अर्चना कुमारी। पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में जमकर खून बहा और 20 लोग मारे गए। यह विफलता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है या फिर केंद्र सरकार की क्योंकि शनिवार को हिंसा का सिलसिला दिनभर चलता रहा । बताया जाता है कि मतपेटियों में तोड़फोड़ की गई और बम फेंके गए, ,इतना ही नहीं आगजनी की गई ।
सूत्रों का कहना है पंचायत चुनाव में देश को वो सब देखने को मिला, जो पिछले कुछ दशकों में बीते जमाने की बात हो गई थी। दावा किया गया है वोटिंग से ठीक पहले दहशतगर्दी शुरू हुआ, जो देर शाम बैलेट बॉक्स सील होने तक चलता रहा। शनिवार को 18 की मौत हुई, रविवार को दो और लोगों ने दम तोड़ दिया। दावा किया गया है कि मरने वाले सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता बताए गए हैं और लगभग एक सौ से अधिक लोग घायल भी हुए हैं हालांकि, विपक्षी पार्टियों ने 30 से ज्यादा लोगों के मरने की आशंका जताई और हजारों के घायल होने की बात कही है।
मरने वालों में सबसे ज्यादा 12 कार्यकर्ता सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस , बीजेपी के 3, कांग्रेस के 3 और सीपीआईएम के 2 कार्यकर्ता शामिल है । ये वारदातें मुर्शिदाबाद, कूचबिहार, पूर्वी बर्दवान, मालदा, नादिया, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना में हुई और अन्य जिलों में भी छिटपुट घटनाएं हुई है। यह आलम तब है जब. केंद्र और राज्य के 1.35 लाख सुरक्षाबलों की तैनाती की गई थी। बताया जाता है बीएसएफ के सूत्रों के मुताबिक उन्हें राज्य चुनाव आयोग की ओर से संवेदनशील बूथ की लिस्ट नहीं दी गई ।
बीएसएफ का कहना है कि बूथ पर सुरक्षा बलों की तैनाती की जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग की है,ऐसे में हर जिले के डीएम की ओर से ही सुरक्षा बलों को तैनात किया गया. जिन जगहों पर बीएसएफ को तैनात किया गया वहां कोई हिंसा नहीं हुई है। बंगाल के हिंसा को लेकर राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा- मैंने जमीन पर जो देखा वह बहुत परेशान करने वाला है, वहां हिंसा और हत्या हो रही हैं। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि वो मंगलवार को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से शिकायत करेंगे.
बंगाल चुनाव आयुक्त राजीव सिन्हा ने हिंसा की घटनाओं के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराया है, उन्होंने कहा कि अगर केंद्रीय पुलिस बल समय पर पहुंच गई होती तो राज्य में हिंसक घटनाएं नहीं होतीं