विपुल रेगे। फिल्मी सितारों के साथ उनके परिवार के सदस्य ख़बरों में क्यों छाए रहते हैं। सितारों के बच्चे, जिनकी कोई उपलब्धि नहीं है, समाचारों की सुर्खियाँ क्यों बनते रहते हैं। हिन्दी फिल्म उद्योग में मार्केट वेल्यू बनाए रखने के लिए जनसंपर्क की पेशेवर सेवाएं ली जाती है। शुल्क दीजिये और अपनी ख़बरें अख़बारों और टीवी पर देखिये। अब तो फ्लॉप कलाकारों को भी मार्केट में बने रहने के लिए पीआर का लाभ मिल रहा है।
करीना कपूर ख़ान कहती हैं कि उन्हें कभी किसी पीआर एजेंसी की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ी। उनकी कही बात को स्वयं समाचार माध्यम ये छापकर झुठला देते हैं ‘व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर करीना और सैफ ने अपने पीआर के माध्यम से दूसरे बच्चे के जन्म की जानकारी दी है।’ जब उनके दूसरे बच्चे का जन्म हुआ, तो ख़बरें जनसंपर्क के माध्यम से ही बाहर आई थी।
बॉलीवुड के कलाकार अपनी छवि और मार्केट वेल्यू बनाए रखने के लिए पब्लिक रिलेशन का सहारा लेते हैं। बॉलीवुड का जनसंपर्क इतना सघन हो चुका है कि कलाकारों के साथ उनके परिवार के सदस्य भी खबरों में छाए रहते हैं। ख़बरों में आना आवश्यक है। ख़बरों में आने के बाद ही उनकी बाज़ार में क़ीमत बनती है और विज्ञापनों में काम मिलता रहता है।
लेकिन कलाकारों के बच्चों को मीडिया में स्थान देने के क्या कारण हो सकते हैं। शाहरुख़ खान की बेटी सुहाना की उपलब्धि क्या है? वे समाचारों में अत्याधिक छाई रहती हैं। आप लंदन में पढ़ाई कर रहे हैं, तो ये कोई उपलब्धि नहीं कही जाएगी। ऐसे ही आमिर खान की बेटी ईरा की ख़बरें बाहर आती रहती हैं। आजकल उनकी प्रेम कहानी को समाचारों में परोसा जा रहा है।
बॉलीवुड के शौक़ीन फिल्मी ख़बरों को जानकारी बढ़ाने के लिए पढ़ते या देखते हैं लेकिन यहाँ फिल्मों की सामान्य जानकारी कम और सितारों के परिवार की झांकी अधिक देखने को मिलती है। करीना कपूर के पुत्र तैमूर की गाथा तो पूरा देश जानता है। पीआर एजेंसियों की रचनात्मकता यहाँ तक पहुंची कि तैमूर की शक्ल वाले खिलौने बाजार में लॉन्च कर दिए गए।
इसके पीछे की मानसिकता अपने बच्चों को बॉलीवुड के लिए पहले से तैयार करना है। करीना कपूर खान का कॅरियर नब्बे के दशक के अंत में शुरु हुआ था। वैसे तो भारत में अभिनेत्रियों का कॅरियर ग्राफ सात से दस साल का ही होता है लेकिन करीना ने चमत्कारिक ढंग से इसे अब तक चलाया है। करीना 40 वर्ष की हो चुकी हैं और अब तक फिल्मों और विज्ञापन की दुनिया में सक्रिय हैं।
उनकी फ़िल्में अब हिट नहीं होती लेकिन विज्ञापन भरपूर मिल रहे हैं। यदि करीना पीआर एजेंसी की सहायता न लें तो उनको विज्ञापन मिलना बंद हो जाएंगे। उनकी मार्केट वेल्यू उन्ही ख़बरों के दम पर टिकी हुई है, जो जनसंपर्क के माध्यम से बाहर आती है। विज्ञापनदाता स्वयं इन कलाकारों की मार्केट वेल्यू का पता नहीं करता, वह देखता है कि अमुक कलाकार कितना खबरों में रहता है।
विज्ञापन एजेंसियों के पास इस बारे में पता लगाने के लिए केवल मीडिया का सहारा है। विज्ञापनदाताओं को तो पता ही नहीं है कि करीना कपूर जाने कबसे मार्केट से बाहर हो चुकी हैं। ये एक किस्म का घोटाला है। किसी भी कलाकार को उसकी सच्ची मार्केट वेल्यू पर ही विज्ञापन मिलना चाहिए लेकिन बॉलीवुड को लेकर हम एक अलग ही घालमेल देखते हैं।
सलमान खान, आमिर खान, शाहरुख़ खान को अब तक विज्ञापन मिल रहे हैं। इन तीनों का कॅरियर विगत तीन वर्ष से नरम चल रहा है। दीपिका पादुकोण को जेएनयू स्टैंड के विवादों में फंसने के बावजूद अब तक विज्ञापन मिल रहे हैं। अब तो पता चला है कि सलमान खान और दीपिका पादुकोण के इंस्टाग्राम और ट्वीटर पर फॉलोइंग भी फर्जी है। फॉलोइंग बढ़ाना भी मार्केट में बने रहने का एक तरीका है।
फेक फ़ॉलोअर्स से पता नहीं चलता कि अमुक सितारा पिछले तीन साल से फ्लॉप है। एक तरह से पीआर एजेंसियों के माध्यम से विज्ञापनों का ये घोटाला मजे में चल रहा है। प्रसिद्ध वेबसीरीज मिर्ज़ापुर से प्रसिद्ध हुए ‘दिव्येंदु शर्मा ‘ इन दिनों एक जीवन बीमा कंपनी का विज्ञापन करते दिखाई देते हैं। दरअसल विज्ञापन की विषयवस्तु के आधार पर एक मॉडल को चुना जाता है।
यदि वह फिल्म कलाकार है तो देखा जाता है कि उसकी सिनेमेटिक छवि कैसी है। दिव्येंदु तो इस वेबसीरीज में डॉन बने थे और हर दस मिनट में एक हत्या करते दिखाई देते थे। इस हिसाब से देखा जाए तो जीवन बीमा का विज्ञापन उनकी सिनेमाई छवि को सूट नहीं करता है लेकिन पीआर की मेहरबानी से यहाँ सब हो सकता है।
जनसंपर्क एक जादू है। इसकी सहायता से न केवल फ्लॉप कलाकार अपना कॅरियर अच्छी तरह चला सकते हैं, बल्कि उनके बच्चों के लिए भी बॉलीवुड में आधार बना सकता है ताकि नेपोटिज्म बेरोकटोक चलता रहे।