखी गई बातें आज हमें अविश्वसनीय लगती हैं। कुछ श्रद्धालु इसे राम और कृष्ण का चमत्कार मानते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि भारत देश ने इस ‘गूढ़ता’ का सरलीकरण कर सही अर्थ जानने का कभी प्रयास ही नहीं किया। पश्चिम मजाक बनाता रहा और हम अपने वाक्यों की ‘गूढ़ताओं’ से और भी कसकर चिपक गए।
वर्तमान विज्ञान के मुताबिक भूमि उद्धार (Land reclamation) का मतलब होता है समुद्र, झील या नदी की ‘जलमग्न भूमि’ से नई भूमि बनाना। आज विश्व के चौदह बड़े देश अपने लिए इसी तरह जमीन प्राप्त कर रहे हैं या कर चुके हैं। न भूतो न भविष्यति भूमि उद्धार के अविष्कारक स्वयं श्री राम थे। उनके बाद कृष्ण ने द्वारिका का निर्माण इसी विधि से किया था। श्रीराम ने रामसेतु के निर्माण में इसी विधि का सहारा लिया था। आज हम जानते हैं कि रामसेतु कई छोटे-छोटे द्वीपों को मिलाकर बनाया गया था। द्वारिका का निर्माण (Land reclamation) से किया गया था। उस समय शास्त्रों में इसे ‘समुद्र से मांगी भूमि’ लिख दिया गया था। वास्तविकता यही है कि कृष्ण ने वैसे ही इस नगरी का निर्माण किया, जैसे दुबई में ‘पाम सिटी’ बनाई गई थी।
भूमि उद्धार की विधि का लाभ उठाने वाले देशों में चीन सबसे पहले नंबर पर है। चीन ने समुद्र की हज़ारों किमी की जमीन पर निर्माण कार्य किये हैं। जापान में ‘केन्साई अंतरराष्ट्रीय विमान तल’ समुद्र के अस्सी मील के क्षेत्र पर बनाया गया है। डेनमार्क, कोरिया, भारत, क़तर, न्यूज़ीलैंड आदि देशों ने भी इस विधि पर काम करके समुद्र की जमीन हथियाई है। एक प्राचीन विधि का प्रयोग आज दुनिया के सारे देश कर रहे हैं लेकिन इस विधि से तैयार पहला अजूबा ‘रामसेतु’ अब भी मानव निर्मित नहीं माना जाता। जिस विधि से हमने असम्भव लगने वाले निर्माण किये, उसका संसार लाभ उठा रहा है।
मुंबई शहर भी भूमि उद्धार विधि के जरिये बसाया गया था। मुंबई शहर पहले सात द्वीपों में विभक्त था। बसाहट से पहले शहर को भूमि उद्धार विधि से आपस में जोड़ा गया था। यहाँ के निवासियों को भी नहीं पता कि इतने कठिन तरीके से मुंबई को बसाने में लगभग सौ साल का समय लग गया। यही कारण है कि मुंबई हर वर्ष बाढ़ की समस्या से जूझता है। श्री कृष्ण की द्वारिका को बनाते समय चारों ओर विशेष तटबंध बनाए गए थे ताकि ज्वार आने पर पानी शहर में न घुसे। समुद्र में द्वारिका की जो प्राचीन दीवार पाई गई है, इसी तटबंध योजना का एक भाग थी।
श्रीकृष्ण की नगरी सिर्फ एक दिन और एक रात में डूब गई थी। गगनचुम्बी सुनामी ने इसे डुबो दिया था। क्रुद्ध समुद्र ने प्रचंड वेग धरकर अपना भू-भाग वापस ले लिया था। पांच हज़ार साल से जलमग्न ये नगरी न केवल कृष्ण की वास्तविकता पर मोहर लगाती है बल्कि ये भी बताती है कि सबसे पहले भारतीयों ने समुद्र की छाती चीरकर घर बनाना सीखा था। जय श्री कृष्ण
URL: Dwarka a pefect example Where Mythology Meets Reality
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