पूरे विश्व को चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के मामले में भारत से सीख लेनी चाहिये, चीन में 1989 में हुए तियानामेन छात्र आंदोलन के नेता और ह्यूमनिटेरियन चीन के सह-संस्थापक व अध्यक्ष ज्होऊ फेंगसुओ ने अपने एक वक्तव्य में कहा.
ज्होऊ फेंगसुओ एक वेबिनार के ज़रिये आयोजित की गई चर्चा में अपने विचार सामने रख रहे थे जिसका शीर्षक था ‘ Emperor Has No Clothes : China Under Xi Jinping’. इस चर्चा के दौरान ज्होऊ फेंगसुओ ने तियानामेन छात्र आंदोलन के समय के अपने सारे संघर्षों के बारे में खुलकर बताया. ऊन्होने चीन के प्रति एक आक्रामक नीति अपनाने के लिये भारत की प्रशंसा भी की.
उन्होने भारत के हाल ही में 118 चीनी एप्स पर बैन लगाने के फैसले को बिल्कुल उचित ठहराते हुए कहा कि चीन से कैसे पेश आना है, इस संदर्भ में पूरे विश्व को भारत से सीख लेनी चाहिये और चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिये.
ज्होऊ फेंगसुओ ने कहा कि भारत बहुत से मुद्दों को लेकर चीन को मनमानी करने से रोक सकता है. सबसे पहले तो भारत ताइवान के साथ स्वतंत्र रूप से कूटनीतिक संबंध बनाकर चीन को मुश्किल मे डाल सकता है और ताइवान को पूरा विश्व मान्यता दे, इस बात के लिये भी रास्ते खोल सकता है. फिर हाँग कांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू होने के मुद्दे को लेकर भी भारत को खुले में आकर बोलने की ज़रूरत है, उन्होने कहा.
ज्होऊ फेंगसुओ ने पूरे विश्व को चेतावनी दी है कि जो लोग चीन को हल्के में ले रहे हैं, वे बाद में अवश्य पछतायेंगे. उन्होने कहा कि चीन की तानाशाही पूरे विश्व के लिये खतरनाक है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मंसूबे सिर्फ हाँग कांग या तिब्बत या ताइवान तक सीमित नहीं है बल्कि वे पूरे विश्व को चीन के आधिपत्य में लाना चाह्ते हैं. और इसीलिये उन्होने चीन के संविधान में इस प्रकार के संशोधन को अंजाम दिया है जिससे वे जब तक चाहें तब तक राष्ट्रपति बने रहें, उनके नेतृत्व पर कोई भी समय सीमा लागू न हो.
वियांन न्यूज़ चैनल को हाल ही में दिये गये एक टेलिफांनिक इंटरव्यू में भी ज्होऊ फेंगसुओ ने बहुत सी बातें सांझा की हैं. उनकी चीन से बच निकलने की दास्तान इतनी दर्द भरी है कि आप सुनेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे. तियानामेन आंदोलन के बाद बाकी बहुत से आंदोलनकारियों की तरह उन्हे भी जेल में डाला गया. लेकिन यह तो उनका सौभाग्य था कि वे किसी तरह जेल से ज़िंदा बच निकले. उन्होने अपने इंटरव्यू में बताया कि चीन की उस समय अमरीका के साथ कुछ संधि हुई थी जिसकी वजह से उनकी रिहाई संभव हो पाई. लेकिन इसके बाद भी उनके चीन से बाहर जाने पर बहुत लम्बे समय तक रोक लगी रही. बहुत समय बाद वे किसी प्रकार से अमरीका पहुंचे.
उन्होने यह भी बताया कि अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये और खुद की सुरक्षा के लिये भी वे कभी भी अपने परिवार से फोन आदि पर बात तक नहीं करते. उनसे न्यूनतम संपर्क बनाये रखते हैं. क्योंकि चीन आम लोगों पर इतनी अधिक जासूसी करता है कि ज़रा सी बात भी सरकार की नज़र में आ जाती है और फिर उनके परिवार के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है.
ज्होऊ फेंगसुओ ने यह भी कहा कि जब 1989 में तियानामेन स्क्वेर का छात्र आंदोलन हुआ था तो चीन के लोगों में प्रजातंत्र की मांग को लेकर बहुत उत्साह था. उन्हे यह विश्वास था कि वे इस आंदोलन के बल पर चीन में प्रजातंत्र लायेंगे क्योंकि इस आंदोलन को देशव्यापी समर्थन प्राप्त था, यहां तक कि कम्यूनिस्ट पार्टी के कई कार्यकर्ता तक इस आंदोलन का समर्थन करते थे. लेकिन चीन की कम्यूनिस्ट सरकार ने जिस क्रूरता और बर्बरता से इस आंदोलन को कुचला और लोगों पर जो ज़ुल्म ढाये, वह सोचकर आज भी चीन के लोग कांप उठते हैं.
ज्होऊ फेंगसुओ कहते हैं कि अब चीन के लोगों में शी जिनपिंग के शासन को लेकर बहुत दहशत है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी टेक्नांलजीज़ के ज़रियी आम लोगों पर जासूसी इस कदर बढ़ गई है कि उनका अगला कदम क्या हो सकता है, सरकार यह तक भांप सकती है. इसीलिये चीन के लोग प्रत्यक्ष तौर पर तो अब सरकार के विरोध में कुछ नहीं बोलते, न ही प्रजातंत्र की मांग करते हैं. लेकिन उनके अंदर कम्यूनिज़्म से स्वतंत्रता और प्रजातंत्र को हासिल करने की आस अभी भी बरकरार है. और अपनी निजी बातचीत में वे ये बातें ज़ाहिर भी करते हैं.
उन्होने वियांन न्यूज़ को दिये इंटरव्यू में भी विश्व को यही चेतावनी दी कि यदि पूरा विश्व चीन के खिलाफ एकजुट नहीं होगा और उसकी दमनकारी नीतियों का बहिष्कार नहीं करेगा तो फिर सभी को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.