देखिए, कश्मीर में इतने छोटे बच्चे के दिमाग में मजहबी जहर किसने भरा है? रवीश और बरखा दत्त जैसे पत्रकार कश्मीर को राजनीति समस्या बताकर मजहबी कट्टरता और इसे बढ़ाने वाले अलगाववादियों एवं पाकिस्तान को हमेशा सेफ-पैसेज देते हैं! क्या इतना छोटा बच्चा राजनीति समझता है? जिस #Burhanwani के मां-बाप गर्व से अपने बेटे की मौत को शहादत बता रहे हों, ऐसे ही घरों में तो बच्चों की मासूमियत छिनी जाती है!
छोटे से बच्चे द्वारा जवानों पर गुलेल तानना, हो सकता है कि बच्चा खेल रहा हो, लेकिन जहां जवानों पर छोटे-छोटे बच्चे पत्थर बरसा रहे हों, वहां इसके दूसरे मायने भी हो सकते हैं! क्या हमारे-आपके बच्चों में सैनिकों पर गुलेल तानने का साहस होगा? इस बच्चे के घर में क्या सिखाया जा रहा है, यह बुरहान के माता-पिता के मजहबी कट्टरता भरे बयान से खूब समझा जा सकता है! बच्चे की आंखें देखिए, बालपन की जगह वहां नफरत साफ देखा जा सकता है! बालमन में नफरत राजनीति के कारण नहीं, मजहब के कारण उपजता है! सीरिया से लेकर पाकिस्तान तक छोटे बच्चों के हाथों में बंदूक वाली तस्वीर हम सबने कभी न कभी अखबार व टीवी में देखी है!
कश्मीर पूरी तरह से मजहबी पागलपन का शिकार है, जो इससे उपजा है कि वहां की बहुसंख्यक मुसलमान हिंदू बहुल भारत के साथ कैसे रह सकता है? इसी आधार पर तो कश्मीर का विलय पाकिस्तान ने अपने में करना चाहा था और इसे ही आधार बनाकर पंडित नेहरू ने राजा हरि सिंह पर शेख अब्दुल्ला को तरजीह दी थी और आजाद भारत में उसे कश्मीर के प्रधानमंत्री का ओहदा दिया था! कश्मीरी पंडितों को भी तो उनके धर्म के कारण ही घाटी से निकाला गया था! कश्मीर राजनीतिक नहीं, मजहबी समस्या है! इसे जितनी जल्दी भारत के हुक्मरान और प्रेश्या-पत्रकार समझ जाएं, उतना जल्दी भारत का भला होगा!!
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