आईएसडी नेटवर्क। सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी न्यायालयों से ओटीटी दिशा-निर्देशों से जुड़ी उन याचिकाओं पर रोक लगाने के लिए कहा है, जो केंद्र सरकार की ओर से दायर की गई थी। मंगलवार को सरकार ने एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया। इसमें सरकार ने दावा किया कि ओटीटी पर आने वाले कंटेंट की जाँच की मांग के लिए एक तंत्र बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया कि बहुत समय से मुख्यमंत्रियों और सांसदों को ओटीटी पर कंटेंट के विषय में शिकायतें प्राप्त हो रही थी। ओटीटी कंटेंट पर नियंत्रण के लिए इसलिए सोशल मीडिया प्लटफॉर्म्स, ओटीटी और डिजिटल मीडिया के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइन एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 का मसौदा तैयार करना पड़ा।
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय की दलील के बाद याचिका खारिज कर दी थी कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को मंत्रालय से कोई भी लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के वकील शशांक शेखर ने ओटीटी को लेकर दायर की थी। उसके बाद ही सरकार ये शपथ पत्र लेकर आई। शशांक शेखर ने अपनी याचिका में स्पष्ट रुप से मांग की थी कि ओटीटी प्लेटफॉर्म की सामग्री को कानून के दायरे में लाया जाए।
शपथ पत्र की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की ओर से नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो, हॉटस्टार सहित अन्य ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्मों के विनियमन और कामकाज के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में चल रही सभी कार्यवाही लंबित रखने का आदेश दिया है। पिछले दिनों इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है।
न्यायालय ने कह दिया था कि सरकार द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देशों में उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रभावी तंत्र नहीं बनाया गया है। न्यायालय ने इन दिशा-निर्देशों को बिना नाख़ून और बिना दांतों वाला शेर बताया था। सुप्रीम कोर्ट के रुख से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को भविष्य में अपने बनाए दिशा-निर्देशों की समीक्षा करनी पड़ सकती है।