डॉ विनीता अवस्थी । जम्मू से 1 घंटे की दूरी पर अखनूर शहर आना मुझे मात्र देव योग लगा मात्र 5 माह का निवास संभवत किसी वृहत्तर देव योजना का भाग हो सही संकल्प विकल्प में डूबते मैं अस्पताल में बैठी सोच रही थी फिजियोथेरेपी के लिए कुछ दिन आना था तभी उस विभाग कि सहायिका ने आकर अभिवादन किया, कुछ दिन पहले शिव मंदिर की सीढ़ियों से फिसल कर चोट लगी थी यहां यह घटना आपको बतानी आवश्यक लगी जबकि डॉक्टर फ्रैक्चर आदि की संभावना पर सोच रहे थे वही इस दुर्घटना में मात्र में मांसपेशियों पर चोट आई थी ईश्वर की दया से काफी ठीक भी हो गई थी। अगर आप लोगों को याद हो तो “स्वयंभू विभक्त शिवलिंग” नाम से उस लेख को आप सभी लोगों का बहुत प्यार मिला था। उसी मंदिर की सीढ़ियों पर यह घटना हुई और ईश्वर ने मुझे बाल बाल बचाया।
अस्पताल की उस सहायिका ने गंभीरता से कहा“आप यकीन करें आपको सिर्फ ईश्वर ने बचाया है…क्योंकि ऐसी घटनाओं में गंभीर चोटों की संभावना रहती है हम आए दिन ऐसे केस देखते हैं”। मैंने बातचीत ने बताया अपने देवस्थान लेखन के बारे मे बतायातो उसने पूछा जम्मू की” बावे वाली काली माता” के बारे में सुना है आपने। मेरे अनभिज्ञता प्रकट करने पर उसने बताया कि वह हजारों वर्ष पुराना काली मां का सिद्ध मंदिर है।
जम्मू के रक्षक के रूप में लोगों में उनकी बहुत मान्यता है आप लोगों ने “वैष्णो माता की यात्रा ”की होगी अथवा उसके बारे में सुना होगा यहां की मान्यता के अनुसार “वैष्णो देवी की यात्रा ”का प्रारंभ नगरोटा के मंदिर से होता है वह अंत यहां बाबे वाली काली मां के मंदिर में होता है। आभास हुआ की महादेव ने काली मां के दर्शन करने की आज्ञा दी हो आज्ञा ही थी उसी दिन जम्मू निवासी एक श्रद्धालु महिला ने भी साथ चलने की सहमति दे दी और मां के दर्शन का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
अगले दिन ही हम “मां “के दर्शनों के लिए चल पड़े। श्राद्ध पक्ष की नवमी तिथि थी और लगभग 11:00 बजे तक मंदिर परिसर के बाहर हम पहुंच गए। सोमवार था इसलिए भीड़ नहीं थी अपितु मंगलवार को भक्त जनों की बहुत भीड़ होती है। जैसा कि प्राय हर मंदिर के सामने दुकानों की पंक्तियां होती है हम भी एक दुकान से प्रसाद आदि लेकर हम मंदिर की ओर बढ़े रास्ते में “बाहु किले “के बारे में सरकार के पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा था जिसमें एक संक्षिप्त जानकारी थी।
भक्तों की भीड़ को देखकर श्रद्धालु जनों की पंक्तियों की व्यवस्था बढ़ा दी गई थी आगामी नवरात्रों के लिए मंदिर सुसज्जित करने के लिए विभिन्न तैयारियां चल रही थी। कुछ देर में हम मुख्य मंदिर के अंदर ही महाकाली मां के काले रंग के अद्भुत भव्य विग्रह के समक्ष खडे थे ऊपर चांदी के बड़े से छत्र के नीचे साक्षात “मां” विराजित थी सोने का मंडप नुमा आकार था फूल मालाओं तथा सुंदर लाल रंग की चुनर से सुसज्जित अति पवित्र काली मां का रूप देखकर हम अभिभूत हो गए वहां की ऊर्जा से मिलती शांति का आभास करते ही आप स्वयं जान सकते हैं कि कितना प्राचीन व जागृत देवस्थान है यह।
बायी ओर से बाहर जाने का रास्ता था हम प्रसाद लेकर उधर से निकले।मुख्य मंदिर के दाएं ओर एक और मंदिर था जहां शिवलिंग रूप में अपनी पूर्ण दिव्यता व भव्यता के साथ विराजित थे वहीं पर भगवान नरसिंह देव तथा कालू वीर महाराज उनके दाएं ओर और बाबा लाल दयाल उनके बाएं और विराजे थे सामने की ओर मां शीतला माता का सुंदर विग्रह विराजित था। जैसा कि उत्तर भारत में प्रचलित है भगवान विष्णु शालिग्राम के विग्रह के रूप में प्राय:विराजित होते हैं होते हैं वहां भी उनकी शोभा बहुत ही पवित्र व सुंदर लग रही थी
वही श्री राधा कृष्ण, श्री जानकी राम व हनुमान आदि के भी मंदिर थे। ठीक उसी मंदिर के सामने मां बगलामुखी देवी का भी मंदिर था। कुछ दूरी पर मंदिरों का नवनिर्माण भी हुआ था जहां प्रतीक स्वरूप संभवत: मां वैष्णो मां की मूर्तियां स्थापित थी। जिस विशेष बात पर हमारा ध्यान गया वह थी कुछ बकरियों की मूर्तियां जहां “मोख दान” के लिए लिखा हुआ था।
यह जम्मू के मंदिर की अनूठी बलि प्रथा थी श्रद्धालु जन यहां बकरी दान देते थे जो प्रथा अभी भी है बलि चढ़ाने के स्थान पर उस पर जल छिड़का जाता है अगर वह अपना शरीर हिला दे तो बलि स्वीकार समझी जाती है। कुछ ही दूर पर एक भेड़ भी बंधी ही थी संभवतः किसी श्रद्धालु ने दान दी होगी। “मां काली के मंदिर” की यह अनोखी बलि प्रथा भक्तजनों के लिए विशेष श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र रहता है। ऐसी अहिंसक बलि “मां ” ही स्वीकार कर सकती हैं साथ में दान के महत्व के साथ भाव की महत्वता भी समझ में आती है।
वीरों की इस भूमि ने सदा ही आक्रमण झेलें हैं और अब भी उसी जीवटता व वीरता के साथ धर्म युद्ध में लड़ रहे हैं। प्राचीन काल में भी सेनाएं काली मां के दर्शन करके ही युद्ध के लिए कूच किया करती थी। महाकाली के रहते विजय श्री सदा हम सबके साथ है। वैष्णो माता ने मुझे दो बार बुला कर कृपा की है वैष्णो यात्रा का यह अंतिम पड़ाव माना जाता है लगभग 15 साल के बाद दैव योग “बावे वाली काली मां “के दर्शन हुए। ऐसा आभास हो रहा है कि यात्रा पूरी हुई तथा मां ने स्वीकार कर ली। हम सभी की धर्म यात्रा चलती रहे व सफल हो इसी प्रार्थना के साथ की महाकाली आपको धर्म पथ पर सदा विजय प्रदान करें नवरात्रों की शुभकामनाओं सहित।
।। जय महाकाली।।
।। ईति।।