कांग्रेस पार्टी खासकर गांधी परिवार की सोच शुरू से यह रही है कि देश का सबकुछ या तो हमारा या किसी का नहीं। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण राफेल डील को लेकर कांग्रेस और गांधी परिवार मोदी सरकार को बदनाम कर रहे हैं। राफेल डील पर राहुल गांधी की नाराजगी इसलिए नहीं है कि यह डील क्यों हुई? उसकी नाराजगी इसलिए है क्योंकि यूपीए सरकार की डील में उसके बहनोई रॉबर्ट वाड्रा का निर्धारित ‘हिस्सा’ मोदी सरकार की डील में मारा गया।
मुख्य बिंदु
* वाड्रा से संबंधित ओआईएस कंपनी का मालिक संजय भंडारी व्यावसायिक भ्रष्टाचार और देश की आंतरिक सुरक्षा मामले में देश से फरार है
* दिल्ली स्थित उसके आवास पर सीबीआई छापेमारी के दौरान वहां भारत की सुरक्षा से जुड़े कई दस्तावेज भी बरामद हुए थे
दरअसल यूपीए सरकार के दौरान हुई राफेल डील के तहत रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ी दागी कंपनी ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशंस (ओआईएस) को काम के रूप में एक हिस्सा मिलना तय था। मालूम हो कि ओआईएस का मालिक संजय भंडारी देश से भागा हुआ है। उसके खिलाफ सीबीआई और ईडी की जांच चल रही है। भगोड़ा संजय भंडारी के साथ रॉबर्ट वाड्रा के नजदीकी संबंध के कारण ही राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के दौरान हुई राफेल डील में ओआईएस को काम दिलाने के लिए काफी दवाब डाला था। अब जब मोदी सरकार ने उस समझौते को ही रद्द कर दिया तो फिर ओआईएस के बहाने रॉबर्ट वाड्रा का जो हिस्सा मिलना था उस पर पानी फिर गया। अब जिस डील से गांधी परिवार को लाभ न हो वो तो अच्छा हो ही नहीं सकता। राफेल डील पर राहुल गांधी के आवेश में आने का मूल कारण यही है। इसलिए गांधी परिवार और कांग्रेस इतने पारदर्शी तरीके से हुए राफेल समझौते को अनिल अंबानी की कंपनी के नाम पर बदनाम करने पर तुली है।
"Tainted firm Offsets India Solutions whose promoter allegedly had links with Robert Vadra, @INCIndia president @RahulGandhi’s brother-in-law, applied ‘considerable pressure’ for slice of #RafaleDeal." Is this cause of anger?
Excellent report by @manupubby https://t.co/mWOp3qR6Tx
— Kanchan Gupta (@KanchanGupta) 13 September 2018
रिलायंस डिफेंस पर राहुल के झूठ की खुली पोल
अगर ऐसा नहीं होता तो क्या कारण है रक्षा उत्पाद से जुड़ी अनिल अंबानी की कंपनी पर प्रश्न खड़ा करने का? जबकि यही यूपीए सरकार है जो 2007 में राफेल डील को लेकर हुई बातचीत के दौरान रिलायंस इंड्रस्ट्रिज के चेयरमैन मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी लिमिटेड (आरएटीएल) को फ्रेंच विमान उत्पादन कंपनी डसॉल्ट के साथ मिलकर काम करने की अनुमति दी थी। जबकि मुकेश अंबानी की आरएटीएल कंपनी 4 सितंबर 2008 में ही अस्तित्व में आई थी। इस हिसाब से देखें तो राफेल डील के तहत काम करने के लिए रक्षा क्षेत्र की यह बिल्कुल नई कंपनी थी। अब जब मुकेश अंबानी की उसी कंपनी को लेकर उनके छोटे भाई अनिल अंबानी रक्षा क्षेत्र में उतरे और राफेल लड़ाकू विमान निर्माण कंपनी डसॉल्ट के साथ समझौता किया तो कांग्रेस और राहुल गांधी उस पर प्रश्न उठा रहे हैं। मालूम हो कि 2014 में जब मुकेश अबांनी ने रक्षा तथा विमान निर्माण क्षेत्र से अपना व्यवसाय वापस करने का फैसला किया तभी अनिल अंबानी ने उस क्षेत्र में उसी कंपनी के सहारे उतरने का फैसला किया। इसलिए अनिल अंबानी की कंपनी पर यह आरोप लगाना कि उनकी कंपनी इस डील के कारण बनाई गई है सरासर गलत और झूठ है।
ओआईएस को शामिल करने के लिए राहुल ने डाला था दबाव
मूल समझौते के तहत राफेल लड़ाकू विमान के निर्माता कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने आरएटीएल से समझौत कर ऑफसेट पर एक लाख करोड़ के निवेश करने की योजना बनाई थी। हालांकि इसमें से किसी कंपनी ने इस समझौते को लेकर कभी भी कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की। लेकिन इस समझौते को 2007 से ही आकार देने वाले मध्यस्थों के हवाले से इकोनॉमिक टाइम्स का कहना है कि इस डील में दागी कंपनी ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशंस को शामिल करने के लिए ही राहुल गांधी ने यूपीए सरकार पर काफी दबाव बनाया था। यह वही दागी कंपनी है जिसके मालिक संजय भंडारी के साथ राहुल गांधी के बहनोई और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का गहरा संबंध है।
