अपने प्रदेश में लाटसाहब कहे जाने वाले राज्यपाल के पद को घरेलू नौकर समझने की पारंपरिक भूल करने वाले, सत्ता के ठसक में मदहोश सियासतदान से कोई पूछे ही जस्टिस खेहर होने के मायने क्या हैं? खुद को धरती पर भगवान समझने वाले सुब्रत राय सहारा से कोई पूछे की जस्टिस खेहर होने के मायने क्या हैं? हम उन्हे भारत के पहले सिख मुख्य न्यायाधीश कह कर बस अपनी संकीर्ण बुनियादी सोच ही जाहिर कर पाएंगे। इंसाफ के सबसे बड़े मंदिर पर भी राजनीतिक कलेवर चढाकर अपना हीत साधने से हम बाज नहीं आ सकते, क्योंकि हमारी बुनियादी सोच ही कुछ ऐसी है।
मेरा भरोसा है कि जस्टिस जगदीश सिंह खेहर जब देश के 44वें चीफ जस्टिस के तौर पर अगले हफ्ते से पड़ने वाली सर्दी की छुट्टी खत्म होने के तुरंत बाद 4 जनवरी को शपथ ग्रहण करेंगे तो उसके बाद से भारतीय न्यायपालिका, एक नया दौड़ देखेगा। सुप्रीम कोर्ट को राजनीति का अड्डा समझने की भूल करने वाले राजनीति के रंगरेजों के लिए सुप्रीम कोर्ट आसान टूल नहीं बन सकता। मंगलवार को प्रधानमंत्री पर महज आरोप लगा कर राजनीतिक माहोल बनाने के एक प्रयास पर चोट कर जस्टिस खेहर ने एक बार फिर साफ कर दिया कि वे कुछ अलग मिजाज के हैं। जिन्हें न सिर्फ भारतीय न्यायिक व्यवस्था को कड़वी घूंट देनी है। बल्कि इसका राजनीतिक हित साधने के प्रयास पर भी चोट मारनी है।
जस्टिस खेहर चार जनवरी 2017 को भारत के मुख्यन्यायाधीश होंगे। ये तो 13 सितंबर, 2011 को ही तय हो गया था जब वे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए। भारत में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्त की कोलेजियम सिस्टम में ऐसी व्यवस्था है कि गई है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश की कुर्सी किस्मत में है या नहीं ये उसी तारीख को तय हो जाती है जिस दिन किसी न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के पद की शपथ दिलाई जाती है। ध्यान रहे, भारत में इस संविधानिक पद के शपथ दिलाने के दौरान गोपनीयता की शपथ नहीं दिलाई जाती। ये आजादी उन्हे भारत के जनता और देश लोकतंत्र के प्रति ज्यादा जिम्मेदार बनाता है। जस्टिस खेहर ने 26 नवंबर 2016 को भारत के अटार्नी जनरल को यह संदेश देकर कि न्यायपालिका अपने लक्ष्मण रेखा में काम करती है कह कर चेता दिया कि सबको अपनी लक्ष्मण रेखा पता होना चाहिए।
एक संवैधानिक व्यवस्था के तहत पिछले हफ्ते भारतीय मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने भारत सरकार को पत्र लिखकर अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस खेहर के नाम का प्रस्ताव किया। जस्टिस खेहर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज हैं। जस्टिस ठाकुर का कार्यकाल 3 जनवरी, 2017 तक है। तीन जनवरी के बाद इस साल के 27 अगस्त तक भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर रहेंगे। भारतीय मीडिया ने खबर के लिहाज से 64 साल के जस्टिस खेहर को देश का पहला चीफ जस्टिस बनने वाले सिख का तमगा दिया। न्याय के सर्वोच्च शिखर को भी जाति और सांप्रदायिक चश्मे से देखने की हमारी नियत बताती है कि हम कितना संकीर्ण सोचते हैं। कई बार इस सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठ कर अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा जाहिर कर न्याय के देवता ने इस महान गरिमापूर्ण संवैधानिक पद को जाने अंजाने चोटिल किया है। लेकिन न्याय की कुर्सी पर बैठकर आदेश देने वाले वाले जस्टिस खेहर साबित करते रहे हैं कि वे इन संकीर्णताओं से परे हैं।
