कुछ चरित्र होते हैं, जो हमेशा नकारात्मकता खोजते हैं, हमेशा उन्हें नकारात्मकता चाहिए, जैसे ही कुछ सकारात्मक होता है, ये लोग अपने अपने खोल में चले जाते हैं, और जैसे ही कुछ ऐसा होता है, जिससे जरा सी भी नकारात्मकता फैले तभी ये सब सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे लोगों को क्या कहा जाता है, पता नहीं! मगर ये ऐसे लोग होते हैं, जो सभी को हतोत्साहित करते हैं। पिछले दिनों धान के खेतों ने से निकली उड़नपरी ने भारत को विश्व के मानचित्र पर गौरवान्वित किया।
सोशल मीडिया में उसका जी खोलकर स्वागत हुआ। उसने दिखाया कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके सामने बाधाएं कितनी हैं, अगर आप कुछ हासिल करना चाहते हैं, तो आपके लिए आसमान है। जाइए अपने हिस्से का कर लीजिए अपने नाम। मगर इसी के साथ जबसे फीफा के विश्व कप के फाइनल में क्रोएशिया गया है तब से भारत की जनसंख्या को लेकर एक ख़ास वर्ग में लानत मनालत चल रही है। कि कुछ लाख की जनसंख्या वाला देश फीफा के फाइनल में पहुँच गया और हम अरबों की संख्या में हैं तब भी क्वालीफाई नहीं कर पाए।
चलिए मुबारक हो, बयालीस लाख की आबादी का देश world cup final खेलेगा आज, और हम लोग सत्तर साल से हिंदू मुसलमान खेल रहे है। लानत है हम सब पर।
— Anubhav Sinha (@anubhavsinha) July 15, 2018
एक फीफा ही नहीं, बल्कि कई चैम्पियनशिप हैं, जिनमे हमारे खिलाड़ी अच्छा नहीं करते। मगर फिर प्रश्न यही है कि ऐसा कहकर हम किसके प्रति प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं? किसी भी खेल के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारी है? अनुभव सिन्हा लिखते हैं कि बयालीस लाख की आबादी वाला क्रोएशिया फीफाकप के फाइनल में पहुँच जाता है और हम यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम खेल रहे हैं। हरभजन सिंह भी ऐसा ही कुछ कहते हुए नज़र आते हैं और देश को इस तरह प्रताड़ित करने वाले और नीचा दिखाने वाले ट्वीट को केजरीवाल जी जैसे नेता रीट्वीट करते हैं।
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 16, 2018
हम सभी को अधिकार है अपने देश की कमियों के बारे में बोलने का, मगर हम सभी को अपने अपने गिरेबान में तो झाँक कर देख लेना चाहिए। परिवर्तन की राजनीति करने वाले तुरंत ही हिन्दू और मुसलमान में बंटते हुए नज़र आ रहे हैं। इतना ही नहीं, राजदीप जी तो फ्रांस की जीत में मुस्लिमों और शरणार्थियों की भूमिका को बताते हुए, भारतीय क्रिकेट टीम में कितने दलित और आदिवासी रहे हैं, इस बारे में सवाल कर रहे हैं। और एक तरफ हमारी किरण बेदी जी हैं जो फ्रांस की जीत में इसलिए खुश हो रही हैं क्योंकि पुद्दुचेरी एक समय में फ्रांस का उपनिवेश रहा था। कई बार ऐसा नहीं लगता कि हम अभी तक मानसिक रूप से कितने गुलाम हैं?
We the Puducherrians (erstwhile French Territory) won the World Cup.
???? Congratulations Friends.
What a mixed team-all French.
Sports unites.
— Kiran Bedi (@thekiranbedi) July 15, 2018
कई बार ऐसा लगता है कि हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गयी है कि हम कुछ सकारात्मक स्वीकार कर ही नहीं पाते। हमारी अपनी उपलब्धियां क्या हैं, हम नहीं देखना चाहते हैं। हमारे हॉकी के खिलाड़ी बसों में सफ़र करते हैं, और धक्के खाते हैं, वे फेमस नहीं हैं। और तब हमारे हरभजन जैसे खिलाड़ी उन खिलाडियों के लिए कुछ नहीं कहते। भारत से छोटे छोटे देश फिल्मों में ऑस्कर जीत चुके हैं, तो क्या हम अपने सभी फिल्म निर्माताओं को खारिज कर दें? वैसे भी केवल स्टार किड्स को लेकर सुरक्षित फ़िल्में बनाने वाली इंडस्ट्री में ऑस्कर विजेता फ़िल्में भूल जाइए। समस्याओं पर बात करिए, मगर देश को नीचा दिखाकर नहीं।
URL: talk about problems but not for defaming india
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