अर्चना कुमारी। पाकिस्तान से भारत आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता मिलने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नागरिक संशोधन कानून विधेयक पारित होने के बाद हिंदू शरणार्थियों में यह आस बनी थी कि उन्हें अब भारत की नागरिकता लेने में कोई खास दिक्कत पेश नहीं होगी लेकिन भारत की नागरिकता पाना आज भी हिंदू शरणार्थियों के लिए बड़ी मुसीबत है । हैरानी की बात यह है कि जब देश में हिंदूवादी कहे जाने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, तब भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही।
सबसे दुखद स्थिति यह है इस समय एक ऐसी सरकार सत्ता में है जो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लाने की इच्छुक है – जो हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी से संबंधित गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना चाहती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि संसद द्वारा पारित किए जाने के लगभग बाद भी सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों को अधिसूचित नहीं किया है, जिससे शरणार्थियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता दिलाने में मदद करने वाले जय आहूजा बताते हैं कि हिंदू शरणार्थियों को सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें भारत की नागरिकता पाने से पहले पुराने नागरिकता को सरेंडर करना होगा इसके लिए हिंदू शरणार्थियों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। जिस जिले में शरणार्थी आवेदन देता है वहां के कलेक्टर उन्हें पुराने नागरिकता को सरेंडर कर नागरिकता परित्याग प्रमाण पत्र लाने को बोलते हैं ताकि उन्हें भारत की नागरिकता दिलाई जा सके लेकिन पाक दूतावास इस तरह के प्रमाण पत्र को जारी करने में तमाम तरह की अड़चनें बताता है।
जो भी हिंदू शरणार्थी भारत में रह रहे हैं वह बेहद निर्धन होते हैं और उनके लिए पासपोर्ट नवीनीकरण/समर्पण के लिए पाकिस्तान उच्चायोग, चाणक्यपुरी नई दिल्ली का चक्कर काटना बेहद मुश्किल होता है । जय आहूजा बताते हैं कि पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नागरिकता पाने में आ रही अड़चन को दूर करने का सराहनीय कार्य किया था लेकिन अब फिर से दिक्कत पेश आ रही है ।
उनके अनुसार पूर्व गृह मंत्री ने 16 जिलाधीश और 8 राज्यों के गृह सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि जो भी शरणार्थी साल 2009 से पहले भारत में आए हैं और वह भारत की नागरिकता लेना चाहते हैं तो इसके लिए वह जहां रह रहे हैं वहां के जिलाधिकारी को आवेदन देकर यहां की नागरिकता पा सकते हैं, ऐसे लोगों का पुराना पासपोर्ट भी जिलाधिकारी कार्यालय में ही सरेंडर करना होगा और इसके लिए पाक दूतावास का चक्कर काटना जरूरी नहीं है लेकिन साल 2009 के बाद आने वाले लोगों को अब भी अपना पासपोर्ट सरेंडर या नवीनीकरण के लिए पाक दूतावास का चक्कर काटना पड़ता है क्योंकि जब तक वह पासपोर्ट नवीनीकरण और समर्पण की कार्रवाई पूरी नहीं करेंगे तब तक उन्हें नागरिकता मिलना संभव नहीं होगा।
वह बताते हैं कि जो बच्चे के तौर पर शरणार्थी आए थे उन्हें पाक दूतावास के द्वारा नागरा कार्ड पाकिस्तान जाकर बनवाने के लिए बोला जाता है, जबकि शरणार्थी इतने गरीब हैं कि उनके पास पाकिस्तान आने जाने का किराया भी मौजूद नहीं है । जय आहूजा बताते हैं कि 2004 संप्रग सरकार में भी शरणार्थियों के लिए बेहतर व्यवस्था थी जिसे साल 2016 में राजनाथ सिंह ने दोबारा चालू किया लेकिन फिर से व्यवस्था बंद हो गई है।
पुराने कानून इतने जटिल हैं कि पाकिस्तान की नागरिकता सरेंडर कर उसके तहत भारत की नागरिकता लेना बेहद मुश्किल प्रतीत हो रहा है, खासकर हिंदू शरणार्थियों के लिए पासपोर्ट नवीकरण प्रतिवर्ष शुल्क ₹6000 देना तय किया गया है लेकिन इतने पैसे शरणार्थियों के पास नहीं है कि वह इसका फीस जमा कर पाए। अधिकांश शरणार्थियों के तो पासपोर्ट एक्सपायर हो चुके हैं क्योंकि उन्होंने अब तक पैसे के अभाव में अपना नवीकरण नहीं कराया है।
ऐसे एक्सपायर पासपोर्ट वाले शरणार्थियों को तो स्वत ही नागरिकता दे देनी चाहिए लेकिन भारत सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है । उन्होंने बताया कि अपने स्तर से तमाम तरह की अड़चनें दूर करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन इस दिशा में अब तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार नागरिक संशोधन कानून विधेयक बना दिए जाने के बाद दावा कर रही है कि इस कानून के बनने के बाद नागरिकता पाना हिंदू शरणार्थियों के लिए बेहद आसान हो गया है लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता।
पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थी हिंदुस्तान इसीलिए आए थे कि उन्हें कम से कम यहां एक बेहतर जीवन मिलेगा साथ ही बेहतर भविष्य मिलेगा और मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी लेकिन भारत में उन्हें नागरिकता पाने के लिए ही धक्के खाने पड़ रहे हैं और इसके बाद मूलभूत सुविधाएं उन्हें कब हासिल होगी यह किसी को पता नहीं।