Sonali Misra. आज 10 मई है! एक ऐसी तिथि जिस तिथि पर सम्पूर्ण भारत वर्ष को गर्व है, जिस पर इस पूरे इतिहास को गर्व है। यह वह तिथि है जिस पर इतराने का मन हो जाए! यही वह तिथि है जब वर्षों की गुलामी के बाद एक स्वातंत्रय की चेतना का आह्वान सम्पूर्ण भारत ने किया था, जिस दिन फिरंगियों को यह अहसास हो गया था कि वह अब अधिक नहीं टिक पाएंगे। और उसके बाद उन्होंने दमन चक्र और तेज कर दिया था। हमें दमनचक्रों से मजबूत बनाने के लिए भी आज की तिथि का महत्व है।
10 मई 1857, एक चिंगारी की तिथि! एक ऐसी चिंगारी जिसमें अपने अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हर कोने से हुतात्मा चले आए। यह आज की तिथि थी जिसने भारत वर्ष के सम्पूर्ण आकाश को फिरंगी मुक्त कराने का आह्वान किया था।
29 मार्च 1857 को सिपाही मंगल पाण्डेय ने मेरठ में चिंगारी लगाई थी, जिसका विस्फोट होना शेष था। आनन फानन में मंगल पाण्डेय को तो मार्ग से हटा दिया गया था, फिर भी उसकी लगाई चिंगारी शेष रह गयी थी। भारत एक ऐसा देश है, जिसमे सदा से ही स्वतंत्रता को धिक्कारा गया है। जिसमें तुलसीदास तक लिखते हैं
“पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं”
और वह ऐसे समय में लिख रहे थे जब स्वतंत्रता एक स्वप्न ही थी। ऐसा ही स्वप्न बन गयी थी फिरंगियों के समय स्वतंत्रता। भारत की चेतना में स्वतंत्रता जैसे हर कण में समाहित है। वह मानसिक गुलाम रहने ही नहीं देती है, जिसे मुग़ल काल में स्वतंत्र हिन्दुओं के उदाहरण से देखा जा सकता है। परन्तु फिरंगी जब से आए उन्होंने मानसिक गुलाम बनाने का प्रयास किया। उन्होंने छल पूर्वक ऐसी नीतियाँ बनाईं, जिसके चलते भारतीय राजाओं में असंतोष उत्पन्न हो गया था।
राजनीतिक कारक
1857 तक कई ऐसे कारक थे जिन्होनें इस गुलामी का विरोध करने के लिए आधार प्रदान किया था। हर असंतोष की वजह अलग अलग थी पर मूल में स्वतंत्रता की भावना ही थी। इसका जो सबसे प्रमुख कारण था वह था लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति। इस नीति के अनुसार उसने यह नियम बनाया कि जिन शासकों का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था, वह पुत्र गोद नहीं ले सकते थे। और इसके लिए उसने अपने अधीनस्थ राज्यों को तीन श्रेणी में विभाजित किया।
पहली श्रेणी में उसने अधीनस्थ राज्य रखे, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्तित्व में आए थे और जो शासन के लिए पूर्णत: कंपनी पर ही आधारित थे। जैसे झांसी, और दूसरी श्रेणी में आश्रित राज्य थे, जो केवल सैन्य सहयोग या बाह्य सुरक्षा के लिए कंपनी पर आश्रित थे, जैसे अवध और ग्वालियर अदि। फिर तीसरी श्रेणी, अर्थात जो पूरी तरह से स्वतंत्र थे और जो निर्णय ले सकते थे। परन्तु यह पूरी तरह से धार्मिक हस्तक्षेप था क्योंकि हिन्दू धर्म यह अधिकार देता है अत: यह राजनीतिक के साथ साथ धार्मिक कारण था और धार्मिक नीति में हस्तक्षेप के कारण लोग आक्रोश में थे।
झांसी, सतारा एवं नागपुर सभी इस नीति से प्रभावित हुए थे और क्रोधित थे, इस नीति के साथ ही उसने कुप्रशासन के नीति भी अपनाई थी। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय कंपनी शासन में कर लिया था और यही कारण था कि अवध के कई बुद्धिजीवी, सैनिक आदि बेरोजगार हो गए थे। इसीके साथ बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को भी लाल किले में रहने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। इन सभी निर्णयों से एक राजनीतिक असंतोष अपने चरम पर था।
सामाजिक एवं धार्मिक कारक
भारत में उन दिनों तेजी से पश्चिमी सभ्यता पैर पसार रही थी और समाज में निर्णयों को लेकर बहुत आक्रोश था। जिस प्रकार से मिशनरी हर घर में जा जाकर ईसाई धर्म का प्रचार कर रही थीं, और कम्पनी की ओर से छूट मिल रही थी, इससे हिन्दू समाज में बहुत रोष था।
इसी के साथ आर्थिक कारण भी बहुत ज्यादा थे। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद भारतीय बाज़ारों में ब्रिटेन से बने उत्पादों का ढेर लग गया था। भारत का हस्तशिल्प इन सस्ती चीज़ों का सामना इसलिए नहीं कर सकता था क्योंकि तरह तरह के कर थोप दिए गए थे। और आयातित सामान सस्ता था तो भारतीय सामान महंगा था। जो लोग अभी तक अपने मन के राजा हुआ करते थे, तो वहीं अब उन्हें अंग्रेजों की दया पर निर्भर होना पड़ा था। भारत का स्तर केवल कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और आयातित सामानों के कूड़े घर का हो गया था।
इन सभी के साथ कई ऐसे कारण थे जो उस समय असंतोष पैदा कर रहे थे। मगर 1857 आते आते असंतोष इतना बढ़ गया था कि अब भारत एक बारूद के ढेर पर बैठा था और केवल एक चिंगारी ही उसे ज्वालामुखी में बदल सकती थी और वह तात्कालिक कारण था वह अफवाह, जिसने मंगल पाण्डेय को गोली चलाने पर विवश कर दिया।
यद्यपि यह तय समय से कुछ पहले हो गया था, परन्तु फिर भी शेष कार्य योजना के अनुसार ही हुए एवं मेरठ से ही धन सिंह गुर्जर ने मंगल सिंह द्वारा जलाई गयी मशाल को अपने शौर्यपूर्ण कृत्य से तेज कर दिया। धन सिंह कोतवाल का संपर्क जनता से प्रत्यक्ष था। धन सिंह गुर्जर ने जैसी योजना बनाई थी और कार्यान्वयन किया था उसके कारण अंग्रेजी शासन के पसीने छूट गए थे।
और मेरठ से निकली हुई यह यात्रा धीरे धीरे पूरे देश में फ़ैल गयी और पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र तक पूरे भारत में छा गयी। हालाँकि कुछ ही समय में अंग्रेजों ने इस संग्राम पर विजय प्राप्त की, परन्तु यह दिन प्रमाण है इस बात का कि चिंगारी तो जलानी ही होगी, फिर चाहे उसका परिणाम 90 वर्ष के बाद ही प्राप्त क्यों न हो। और यह भी बात सत्य है कि मेरठ में एक गाँव है गगोल, जहाँ पर दशहरे के दिन 9 लोगों को फांसी दे दी गयी थी, और पूरे गाँव को नष्ट कर दिया गया था। और आज तक वहां दशहरा नहीं मनाया जाता है।
10 मई हम सभी के लिए वह तिथि होनी चाहिए जब हम इस बात का संकल्प लें कि हम हर धार्मिक गुलामी का विरोध करेंगे, अपने धर्म और अपने अधिकार के लिए खड़े रहेंगे!