
मूवी रिव्यू: टेनेट देखकर लगा ‘चावल खाते-खाते कोई कंकड़ दांत में आकर फंस गया हो।’
क्रिस्टोफर नोलान को एक किंवदंती कहा जाता है। उनकी फिल्मों के लिए दर्शक उस दिन से प्रतीक्षा शुरु कर देते हैं, जिस दिन वे अपनी नई फिल्म की घोषणा करते हैं। उनकी फ़िल्में भव्य कैनवास पर तैयार की जाती है और एक्शन दृश्यों के लिए वे कम्प्यूटर ग्राफिक्स के सस्तेपन से घृणा करते हैं। वे करोड़ों खर्च कर वास्तविक ऐरोप्लेन नष्ट करने में विश्वास रखते हैं।
इसमें उनको वास्तविकता की अनुभूति मिलती है। बड़ा से बड़ा घुड़सवार रेस के मैदान में चित हो जाता है। क्रिस्टोफर नोलान ने जब टेनेट बनाने का निर्णय लिया था, तभी ये तय हो गया था कि उनका घोड़ा बॉक्स ऑफिस की रेस में बिदक जाने वाला है। ये एक ऐसी साइंस फिक्शन है, जिसने नोलान के नाम पर बट्टा लगा दिया है।
सर्वविदित है कि नोलान की फ़िल्में अबूझ पहेलियों सी होती है। उनमे विज्ञान के सिद्धांत होते हैं। उनकी फिल्मों के लिए विज्ञान वरदान होता है लेकिन इस बार वह श्राप बन गया। उनकी फिल्म की कमाई के आंकड़े हर दिन गिरते जा रहे हैं तो उसका कारण ‘भौतिकी का एन्ट्रॉपी नियम है। फिल्म की कहानी एक सीआईए एजेंट से शुरु होती है।
ये एजेंट एक अंडरकवर ऑपरेशन पर होता है, जब उसे एक अनोखी तकनीक के बारे में पता चलता है। इस तकनीक की सहायता से विश्व में अशांति फैलाने वाला एक ग्रुप भविष्य से हथियार प्राप्त कर रहा है। यानि जो भविष्य घटा ही नहीं है, वहां से बंदूके और गोलियां आती हैं और वे समय की यात्रा करते हुए हाथ में प्रकट हो रही है।
इस ‘रिवर्स तकनीक’ के कुछ तार भारत के मुंबई से जुड़े हैं। मुंबई में प्रिया नामक एक हथियारों की डीलर परमाणु हथियार की प्राप्ति में सहयोग कर रही है। हमारा सीआईए एजेंट भी इस तकनीक को प्राप्त कर शत्रु के विरुद्ध प्रयोग करता है। इस फिल्म की समीक्षाओं को पढ़ते समय एक शीर्षक पर नज़र ठहर गई। मुझे लगता है वही शीर्षक इस फिल्म की सही सटीक समीक्षा है।
लेखक ने लिखा ‘ टेनेट एक ऐसी भव्य पहेली है, जिसे दर्शक क्लाइमैक्स तक हल नहीं कर पाते।’ टेनेट में विज्ञान इतना उलझा हुआ है कि निर्देशक नोलान आखिर तक दर्शक को समझा नहीं सके कि वे टाइम ट्रेवल दिखा रहे हैं या एन्ट्रोपी सिद्धांत प्रतिपादित कर रहे हैं। भविष्य में बनी बंदूक की गोलियां वर्तमान में प्रकट हो रही है।
निर्देशक के लिए आवश्यक था कि वह इस जटिलता को आसान कर दर्शकों को समझाता। आखिर हर दर्शक तो भौतिक विज्ञानी नहीं होता। इसी अस्पष्टता के कारण फिल्म बोझ लगने लगती है। नोलान की एक अन्य फिल्म ‘इंटरस्टेलर’ का उदाहरण देना चाहूंगा।
उसमे नोलान दर्शक को समझाने में सफल रहे थे कि चौथे आयाम की सहायता से पृथ्वीवासियों को उनकी समस्या का हल मिल जाता है लेकिन टेनेट में दर्शक आखिर तक उसी भौतिकी सिद्धांत में अटका रह जाता है और फिल्म आगे बढ़ जाती है।
फिल्म का बजट 200 मिलियन डॉलर है और ये नोलान की सबसे महंगी फिल्म मानी जा रही है। कोरोना के चलते फिल्म की लागत और बढ़कर 300 मिलियन से अधिक हो गई। अब तक फिल्म ने विश्वभर से लगभग 350 मिलियन डॉलर बटोर लिए हैं और नोलान व्यवसायिक रूप से तबाह होने से बाल-बाल बचे हैं। हालांकि एक निर्देशक के रूप में उनकी गरिमा कम हुई है।
भारत में ये फिल्म जल्दी रिलीज होने जा रही है लेकिन मुझे इसके सफल होने पर संदेह है। उलटे दौड़ते लोग, रिवर्स आती गोलिया, पलटकर कार का फिर सीधा हो जाना, ये सब भारतीय दर्शक कैसे पचा सकेगा। क्रिस्टोफर नोलान की ‘डनकिर्क’ देखकर बासमती चावल खाने की अनुभूति मिली थी और टेनेट देखकर लगा ‘चावल खाते-खाते कोई कंकड़ दांत में आकर फंस गया हो।’
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