मुझे याद आता है जब निवेशकों को 24 हजार करोड़ वापस करने को लेकर सुब्रत राय सहारा सुप्रीम कोर्ट को नई नई दलील देकर खदु को अदालत से बड़ा समझने की ठसक में थे तो जस्टिस खेहर ने भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में वह मिसाल पेश किया जिसका कानून की पोथी में कोई रिकार्ड नहीं था। सुब्रत राय अदालत में पेश होने से बचने के लिए लगातार पारंपरिक बहाने बना रहे है। उन्हे जानने वाले कहते थे कि वे कभी अदालत नहीं आएंगे। यदि आएंगे भी तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि वे खुद कानून के ज्ञाता हैं और कोई गलती वे कर ही नहीं सकते।
सुब्रत राय पर जो आरोप था उसमें छह माह से ज्यादा की सजा की गुंजाईस भी नहीं बनती। कानून की पेचिदगिंया ऐसी है कि इतनी सजा वाले कानून में मनी पावर वालों को जेल भेजने का रिकार्ड भी ढूंढे नही मिलता। लगातार अग्रीम जमानत मिलती है और यूं ही उम्र कट जाती है। सहाराश्री भी कुछ इसी मगन में पांव पर पांव धरे कोर्ट में बैठे च्यूंगम चबा रहे थे। बीच-बीच में अपनी कानूनी सूझबूझ की अकड़ भी जस्टिस खेहर की पीठ को दे रहे थे। कोर्ट रुम की बात तो छोडिए सुप्रीम कोर्ट परिसर ने इतिहास में इतनी भीड़ का गवाह कभी नहीं बनी होगी। लोग अपने सहाराश्री को जयजयकार कर बाहर ले जाने की तैयारी में थे कि कोर्ट ने उन्हे हिरासत में ले लेने का आदेश जारी कर दिया। आम तौर पर सुप्रीमकोर्ट ऐसा आदेश नहीं देती। वो निचली अदालत में सरेंडर करने का आदेश देती है। लेकिन ये केस जुदा था, जस्टिस खेहर जुदा थे, कानून के तहत सख्ति जुदा थी। रिपोर्टरों के लिए मुश्किल ये हो गई थी कि खबर क्या चले? सुब्रत राय को न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल या पुलिस कस्टडी? जस्टिस खेहर ने साफ किया दरअसल आप हमारे बंधक हैं । तब तक जब तक आप साफ नहीं करते कि आप निवेशकों के पैसे कैसे लौटाएंगे। अब बहाना नहीं चलेगा। भारत के न्यायिक इतिहास में इसकी कोई मिसाल नहीं। किसी भी मौजूदा कानून में सजा के तहत उन्हें इतने दिनो तक जेल में नहीं रखा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से आमजन में न्यायपालिका का भरोसा बढा। ऐसा ही भरोसा उन्होने भारत के गरीब मजदूरों के हीतों में फैसला दे कर तब बढाया जब समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत का महत्वपूर्ण फैसला दिया। यह फैसला उन सभी दैनिक वेतन भोगियों, अस्थायी और संविदा कर्मियों पर लागू होगा जो नियमित कर्मचारियों की तरह कार्यों का निष्पादन करते हैं। भारत में दशकों से मजदूरी को लेकर चले आ रहे इस अन्यायपूर्ण व्यस्था में बड़े बदलाव वाले जस्टिस खेहर के इस आदेश से देश में निचले पायदान पर जीवन जी रहे जनमानस को बड़ा सबल मिला।
न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति को लेकर जब कार्यपालिका के साथ तनाव की स्थिति थी, तब 26 नवंबर को संविधान दिवस पर जस्टिस खेहर ने अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के तीखे भाषण का यह कहकर जवाब दिया था कि न्यायपालिका अपनी “लक्ष्मण रेखा’ में रहकर ही काम कर रही है। जस्टिस खेहर ने अपनी ठसक से साफ कर दिया सबको अपने लक्ष्मण का पता होना चाहिए। चाहे वो कार्यपालिका को न्यायापालिका या कोई और संवैधानिक संस्था। दरअसल, राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी) अधिनियम से