तथाकथित किसान आंदोलन के बारे में कहा जा रहा है कि जितना आमलेट में आम होता है, दालचीनी में दाल होता है,उतना ही इस किसान आंदोलन में किसान मौजूद है। दरअसल सत्ता गवा चुके विरोधी पार्टियां किसी भी तरह से मोदी सरकार को अस्थिर करने की नियत से किसानों के नाम पर देश में शाहीन बाग की तर्ज पर अलग अलग जगह आंदोलन कर लोगों को मरवाने कि साज़िश रच चुके हैं । पहले शाहिनबाग फिर हाथरस और अब किसान आंदोलन के नाम पर देश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश की जा रही है।
नागरिक कानून के विरोध में उतरे मुस्लिम लोगों ने जब जगह-जगह सड़क जाम कर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास किया तब इसमें सफलता नहीं मिली जिसके परिणाम स्वरूप दिल्ली में भीषण दंगे की स्क्रिप्ट तैयार की गई । जिसके चलते हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के करीब 53 लोग मारे गए। यदि किसान आंदोलन की साज़िश का भांडा जल्द फोड़ा नहीं किया तो विरोधी पार्टियों की योजना पूरे देश मे आग लगाने की है। विपक्ष को पूरी तरह पता है कि सरकार फर्जी किसान आंदोलन को रोकने के लिए जान लगा देगी ।
विपक्ष चाहता है कि किसान बॉर्डर से जबरन दिल्ली की सीमा में घुसे और पुलिस बचाव में गोलियां चला दे । फिर पुलिस कार्यवाही में लोग मारे जाएं और फिर वो उनकी लाश पर राजनीति कर पूरे देश के किसानों को सरकार के खिलाफ कर सके । विपक्ष को समझ आ गया है कि केंद्र सरकार किसानों को किसान निधि , यूरिया की नीम कोटिंग ,बैंक से लोन और अब पूरे देश के किसानों की ज़मीनों की ड्रोन द्वारा रजिस्ट्री करवा कर पूरे देश के किसानों के हितों की रक्षा कर रही है और देश का आम किसान बिल से खुश है। लेकिन बिचौलियों , आढ़तियों और दलालों को किसान बिल से दिक्कत पेश आ रही है ।
माना जा रहा है कि किसान की आड़ में बिचौलिए ,आढ़ती और दलाल देश में अस्थिरता फैलाना चाहते हैं ताकि आम किसानों में गलत संदेश जाए। सच्चाई तो यह है कि भारत का आम जनमानस इस तरह की साज़िश समझ चुके हैं। जबकि विपक्षी पार्टियां अपने कार्यकाल में किसानों के लिए कुछ किया होता तो आज किसान खुदकुशी नहीं कर रहा होता।
जब मोदी सरकार आज किसानों को गरीबी से ऊपर उठाने की कोशिश कर रही है तो इनको दिक्कत हो रही है । केंद्र सरकार को ऐसे साज़िश भरे आंदोलन को कठोरता से कुचलना चाहिए और जो नेता बने है उनकी पहचान सुनिश्चित कर असलियत पता करनी चाहिए । यह भी सवाल उठता है कि मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल, ओडिशा, असम आदि के किसान एकदम क्यों शांत हैं, क्योंकि वे वाक़ई में किसानी करते हैं और उन्हें किसी भी पचड़े में फंसना पसंद नहीं नहीं।
इस आंदोलन की शुरुआत पंजाब से की गई है जहां कांग्रेस की सरकार है जबकि क्या आप जानते हैं दिल्ली में सबसे मंहगा गेंहू कहां का बिकता है? यकीनन यह गेहूं पंजाब और हरियाणा का नहीं होता। गेहूं होता है मध्य प्रदेश का। पंजाब का गेंहू उसी दिल्ली में इतना बदनाम क्यों है जहां के किसान दिल्ली आने के लिए मरे जा रहे हैं?।
एक कड़वी सच्चाई यह है कि पंजाब के किसान धनाढ्य जरूर होते हैं लेकिन ऐसा अन्न उपजाते हैं जिसे खरीदकर कोई समझदार आदमी खाना नहीं चाहता। हिंदुस्तान में या शायद दुनिया में सबसे ज्यादा फर्टिलाइजर और कीटनीशकों का इस्तेमाल पंजाब के किसान करते हैं। इस वजह से पंजाब के किसानों पर यह भी आरोप लगता रहा है कि वो अन्न नहीं उपजाते। बल्कि जहर पैदा करते हैं।
यह भी कहा जाता है कि पंजाब के किसान जहरीली खेती इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) चाहिए होता है। मतलब जितनी पैदावार उतना पैसा भले ही उसके लिए एक बिस्वे में दस किलो यूरिया क्यों न डालनी पड़े। जबकि भारत में किसानी का मॉडल तो बिल्कुल भी नहीं है। हिंदू रीति रिवाज में अन्न को ब्रह्म तथा अन्नपूर्णा देवी की संज्ञा दी गई है और उसे जहर बनानेवाले को हम किसान क्या कह सकते हैं। यह भी चौंकाने वाला है कि पंजाब के किसानों की संख्या पौने चार करोड़ है और किसान आंदोलन के नाम पर सड़क पर सिर्फ 5,6 हजार लोग उतरे हैं । मान लीजिए, एक करोड़ किसान भी बीमारी या किसी समस्या के चलते समर्थन करने नही आ पाए, तो फ़िर बाकी कहां है, तो इसका अर्थ साफ है कि किसान मोदी सरकार के साथ है और जो नकली किसान आए हैं, वे सभी कांग्रेस पोषित बिचौलिया और दलाल है ।
आम जनमानस को यह समझना होगा कि यह आंदोलन दरअसल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक लड़ाई है और इसे सिख तथा हिंदू विरोधी नहीं समझना होगा। हमें सावधान रहना होगा। जो लोग शाहीन बाग में सड़क जाम कर नागरिक कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे , वहीं आज किसान बनकर दिल्ली की सीमा पर नौटंकी कर रहे हैं।
यदि सचमुच किसान आंदोलन है तो इसमें खालिस्तान जिंदाबाद के नारे क्यों लगाए गए । भिंडरावाले के पोस्टर क्यों लहराए गए तथा छठ के नाम पर जो करोना फैलने का खतरा बता रहा था अरविंद केजरीवाल, वह क्यों किसानों को दिल्ली आने का निमंत्रण दे रहा है। यह भी समझना होगा कि किसानों के दिल्ली आने का डेट 26/ 11 क्यों रखा गया । इस दिन ट्रेड यूनियन की हड़ताल भी रखी गई थी क्योंकि मुम्बई इस्लामिक हमला की खबर टेलीविजन पर प्रसारित ना हो सके ।
कांग्रेस जनित हिन्दू आतंकवाद की झूठी कहानियों की पोल न खुले । यदि आंदोलनकारियों में वास्तव में कोई किसान है तो इन्हें धनिया, पोदीना, मेथी, बथुआ और पालक के पत्ते देने चाहिए और यह किसान अलग- अलग पहचान लें, तो ही उन्हें दिल्ली में प्रवेश की अनुमति मिलनी चाहिए।
बहुत सही कहा है