लेकिन भारत में व्यावसायिक भ्रष्टाचार के कारण जब भंडारी के खिलाफ जांच शुरू हुई तो, तो वह देश छोड़कर भाग निकला। इसी कारण उसकी कंपनी ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशंस भी बंद हो गई। गौरतलब है कि फ्रेंच कंपनी डसॉल्ट ने शुरू में ही वाड्रा के संबंधी संजय भंडारी की कंपनी ओआईएस के साथ साझेदारी करने से इनकार कर दिया था। इस निर्णय के पीछे भंडारी के साथ वाड्रा की निकटता ही मूल कारण माना जाता है। ध्यान रहे है कि 2016 में जब गलत तरीके से डिफेंस डील को प्रभावित करने के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली स्थित भंडारी के दफ्तर और घर पर छापेमारी की तो ईडी अधिकारियों को रक्षा मंत्रालय से जुड़े कई दस्तावेज प्राप्त हुए थे। वहीं इस कार्रवाई के बाद ही भंडारी लंदन भाग गए। तब से लेकर अब तक उनका कोई अतापता तक नहीं है।
मोदी सरकार ने आरएटीएल तथ डसॉल्ट के बीच समझौते को ठंडे बस्ते में डाला
डसॉल्ट ने 28 अगस्त 2007 को भारत में मध्यम क्रम के लड़ाकू विमान के तहत राफेल लड़ाकू विमान के लिए समझौता किया। उस समय डसॉल्ट को टाटा समूह से बातचीत शुरू करने को कहा गया था। इस समझौते के आंतरिक स्रोत का कहना है कि जब टाटा समूह ने अमेरिकी कंपनी के साथ साझेदारी करने का फैसला कर लिया तो फिर डसॉल्ट ने मुकेश अंबानी की कंपनी से बातचीत शुरू की। जबकि उस समय मुकेश अंबानी रक्षा और विमान निर्माण के क्षेत्र में अपना कदम बढ़ाने के बारे में बिचार ही कर रहे थे। 2011 के मई में जब वायुसेना ने राफेल और यूरोफाइटर जेट को हरी झंडी दे दी तभी मुकेश अंबनी की नई बनी कंपनी आरएटीएल ने इस समझौते के तहत रोडमैप तैयार करने तथा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की भूमिका पर बातचीत करने के लिए इस क्षेत्र से जुड़े जानकारों की भर्ती शुरू की थी। लेकिन मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आते ही मुकेश अंबानी की कंपनी को साझीदार बनाने की योजना पर पानी फिर गया। मोदी सरकार ने उस योजना को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर बेशर्म कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी पर मुकेश अंबानी की मदद करने का आरोप लगाते हैं।
72 कंपनियों में से डसॉल्ट ने रिलायंस डिफेंस को चुना
अंत में डसॉल्ट कंपनी ने अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंड डिफेंस कंपनी के साथ साझेदारी करने का फैसला किया। अनिल अंबानी की यह कंपनी मार्च 2015 में अस्तित्व में आई थी। कहा जाता है कि डसॉल्ट ने शुरू में मुकेश अंबानी की कंपनी से हुई बातचीत के कारण रिलायंस डिफेस को अपना साझीदार बनाने के लिए चुना। कहा जाता है कि आरएटीएल के साथ हुई बातचीत से प्रभावित होने के कारण ही उसने अनिल अंबानी की कंपनी के साथ जाने का फैसला किया। दूसरा सबसे कारण जो था वह था रिलायंस डिफेंस के पास नागपुर मिहान में 30 एकड़ जमीन का उपलब्ध होना। क्योंकि विमान निर्माण के लिहाज से वह जगह सबसे अधिक उपयुक्त पाई गई। वैसा भी नहीं है डसॉल्ट ने सरकार के दबाव में कोई फैसला किया। बल्कि उसके पास 72 कंपनियों के साथ साझेदारी करने का विकल्प था। इन्हीं 72 कंपनियों में से, जिनमें एचएएल से लेकर लॉर्सन एंड टर्बो, टाटा बेल जैसी कंपनियां शामिल थी, उसने रिलांयस को चुना था। इतने पारदर्शी तरीके से हुए राफेल समझौते के बावजूद राहुल गांधी और कांग्रेस मोदी सरकार पर अपने नजदीकी उद्योगपतियों को मदद करने तथा भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं।
URL: Why is Rahul Gandhi angry over the Rafael deal? Know the whole truth
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