जुड़े केस की सुनवाई जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने की थी। यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था केंद्र सरकारको सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बड़ा झटका लगा। इसे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव का मद्दा माना गया लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ने अपना रुख साफ कर दिया है। यह मुद्दा कानूनी बहस का है कि क्या न्यायपालिका को और पारदर्शी बनाने के लिए क्या न्यायिक आयोग ही प्रासंगिक नहीं है? क्या सुप्रीम कोर्ट को इस पर गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए वैसे स्थिति में जब की अक्सर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और जजों की न्युक्ति मे भाई भतीजाबाद सामने आता है। लेकिन सच यह है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख पाई।
दशकों से राज्यपाल को घरेलू नौकर समझ कर उनसे गैर संवैधानिक फैसले करवाने के केंद्र सरकार की आदत पर जस्टिस खेहर ने बड़ा चोट मारा। अब अरुणाचल प्रदेश में हालात भले ही कुछ और रहे हो लेकिन दशकों से जनता की चुनी सरकार राज्यपाल के द्वारा काबित होने के केंद्र की मनमौजी रवैया पर चोट मार जस्टिस खेहर ने न्यायपालिका की ताकत का एहसास न सिर्फ सत्ता बल्कि आमजन को भी कराया जो मान चुकी थी कि ये सरकार का विशेषाधिकार है। इस साल जनवरी में अरुणाचल प्रदेश राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला रद्द करने वाली पीठ के अध्यक्ष भी जस्टिस खेहर ही थे। जस्टिस खेहर के इस आदेश ने पारंपरिक सरकारी मनमौजी. जो अतित में भी आदतन केंद्र की सरकार करती आ रही थी उस पर विराम लगा दिया।
अब कुछ कागजी दस्तावेज के सहारे प्रधानमंत्री पर गंभीर आरोप लगा राजनीतिक हीत साधने की कोशिस पर चोट मारकर जस्टिस खेहर ने फिर अपना रुख साफ कर दिया है। दरअसल रामजेठमलानी के बाद प्रशांत भूषण ने बिरला और सहारा को मदद करने का आरोप सीधे प्रधानमंत्री पर लगा कर कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। इसके लिए दस्तावेज पेश करने को लेकर वे सुप्रीम कोर्ट से वक्त ले चुके थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 16 दिसंबर का एक और वक्त देकर साफ किया सबूत के साथ आईए प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर आरोप और कार्ररवाई यूं ही नहीं होते। जस्टिस खेहर ने साफ किया कि शिकायतकर्ता के जोर से बोलने से कोर्ट के अल्फाज नहीं बदल जाएंगे। संकेत साफ है।
जानिए कौन हैं जस्टिस खेहर?
जस्टिस खेहर का जन्म 28 जनवरी, 1952 को हुआ था। साल 1974 में चंडीगढ़ के एक कॉलेज से विज्ञान में स्नातक करने के बाद उन्होंने 1977 में पंजाब विश्विद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। इसके बाद साल 1979 में उन्होंने एलएलएम किया। यूनिवर्सिटी में अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें गोल्ड मेडल से नवाजा गया। साल 1979 में उन्होंने वकालत शुरू की। खेहर ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत का अभ्यास किया। 1992 में उन्हें पंजाब में अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। जिसके बाद 1995 में वो वरिष्ठ वकील बने। इसके बाद जस्टिस खेहर उत्तराखंड और फिर कर्नाटक हाईकोर्ट में में मुख्य न्यायाधीश बने। जस्टिस खेहर साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए थे।